सुनो ना.....
आओ चलते हैं एक बार फिर
सात समन्दर पार....
और खो जाते सपनों की दुनिया में ....
जिंदगी की भाग दौड़ से चुराते है थोड़े से लम्हे....
समंदर के किनारों पर उठती गिरती लहरों के साथ कुछ एक दूसरे को सुनते हैं....
सात समंदर पार झिलमिल करते तारों से सजे नीले आकाश तले समझते है एक दूसरे की खमोशी को....
जैसे समंदर की लहर बहा ले जाती हैं किनारों की सारी गंदगी और कर जाती है तटों को स्वच्छ निर्मल ,
उन्ही लहरों के साथ हम भी विसर्जन कर देते है अपने सारे शिकवे शिकायते... भूल के सारी कड़वी यादें पहलू में भर लाते हैं कुछ कभी ना भूलने वाले सुनहरे खूबसूरत पल...
समंदर की तटों पे चट्टानों से टकराते हुए अठखेलियां करके जो लहरे वापिस जाती है वो खो जाती है विशाल समंदर में...
और फिर कभी वापिस नही आती वैसे ही तुम भी खो जाना कही इस दुनिया की भीड़ में बन के एक अजनबी...