Sunday, 21 February 2021

सुनो ना....23

सुनो  ना .....
  गर होता मेरी दुआओ का असर , तो अब तक तुम मेरी आगोश में होते....
और जो होती इतनी गर्म तासीर बद्दुआओ की मेरी तो हम खुद कभी के सुपुर्दे खाक हो चुके होते....

Sunday, 14 February 2021

लम्हो का इश्क़



इश्क तो लम्हों में होता है और सदियों तक रहता हैं। हाँ इश्क ऐसा ही होता हैं।
बस यू ही
           
                  हाँ शिवान्गी को उस दिन इश्क़ ही तो हो गया था ,जब वो और शिवान्स पहली बार मिले थे और  गुजरते हुये दिन के एक एक पल के साथ शिवान्गी का प्यार बढ़ता ही चला गया। और दो अनजान एक दूसरे की ज़िन्दगी बन गये थे ।
आज शिवान्गी की तबियत कुछ ठीक नही और उसे शिवेन्द्र की बहुत याद आ रही थी जिसे ऑफिस के काम से कुछ दिनों के लिए बाहर जाना पड़ गया था । बिस्तर पर लेटी बीमार शिवान्गी को शिवेन्द्र के साथ हुयी अपनी पहली मुलाकात के एक एक पल याद आ रहा था..... 
कैसे वो  दोनों पहली बार अकेले घर से बाहर निकले थे। जनवरी की ठण्डी में सुबह सुबह दिल्ली पहुचे थे । शिवेन्द्र ने  पहले से ही होटल मे एक कमरा बुक करा लिया था। दिन में थोड़ा आराम करके शाम को दोनो थोड़ा घूमने निकले गये थे । कनाट प्लेस की चकाचौंध और दिल्ली की सर्दी मे दोनों एक दूसरे का हाथ थामे चले जा रहे थे, घूमते हुये वो देने पालिका बजार भी गये थे। वहा से खरीददारी करते हुये आइसक्रीम खाते हुए वापिस होटल आ गये थे। सुबह जब दोनो एक दूसरे से मिले थे तो एक ऐसे अनजान थे जिनके बीच बाते तो होती थी, लेकिन मुलाकात अभी तक नही हो पाया थी। आज बहुत कोशिश के बाद ये मुलाकात सम्भव हो पायी थी।
       आज शिवेन्द्र के साथ उसकी पहली मुलाकात की यादे उसे जितना खूबसूरत मखमली एहसास दे रही थी ,उतनी ही ज्यादा शिद्दत से उसे आज शिवेन्द्र की कमी महसूस करा रही थी। वो एक बार फिर से वापिस उन पलो को जी लेना चाहती थी। कैसे उन दोनो ने एक साथ वोडका की सिप ली थी,..... चिली पनीर और फ्रेच फ्राइ का टेस्ट.........और देर रात तक बाते करते रहे.... और बीते करते करते ही  शिवेन्द्र का  बिस्तर पर आधे बैठे आधे लेटे हुये उसे  पहली बार छुना...., कितनी मासूम सी थी वो छुअन की वो खुद भी उसकी बाहो मे सिमटती चली गई। उसे वह अनजान सा बिल्कुल भी नही लगा..... अनजाने शिवेन्द्र की बाहो मे अनकहा असीम  सुकून था, एक अजीब सी कशिश थी, उसकी बाहो मे, एक कभी ना छोडने का भरोसा था......उसकी गोद में अध लेटी शिवान्गी  को कब नीद आ गयी पता ही नही चला..... लगभग एक घण्टे बाद जब उसकी नीद खुली तो देखा शिवेन्द्र  उसे वैसे ही गोद मे लिये हुये अपने कितने प्यार से देख रहा था.......
       शिवाऩ्गी को पहली बार लगा था कि जिस इन्सान के गोद मे वो इतना सुकून और भरोसे से सो गई, वह कोई अनजाना कैसे हो सकता है..... जिसकी बाहो मे सिमटते हुये उसे रंच मात्र भी भय ना हुआ वो अनजाना कैसे हो सकता है,  उस अनजाने इन्सान के गोद मे कितना सुकून, कितना भरोसा था.... जैसे कोई  मासूम सो दुनिया की परवाह किये बगैर छुप जाता है माँ की ऑचल मे वैसे ही तो मैं भी  सो गई थी... कितना ममत्व था उस अनजान के छुअन में.....कितना वात्सल्य बरस रहा था उसके भूरे भूरे ऑखो से...... कैसे अनजान हो सकता है  ऐसा व्यक्ति.... नही ये अनजान नही ये मेरी ज़िन्दगी है..... एक सामान्य सी मुलाकात में जो इन्सान इतना कुछ दे जाये वो अनजान हो ही नही सकता..... जिसे कुछ देर के साथ में ही आपकी  फिक्र होने लगे.....जो पूरे रास्ते घूमते हुये भी पल पल आपका ख्याल रखे..... वो तो अनजान हो ही नही सकता वो तो ज़िन्दगी है।

