Wednesday, 26 June 2019

कुछ रिश्ते बेनामी

सुनो ना ...

कुछ रिश्ते
बेनामी की चादर
ओढ़े चुपके से
आगे बढ़ते जाते है ,
नदी के किनारो से
जो कही नही मिलते
लेकिन कभी
बिछड़ते भी नही
बस चुपचाप
चलते जाते है
साथ साथ
बिना कुछ कहे
बिना किसी वादे के
साथ यू ही कुबूल हो,
तो कहो तुम भी
 कुबूल है|
प्यार को हिचक भी
कहा होती है
कभी कुबूल करने मे
कुबूल है कुबूल है
तेरे साथ साथ
यू ही चलते चले
जाना कुबूल है|

 #बस_यू_ही

नीलम वन्दना (वन्दना द्विवेदी)

मेरे बचपन का शहर

मेरे बचपन का शहर बसता है छोटी बडी पतली चौडी गलियो मे ,गंगा और गंगा किनारे बने हुये सुन्दर मनोरम घाट ,गंगा के उस पार बहुत विशाल खुला रेतीला मैदान | संगीत  व कला का उपासक , संस्कृती  का संवाहक ,  कजरी ,ठुमरी और बासुरी की धुन ... शिक्षा की राजधानी , माँ सरस्वती विराजती ,जीवन  को ज़िवित रखता  मृत्यूपरांत जीवनदाता , जहा की सुबह  होती सबसे अलबेली और रातो को भी जागता है हमारा शहर | सिर्फ विश्व के प्राचीनतम शहर न हो कर एक खुबसूरत जज्बात भी है| हमारे शहर की गलियो की रौनक ,स्वादिष्ट खाने की खुशबू , मन्दिरो मे घन्टो की टनटन के साथ रस घोलते हुए आरती के सुमधुर बोल और साथ ही बिना किसी भेदभाव बिना , मजहब के दीवारो को गिराते हुये मस्जिदो से आती हुई अजान की आवाज़ गुजती है कानो मे और माँ  के हथेलियो के स्पर्श जैसे लगती ,हौले  से कहती अब  उठो भी जाओ सुबह हो गयी|

#अब आप अनुमान लगाये मेरे खुबसूरत से शहर का नाम
#बस यू ही..

अकेला (कहानी










                      #अकेला  (कहानी)

                20 दिसम्बर की वो गहरी काली ठन्डी रात थी जब फोन की घन्टी बजी थी ... विनीता ने फोन उठाया तो उधर से आवाज आयी...
# हैलो विनीता आन्टी मै वेद बोल रहा हू |
#विनीता : हा जी बेटा बोलिए क्या हुआ आप इतना घबराये हुए क्यो हो ?
#वेद : आन्टी वो पापा नही रहे |
#विनीता : क्या ? कब ?
#वेद : आज शाम को |
#विनीता : मै पहुचती हू अभी बेटा |
      विनीता ने फोन तो रख दिया लेकिन उसकी नीद उससे कोसो दूर उड़न छू हो चुकी थी | मोबाइल मे उसने समय देखा तो 3 : 30 हो रहा था | विनीता के दिमाग मे कब कहा कैसे क्यो किसने किया होगा ये सब ऐसे ना जाने कितने सवाल एक साथ  विस्फोट करने लगे थे , अभी कल दिन मे ही मेरी व्हाट्सअप पर चैट हुयी थी |ऐसा कुछ तो नही लगा हा थोडा परेशान जरूर लग रहा थि और इन्ही सवालो मे उलझती विनीता ना जाने कब 10 साल पूराने अतीत की गलियो मे उलझती चली गयी.... कैसे वो दोनो मिले थे , जब मिले थे तब दोनो ही एक दूसरे को बिल्कुल भी नही जानते थे , बस कभी कभी सोशल मिडिया पर हाय हैलो हो जाता था .... फिर धीरे धीरे बाते होने लगी और जान पहचान बढ़ती चली गयी | कभी कभी दिलीप की बाते बहुत मासूमियत से भरी होती तो कभी खुराफाती अन्दाज , वैसे तो मै बहुत नकचढी थी , गुस्सा मेरे नाक पर हुआ करता था , लेकिन फिर भी ना जाने क्यु दिलीप की बातो मे एक अजीब सा सम्मोहन महसूस होता था और मै खिचती चली गई थी उसकी ओर | जब दिलीप ने पहली बार विनीता को फोन किया था तो दिलीप की आवाज पहली बार सुन कर विनीता की खुशी मे कितना आश्चर्य मिल गया था ...
   
