Sunday, 21 February 2021
Sunday, 14 February 2021
लम्हो का इश्क़
Monday, 8 February 2021
अनहिता
मोहब्बत की कहानियां, किरदारों के गुजर जाने के बाद भी जिंदा रहती हैं. ये एक ऐसी शय है कि इसके खरीदार जमाने के बाजार में हमेशा रहते हैं.
आज अनहिता का जन्मदिन था, लेकिन अग्रिम ने उसे बधाई भी नही दिया, नये साल और त्योहारो पर विश करना तो अग्रिम ने कई सालो से बन्द कर दिया था। अगर अनहिता कभी विश कर भी दे तो बड़े ही अनमने मन से रिप्लाई देता। इस बात को लेकर दोनों को में कई बार अच्छे से बहस भी हो चुकी थी।
अनहिता बहुत हैरान थी अग्रिम के इस बदले हुये तेवर से। उसे समझ ही नही आ रहा था कि आखिर उन दोनो के रिश्ते मे गलती हुयी कहा।पिछले कई सालो से वो अग्रिम से सिर्फ कुछ वक्त ही तो मांग रही थी,जिसके लिए अग्रिम कभी परिवार कभी करोना और कभी उसके व्यवहार को दोष देकर टाल देता। पिछले 4 सालो मे तो ना जाने कितनी बार अग्रिम ने खुद की मिन्नते करायी थी, काफी मान मन्नौवल के बाद किसी तरह अनहिता ने टूटते बिखरते रिश्ते को बचाया था, और उस रिश्ते की आग मे खुद को सम्हाला था।
ज़िन्दगी की इसी उहापोह से गुज़रते ना जाने कब अनहिता अतीत के वादियो मे खो गयी उसे खबर भी नही हुआ।जैसे कल की ही बात हो जब उसके मोबाइल पर अग्रिम की पहली बार कॉल आयी थी, कितना अचम्भित रह गयी थी अनहिता की उसे उसका नम्बर कहा से और कैसे मिला? उसके बाद फिर दोनों की बातें अक्सर हो जाया करती थी।अब तो धीरे धीरे अग्रिम हर रोज ही आफिस से वापिस घर आते समय रास्ते मे अनहिता से बात करते लौटता। कभी कभी देर रात घर से भी बात कर लिया करता।अगर किसी कारण अनहिता का फोन नही लग पाता या कभी बात नही हो पाती तो कितना परेशान हो जाता था अग्रिम,और कहता "सारा दिन कहा व्यस्त थी महारानी साहिबा" या "आप तो ईद का चॉद का हो गयी है मेरी चश्मेबद्दूर जिगर का छल्ला" बोल कर नाराजगी जाहिर करता था, वो भी हस कर बात को खत्म कर दिया करती।
उस साल अनहिता के जन्मदिन के दिन कितनी ज्यादा ठण्डी थी, दिन के 11 बजे तक चारो ओर घने कोहरे का साम्राज्य कायम था फिर भी वह जयपुर से मुंह अन्धेरे ही निकल कर 11 वजे तक दिल्ली अनहिता के पास पहुच गया था।दोनो पूरे दिन साथ रहे ,और कितने बढ़िया से अनहिता का जन्मदिन मनाया था।अग्रिम ने जाते जाते वादा भी किया कि बाकी दिनो का पता नही लेकिन अब अनहिता के हर आने वाले जन्मदिन पर दोनो साथ होगा , और फिर एक बार तो अग्रिम के घर विदेश से उसके कुछ रिश्तेदार मिलने आये थे अनहिता ने कहा भी कि वो जन्मदिन मेहमानो के जाने के बाद मना लेगें,लेकिन अग्रिम नही माना था।अनहिता को कुछ समझ नही आ रहा था कि उससे वाकई मे कोई गलती हुयी है, या अग्रिम को मिन्नते कराने की लत पड़ चुकी है या फिर अग्रिम का अनहिता से मन भर चुका है| अतीत की यादो और वर्तमान मे उलझी रोते हुये अनहिता की आखे कब लग गयी पता भी नही चला | जब उसकी ऑखे खुली तो सूरज सर पर चढ़ चुका था।अनहिता को ऑफिस के लिये भी देर हो चुकी थी | रात मे अग्रिम से हुयी उसकी लडाई के कारण सर भी भारी सा महसूस हो रहा था | भारी मन से ही वो किचन मे गयी और चाय बनाते हुये उसने ऑफिस के मेल पर आकस्मिक अवकाश के लिये आवेदन कर दिया| चाय पीते हुये अनहिता सोच रही थी कि 1 महीने बाद अग्रिम का जन्मदिन आने वाला है तब तक शायद सब कुछ पहले सा सामान्य हो जाये और अनहिता ने मौन की राह पकड़ ली थी। ऊपर दिन ब दिन अग्रिम की बेरुखी बढ़ती ही जा रही थी।अग्रिम की ये खामोशी, पिछले कुछ दिनों मे उन देने के बीच हुयी लड़ाईया अनहिता के आत्मविश्वास को तोड़ रही थी। उपर से तो वह बराबर से अग्रिम से बोलती बात करती रहती लेकिन अन्दर ही अन्दर वह उसके ऐसे व्यवहार से टूट कर बिखरती जा रही थी । आखिर वक्त के साथ अग्रिम के जन्मदिन वाला दिन भी आ गया और इस एक महिने में दोनो के बीच कोई बात नही हुयी।अनन्त: अनहिता ने 27 जनवरी की शाम स्वयं को तोड़ देने वाला निर्णय लेते हुये एक सुन्दर सा जन्मदिन का केक और कार्ड खरीद कर अपने ऑसू भरे आँखो और कापते हाथो से अग्रिम को जन्मदिन के बधाई संदेश के साथ ही एक संदेश और लिखा "'मैं आपसे बहुत प्यार करती हूँ ,बहुत मुश्किल है आपके बिना रहना लेकिन...अब आपकी बेरुखी ने ये कदम उठाने के लिए मजबूर कर दिया बस अब और नही अब मैं आपको इस बंधन से आजाद कर रही हु मुझे पता है मैं आपकी पहली पसंद नही हूँ लेकिन इसमें मेरी कोई गलती नही है। मैं आपसे बेइंतिहा प्यार करती हूं और करती रहूंगी। आप कभी नही समझेगे कितना मुश्किल है मेरे लिये आपके बिना जीना........ लेकिन आपकी खुशी के लिये आपको मुक्त करती हूँ हमेशा के लिये खुद से और इस अनचाहे रिश्ते से ।।"