क्या फ़र्क है ख़ुदा और पीर में
क्या फ़र्क है किस्मत और तक़दीर में
चाहो ग़र कुछ दिल से और ना मिल पाए
तो समझना कुछ और अच्छा लिखा है नसीब में
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बाहों में भरके सुला दूँ तुझको
आ खुद में आज छुपा लूँ तुझको
भरी दुनिया में मुझसा न मिलेगा कोई
आ ऐसा एक एहसास दिला दूँ तुझको
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शिकवा रहे हमसे या गिला रहे हमसे
आरज़ू है बस यही एक सिलसिला रहे हमसे
फासले हो दरमियां या खता हो कोई
दुआ है यही के नजदीकियाँ रहें हमसे
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जाने क्यूँ वो हमसे मुस्कुरा के मिलती है
अन्दर के सारे ग़म छुपा के मिलती है
जानती है के आँखें सच बोल जातीं है
शायद इसीलिए वो नज़रें झुका मिलती है
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