       #दिलीप :  हैलो मै दिलीप बोल रहा हू जयपुर से.
#विनीता :  हैलो अरररे आप आपको मेरा न. कहा से मिला ..
#दिलीप    जी वो आपके फेसबुक प्रोफाइल से मिला..
#विनीता : अरे उसे तो मैने महिनो पहले हटा लिया फिर आपको..
#दिलीप :   मेरी चश्मेबद्दूर जिगर का छल्ला वो मैने महिनो पहले ही लिया था  सोचा आज फोन भी कर लू आपको कोई तकलीफ तो नही.
#विनीता : अरे कैसी बाते करते है आप अव इसमे क्या तकलीफ होगी | लेकिन गज़ब का धैर्य है आपके पास , आप इतने दिनो से नम्बर रखे थे लेकिन बताया नही और ना ही काल किया | मै तो अब तक ना जाने कितने बार बात कर चुकी होती |
#दिलीप : उफ्फ आप तो नाराज हो गयी  चलिये गुस्ताखी माफ महारानी साहिबा अब तो कर लिया ना...
   कितना हंसमुख मस्त स्भाव वाला था वो कभी कभी उतना ही गंभीर और शान्त हो जाता था | दरअसल वो एक अन्तर्मुखी व्यक्तित्व वाला था|
    कुछ समय बाद मेरी भी नौकरी दिलीप के शहर से कोई  80 कि. मी. दूर किशनगढ़ के एक मार्बल कम्पनी मे लग गयी थी कितनी खुशी महसूस हुयी थी मुझे तब | मैने ये बात तुरन्त दिलीप को बताया था वो भी बहुत खुश हुआ था शायद मुझसे ज्यादा | हम दोनो समझ नही पा रहे थे कि वो खुशी मेरी नौकरी की है या हम दोनो अब मिल सकते है इसकी है| जिस दिन मेरी ज्वाइनिग थी उस शाम दिलीप मुझे ऑफिस से पिकअप करने आया था , वो हमारी पहली मुलाकात थी हमने खाना भी साथ ही खाया फिर वो मुझे मेरे पी.जी. तक ड्राप कर वापस चला गया | तीन साल तक मै किशनगढ़ मे रही और शायद ही कोई ऐसा दिन गुजरा हो कि हमारी बात ना हुयी हो , मुलाकतो का सिलसिला भी साथ मे चलता रहा | कब हम दोनो अनजान से घनिष्ट हो गये पता ही नही चला | फिर कुछ दिनो बाद मेरी इन्दौर के कालेज़ मे नौकरी लग गयी और मै किशनगढ़ से इन्दौर चली आयी | कितना दुखी हुआ था और मजबूर भी था | परिवार को छोड़ना नही चाहता था वो और मेरे साथ भी | कितनी उलझन थी उसके दिमाग मे एक साथ अपना काम परिवार और मै सब कुछ शामिल था उसकी उलझनो मे | और मै भी कहा बहुत खुश थी किस्समत के इस फैसले से लेकिन जिन्दगी गुजारने के लिए नौकरी भी जरुरी थी और जिन्दगी जीने के लिए दिलीप का साथ | कई दिनो थक यै कशमकश चलता रहा दोनो के ही दिमाग मे| और फाइनली विजयी हुआ जिन्दगी का गुजारा | जिन्दगी जीन के अरमान तो कही दिल के किसी कोने मे  दफन  हो गये| और मै इन्दौर आ गयी|  विनीता यू ही अतीत के यादो मे उलझी हुयी थी कि दरवाजे की घन्टी बजी और विनीता एकदम से अतीत से वर्तमान मे आ गयी | घडी मे सुबह के 7 बजा दिये थे और काम वाली बाई ने दरवाजे की घन्टी | विनीता ने दरवाजा खोला और फिर अपने दिनचर्या मे लग गयी | आज उसका मन किसी भी काम मे नही लग रहा था बस घूम फिर कर उसका दिमाग दिलीप और उसके परिवार पर चला जा रहा था क्यु हुआ होगा , सब कैसे होगे आदि |
       फिर भी उसने अनमने मन से सारे दिन का काम निपटाया और ऑफिस मे अगले 2 दिन की छुट्टी की एपलिकेसन दे आयी थी अब रास्ते की तैयारी भी करनी थी उसे आज रात मे ही इन्दौर से निकल कर कल सुबह तक जयपुर पहुचना था |