Monday, 8 February 2021

अनहिता

मोहब्बत की कहानियां, किरदारों के गुजर जाने के बाद भी जिंदा रहती हैं. ये एक ऐसी शय है कि इसके खरीदार जमाने के बाजार में हमेशा रहते हैं.
           आज अनहिता का जन्मदिन था, लेकिन अग्रिम ने उसे बधाई  भी नही दिया, नये साल और त्योहारो पर विश करना तो अग्रिम ने कई सालो  से  बन्द कर दिया था। अगर अनहिता कभी विश कर भी दे तो बड़े ही अनमने मन से रिप्लाई देता। इस बात को लेकर दोनों को में कई बार अच्छे से बहस भी हो चुकी थी।
         अनहिता बहुत हैरान थी अग्रिम  के इस बदले हुये तेवर से। उसे समझ ही नही आ रहा था कि आखिर उन दोनो के रिश्ते मे गलती हुयी कहा।पिछले कई सालो से वो अग्रिम से सिर्फ कुछ वक्त ही तो मांग रही थी,जिसके लिए अग्रिम कभी परिवार कभी करोना और कभी उसके व्यवहार को दोष देकर टाल देता। पिछले 4 सालो मे तो ना जाने कितनी बार अग्रिम ने खुद की मिन्नते करायी थी, काफी मान मन्नौवल के बाद किसी तरह अनहिता ने टूटते बिखरते रिश्ते को बचाया था, और उस रिश्ते की आग मे खुद को सम्हाला था।   
            ज़िन्दगी की इसी उहापोह से गुज़रते ना जाने कब अनहिता अतीत के वादियो मे खो गयी उसे खबर भी नही हुआ।जैसे कल की ही बात हो  जब उसके मोबाइल पर अग्रिम की पहली बार कॉल आयी थी, कितना अचम्भित रह गयी थी अनहिता की उसे उसका नम्बर कहा से और कैसे मिला? उसके बाद  फिर दोनों की बातें अक्सर हो जाया करती थी।अब तो धीरे धीरे अग्रिम हर रोज ही आफिस से वापिस घर आते समय रास्ते मे अनहिता से बात करते लौटता। कभी कभी देर रात घर से भी बात कर लिया करता।अगर किसी कारण अनहिता का फोन नही लग पाता या कभी बात नही हो पाती तो कितना परेशान  हो जाता था अग्रिम,और कहता "सारा दिन कहा व्यस्त थी महारानी साहिबा" या "आप तो ईद का चॉद का हो गयी है मेरी चश्मेबद्दूर जिगर का छल्ला" बोल कर नाराजगी जाहिर करता था, वो भी हस कर बात को खत्म कर दिया करती।
           उस साल अनहिता के जन्मदिन के दिन कितनी ज्यादा ठण्डी थी, दिन के 11 बजे तक चारो ओर घने कोहरे का साम्राज्य कायम था फिर भी वह जयपुर से मुंह अन्धेरे ही निकल कर 11 वजे तक दिल्ली अनहिता के पास पहुच गया था।दोनो पूरे दिन साथ रहे ,और कितने बढ़िया से अनहिता का जन्मदिन मनाया था।अग्रिम ने जाते जाते वादा भी किया कि बाकी दिनो का पता नही लेकिन अब अनहिता के हर आने वाले जन्मदिन पर दोनो साथ होगा , और फिर एक बार तो अग्रिम के घर विदेश से उसके कुछ रिश्तेदार मिलने आये थे अनहिता ने कहा भी कि वो जन्मदिन मेहमानो के जाने के बाद मना लेगें,लेकिन अग्रिम नही माना था।अनहिता को कुछ समझ नही आ रहा था कि उससे वाकई मे कोई गलती हुयी है, या अग्रिम को मिन्नते कराने की लत पड़ चुकी है या फिर अग्रिम का अनहिता से मन भर चुका है| अतीत की यादो और वर्तमान मे उलझी रोते  हुये अनहिता की आखे कब लग गयी पता भी नही चला | जब उसकी ऑखे खुली तो सूरज सर पर चढ़ चुका था।अनहिता को ऑफिस के लिये भी देर हो चुकी थी | रात मे अग्रिम से हुयी उसकी लडाई के कारण सर भी भारी सा महसूस हो रहा था | भारी मन से ही वो किचन मे गयी और चाय बनाते हुये उसने ऑफिस के मेल पर आकस्मिक अवकाश के लिये आवेदन कर दिया| चाय पीते हुये अनहिता सोच रही थी  कि 1 महीने बाद अग्रिम का जन्मदिन आने वाला है तब तक शायद सब कुछ पहले सा सामान्य हो जाये और अनहिता ने मौन की राह पकड़ ली थी। ऊपर दिन ब दिन अग्रिम की बेरुखी बढ़ती ही जा रही थी।अग्रिम की ये खामोशी, पिछले कुछ दिनों मे उन देने के बीच हुयी लड़ाईया अनहिता के आत्मविश्वास को तोड़ रही थी। उपर से तो वह बराबर से अग्रिम से बोलती बात करती रहती लेकिन अन्दर ही अन्दर वह उसके ऐसे व्यवहार से टूट कर बिखरती जा रही थी । आखिर वक्त के साथ अग्रिम के जन्मदिन वाला दिन भी आ गया और इस एक महिने में दोनो के बीच कोई बात नही हुयी।अनन्त: अनहिता ने 27 जनवरी की शाम स्वयं को तोड़ देने वाला निर्णय लेते हुये एक सुन्दर सा जन्मदिन का केक और कार्ड खरीद कर अपने ऑसू भरे आँखो और कापते हाथो से  अग्रिम को जन्मदिन के बधाई संदेश के साथ ही एक संदेश और लिखा  "'मैं आपसे बहुत प्यार करती हूँ ,बहुत मुश्किल है आपके बिना रहना लेकिन...अब आपकी बेरुखी ने ये कदम उठाने के लिए मजबूर कर दिया बस अब और नही अब मैं आपको इस बंधन से आजाद कर रही हु मुझे पता है मैं आपकी पहली पसंद नही हूँ लेकिन इसमें मेरी कोई गलती नही है। मैं आपसे बेइंतिहा प्यार करती हूं और करती रहूंगी। आप कभी नही समझेगे कितना मुश्किल है मेरे लिये आपके बिना जीना........ लेकिन आपकी खुशी के लिये आपको मुक्त करती हूँ हमेशा के लिये खुद से और इस अनचाहे रिश्ते से ।।"