आखिरकार 2000 से अधिक लोगों में कोरोना वितरित करने के पश्चात् हमारे साधू संतो की भी आस्था हिल गयी औरहरिद्वार कुम्भ को समय पूर्व समाप्त करने की घोषणा करनी पड़ी। पंचायती अखाड़ा,निरंजनी अखाड़े के सचिव और कुंभ प्रभारी ने की हरिद्वार कुंभ समाप्ति की घोषणा की दी और सभी साधु-संतों से मूल स्थानों पर लौटने का अनुरोध किया है अभी भी राज्य सरकार ने कोई आदेश नहीं दिया है शायद वो साधू सन्तों की नाराज़गी से डर रहे हैं ।
इतने सारे लोगों के जान की कीमत पर किसी भी आस्था की पुर्ति की जाय ये ग़लत है, लेकिन किसी भी आस्था की ख़ास बात होती हैं कि जब तक यह किसी अपने को ना खो दें ये खोती नहीं है ।
इस विपदा की घड़ी में ऐसे आयोजन का औचित्य समझ से परे है, अगर यह आयोजन इतना ही जरूरी था तो प्रतीकात्मक आयोजन भी तो किया जा सकता था न ? साधु-संतों पर हिन्दू समाज अगाध श्रद्धा रखता है। सरकारों को जनता बड़े विश्वास से अपने व देश की सुरक्षा विकास और भले के लिए चुनती है, वे देश और समाज को राह दिखाते हैं और ये इनकी नैतिक जिम्मेदारी भी है। अगर कुम्भ का आयोजन टाल दिया गया होता या प्रतीकात्मक रूप में किया गया होता तो पूरे देश में एक सकारात्मक संदेश जाता। हमारे सम्मानित साधु-संत और सरकारे यह मौका चूक गये। कुम्भ से लौटनेवालों को अनिवार्य रूप से सरकारी केंद्रों पर कोरेन्टीन किया जाना चाहिए।
सुरक्षित रहिए समझदार बनिये घर से मत निकलिए । आप सब महत्वपूर्ण हैं । किसी और के लिए हो ना हो लेकिन अपने परिजनों के लिए आप महत्वपूर्ण है। आप उनके लिए दुनिया के एक शख्स नहीं उनकी पूरी दुनिया है 🙏🏻
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