सुना है --
परिवर्तन प्रकृति का नियम है!
मेरी नज़रे हर गुज़रते पल पर नज़रे जमाये
परिवर्तन की गुजारिश करती है,
वह कहती है अब तो परिवर्तित हो जाओ।
सागर की बूंदे बरसात में परिवर्तित हो गयी,
सुहानी सुबह तपती दोपहर मे परिवर्तित हो गयी,
अब तो बदल जाओ,अगर यही तुम्हारा नियम है।
तभी मेरे अहं ने अवाज लगायी,
वह मुझे ही बुला रही थी,
और बोली - हां ! परिवर्तन प्रकृति का नियम है!
परिवर्तन कुछ नये कुछ पुराने,
कुछ अच्छे कुछ बुरे का एक संगम है,
आस्था है,प्रगति का रास्ता है,कर्म की व्याख्या है,
यूं ही मत वक्त को जाया कर ,जिन्दगी को जिया कर,हर रोज कुछ नया किया कर,
मन की व्यथा को भुलाकर ,मुस्कुरा कर कर्म किया कर,
कर्म ही तेरी प्रगति है, प्रगति ही परिवर्तन है,
और परिवर्तन प्रकृति का नियम है।।
बस यू ही