Sunday, 14 February 2021

लम्हो का इश्क़



इश्क तो लम्हों में होता है और सदियों तक रहता हैं। हाँ इश्क ऐसा ही होता हैं।
बस यू ही
           
                  हाँ शिवान्गी को उस दिन इश्क़ ही तो हो गया था ,जब वो और शिवान्स पहली बार मिले थे और  गुजरते हुये दिन के एक एक पल के साथ शिवान्गी का प्यार बढ़ता ही चला गया। और दो अनजान एक दूसरे की ज़िन्दगी बन गये थे ।
आज शिवान्गी की तबियत कुछ ठीक नही और उसे शिवेन्द्र की बहुत याद आ रही थी जिसे ऑफिस के काम से कुछ दिनों के लिए बाहर जाना पड़ गया था । बिस्तर पर लेटी बीमार शिवान्गी को शिवेन्द्र के साथ हुयी अपनी पहली मुलाकात के एक एक पल याद आ रहा था..... 
कैसे वो  दोनों पहली बार अकेले घर से बाहर निकले थे। जनवरी की ठण्डी में सुबह सुबह दिल्ली पहुचे थे । शिवेन्द्र ने  पहले से ही होटल मे एक कमरा बुक करा लिया था। दिन में थोड़ा आराम करके शाम को दोनो थोड़ा घूमने निकले गये थे । कनाट प्लेस की चकाचौंध और दिल्ली की सर्दी मे दोनों एक दूसरे का हाथ थामे चले जा रहे थे, घूमते हुये वो देने पालिका बजार भी गये थे। वहा से खरीददारी करते हुये आइसक्रीम खाते हुए वापिस होटल आ गये थे। सुबह जब दोनो एक दूसरे से मिले थे तो एक ऐसे अनजान थे जिनके बीच बाते तो होती थी, लेकिन मुलाकात अभी तक नही हो पाया थी। आज बहुत कोशिश के बाद ये मुलाकात सम्भव हो पायी थी।
       आज शिवेन्द्र के साथ उसकी पहली मुलाकात की यादे उसे जितना खूबसूरत मखमली एहसास दे रही थी ,उतनी ही ज्यादा शिद्दत से उसे आज शिवेन्द्र की कमी महसूस करा रही थी। वो एक बार फिर से वापिस उन पलो को जी लेना चाहती थी। कैसे उन दोनो ने एक साथ वोडका की सिप ली थी,..... चिली पनीर और फ्रेच फ्राइ का टेस्ट.........और देर रात तक बाते करते रहे.... और बीते करते करते ही  शिवेन्द्र का  बिस्तर पर आधे बैठे आधे लेटे हुये उसे  पहली बार छुना...., कितनी मासूम सी थी वो छुअन की वो खुद भी उसकी बाहो मे सिमटती चली गई। उसे वह अनजान सा बिल्कुल भी नही लगा..... अनजाने शिवेन्द्र की बाहो मे अनकहा असीम  सुकून था, एक अजीब सी कशिश थी, उसकी बाहो मे, एक कभी ना छोडने का भरोसा था......उसकी गोद में अध लेटी शिवान्गी  को कब नीद आ गयी पता ही नही चला..... लगभग एक घण्टे बाद जब उसकी नीद खुली तो देखा शिवेन्द्र  उसे वैसे ही गोद मे लिये हुये अपने कितने प्यार से देख रहा था.......
       शिवाऩ्गी को पहली बार लगा था कि जिस इन्सान के गोद मे वो इतना सुकून और भरोसे से सो गई, वह कोई अनजाना कैसे हो सकता है..... जिसकी बाहो मे सिमटते हुये उसे रंच मात्र भी भय ना हुआ वो अनजाना कैसे हो सकता है,  उस अनजाने इन्सान के गोद मे कितना सुकून, कितना भरोसा था.... जैसे कोई  मासूम सो दुनिया की परवाह किये बगैर छुप जाता है माँ की ऑचल मे वैसे ही तो मैं भी  सो गई थी... कितना ममत्व था उस अनजान के छुअन में.....कितना वात्सल्य बरस रहा था उसके भूरे भूरे ऑखो से...... कैसे अनजान हो सकता है  ऐसा व्यक्ति.... नही ये अनजान नही ये मेरी ज़िन्दगी है..... एक सामान्य सी मुलाकात में जो इन्सान इतना कुछ दे जाये वो अनजान हो ही नही सकता..... जिसे कुछ देर के साथ में ही आपकी  फिक्र होने लगे.....जो पूरे रास्ते घूमते हुये भी पल पल आपका ख्याल रखे..... वो तो अनजान हो ही नही सकता वो तो ज़िन्दगी है।

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