स्व + अभिमान =अपनी निजता का मान
अभिमान -अभि+मान =अपने अंदर का मान मर्यादा
स्वाभिमान एक धनात्मक और स्वस्थ अर्थ देता है
जबकि अभिमान एक हल्का और नकारत्मक अर्थ देता है .
इन्सान का स्वाभिमान कब उसके ऊपर हो हावी हो कर आभिमान में परिवर्तित हो जाता है उसे पता भी चलता ........
स्वाभिमान उसकी उन्नति में मददगार होता है जबकि अभिमान से उसकी अवन्ती का मार्ग प्रशश्त होता है ,
स्वाभिमान और आभिमान में बहुत ही बारीक़ अंतर होता है....
हमारा स्वाभिमान कब आभिमान में परिवर्तित हो जाता है ..हमे पता भी नहीं चलता.....
असल में जब हम दूसरे के स्वाभिमान को न मानकर सिर्फ अपने स्वाभिमान की बात करते हैं तो हम अभिमानी हो जाते हैं !!
रावण हमेशा अपना स्वाभिमान सोचता था राम का नही ............
स्वाभिमान हमेशा अच्छा होता है जबकि आभिमान बुरा ...अत: हमे हमेशा स्वाभिमानी होना चाहिए ....अभिमानी कभी नहीं.
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