वज़ूद
कभी कभी मैं सोचती हूँ
मैं कौन हूँ , क्या हैं मेरा वजूद....
मेरे दिमाग में ऊपजी सोच या
दिल में हलचल मचाती हुई धड़कनों में हूँ मैं
क्या यही हैं मेरा वजूद
या फिर इन दोनों से जुदा,
ज़िन्दगी की आँख मिचौली मे
उलझा हुआ सा है मेरा वजूद...
गुज़र चुके वक्त के छोटे से
लम्हों मे चमकता सा अश्क हूँ या
वक्त की कैद में बेचैन सपना हूँ ,
क्या यही हैं मेरा वजूद
या फिर इन दोनों से जुदा,
दोनों के मिलन
गवाही सा हैं मेरा वजूद...
इश्क के इंतजार मे किनारे पड़ी पत्थर हूँ या
इश्क के समुन्दर में समाये नदी का अस्तित्व हूँ,
क्या यही हैं मेरा वजूद,
या फिर इन दोनों से जुदा,
दोनों का बेमेल एहसास सा है मेरा वज़ूद...
अपनी शाखों से टूट चुके जर्द मरे पत्ते सी हूँ या
यहाँ वहाँ चुपके से उत्सुकता से झांकती नयी कोपले हूँ,
क्या यही हैं मेरा वजूद
या फिर इन दोनों से जुदा,
दोनों को आसरा देने वाले सा है मेरा वजूद....
निराशा के गहरी काली अंधेरी रातों मे गुम होता हौसला हूँ या
उम्मीदों के रोशनी के शमा की आखिरी लड़ी हूँ,
क्या यही हैं मेरा वजूद
या फिर इन दोनों से जुदा,
दोनों के तमाशे को देखती
तमाशबीन सा है मेरा वजूद....
कभी कभी मैं सोचती हूँ,
मैं कौन हूँ , क्या हैं मेरा वजूद....
बस यू ही