Friday, 30 March 2012

एक कली थी जूही की .......

एक कली थी जूही की .......


माली ने परवरिश  की  प्यार से .......
 और  कली बन गयी जब फूल ..........
किस्मत का मारा माली .........
फूल को ले गया जालिम .........
एक कली थी जूही की .......
जितने दुलार से की थी माली ने परवरिश ..........
उससे कही अधिक यातनाये दी जालिम ने ...........
कली से बनी फूल .....
एक कली थी जूही की .......
बेचारी थी मजबूर....
धीरे धीरे तन हुआ घायल .........
फिर मन भी हो गया जख्मी............
एक कली थी जूही की .......
खुदा ने की थी एक इनायत..........
 उस फूल को भी दिया एक कली..........
उस कली को बचाती.......
एक कली थी जूही की .......
 लडती किस्मत से अपनी ........
 तन खाती चोट मन पे सहती वार.........
पड़ गयी वो कमजोर ....
हो गयी वो मजबूर .........
एक कली थी जूही की .......
छोड़ दिया उसने जालिम को ..........
साथ में छुट गयी उसकी कली भी ..........
एक कली थी जूही की .......
बेचारा फूल पहले भी जीते जी मर रहा था .......
और अब भी जीते जी मर गया ...........
एक कली थी जूही की .......
बस खुदा के एक और इनायत के इंतजार में.........
 कभी वो सुबह तो होगी ......
 उसको  फिर  उसकी कली मिलेगी ......
एक कली थी जूही की .......

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