  सारी रात सफर कर के विनीता अगले दिन के सुबह 6 बजे दिलीप के घर जयपुर पहुच चुकी थी |वहा दिलीप की पत्नी , मोनी और उसके पति , वेद और उसकी पत्नी , और कुछ रिश्तेदार आ चुके थे , कुछ आ रहे थे | सभी रिश्तेदार आपस मे गुपचुप कुछ कुछ बाते कर रहे थे लेकिन घर वालो से निगाहे पड़ जाने पर चुप हो जाते थे| मुझे वहा देख कर वेद मुझे अन्दर ले गया तो मैने अकेले मे वेद से पूछा वेद ये क्या हुआ .... पापा ने ऐसा क्यू किया ये सब लोग आपस मे कैसी बात कर रहे है | ये मै क्या सुन रही हूँ | वेद फफक कर रो पडा और वही रखी कुर्सीयो पर निढाल सा गिर पडा|  उसे सम्भालते हुए  मेरे भी ऑखो से ऑसू आ गये और हम दोनो वही बैठ गये ,और वेद रोते रोते बताने लगा कैसे पिछले कुछ समय से उसके पापा (दिनेश जी ) परेशान थे | उन्होने अपने काम शुरू करने के लिए नौकरी भी छोड़ दी थी और काम भी सही से नही चल पा रहा था ,जिन दोस्तो के भरोसे उन्होने नया काम शुरू किया था सबने धीरे धीरे कर साथ छोड़ दिया था | उन्ही के ऑफिस मे कोई लड़की स्मिता काम करती थी वो भी उनके नये काम मे उनके साथ ही थी और अब ना जाने क्यु पिछले कुछ समय से पापा को धमकिया दे रही थी , वो तो उस दिन पापा का मोबाईल दीदी के पास था जब उस दिन स्मिता ने मैसेज़ किये थे | फिर बहुत जिद करने पर पापा ने बताया कि उनको लगता है ये स्मिता बाकी लोगो से मिल कर उनको बदनाम करना चाहती है , और पैसे ऐठना चाहती है | फिर हमलोगो ने कोर्ट से एन्ट्रीसिपेट्री बेल करायी कि  अगर कही से वो ऐसा कुछ करे तो हम सब पापा को बचा सके |  वेद इतना कुछ हो गया और तुम लोगो ने कुछ भी नही बताया | कुछ दिन पहले ही तो मेरी बात दिनेश जी से भी हुयी थी उन्होने भी कुछ नही बोला हा परेशान जरूर लगे मुझे और जब मैने कहा तो हमैशा की तरह टाल गये | हा जी आन्टी वो नौकरी छोड़ने के बाद से ही पता नही क्यु चुप चुप से रहने लगे थे , उन्होने ही आपसे भी ये सब बताने को मना किया था| कल दिन मे भी स्मिता से उनकी बात हुयी थी शायद |  विनीता की वेद से बात हो ही रही थी कि विनीता के फोन पर अनजान नम्बर से काल आयी | ये फोन श्यामनगर थाने से इन्सपेक्टर दशानन का था |
#इन्सपेक्टर  :  हैलो मैडम आप विनीता जी बोल रही है ?
#विनीता : हा जी मै विनीता बोल रही हू |
#इन्सपेक्टर : जी मै श्यामनगर थाने से इन्सपेक्टर दशानन बोल रहा हू और आप से दिलीप जोशी के केस के बारे मे कुछ पूछताछ करना चाह रहा हू |
#विनीता : जी यहा घर पर बात करना सही नही होगा ,मै ही थाने आ जाती हू |
#इन्सपेक्टर : जी मुझे भी घर पय आना सही नही लग रहा था ,इसीलिए फोन किया |
#विनीता : चलिए कोई नही ,मै आती हू|
    थोडी ही देर मे विनीता श्यामनगर थाने मे इन्सपेक्टर दशानन के ऑफिस मे होती है | इन्सपेक्टर दशानन उसे अपने ऑफिस मे बैठा कर पूछते है कि मैडम आपका और  दिलीप जोशी का कैसा रिश्ता था |
#विनीता  :  जी हम अच्छे दोस्त थे|
#इन्सपेक्टर  : क्या आपको पता है कि कुछ महिनो से दिलीप जी परेशान चल रहे थे और उन्होने पिछले साल सितम्बर मे Anticipetry bail भी  ले रखी थी |
#विनीता  : हा जी सर अभी वेद ने मुझे बताया उनके एन्ट्रीसिपेट्री बेल के विषय मे ,
#इन्सपेक्टर : जी मै भी आपसे यही जानना चाहता हू कि उन्हे एन्ट्रीसिपेट्रि बेल की जरूरत क्यो पडी |आप उनके और उनके काम के बारे मे क्या ,और कितना जानती है |
#विनीता : सर सबसे पहले मै आपसे  कि क्या किसी ने कही कोई FIR करायी थी क्या उनके नाम पर , क्योकि बिना FIR के तो कोर्ट बेल देती नही है | और अगर ऐसा है तो वो कौन है|
#इन्सपेक्टर : वो तो अभी मै नही बता सकता | और आप सही है बिना FIR कोर्ट बेल नही देती | अच्छा आप बताए स्मिता को आप जानती है ?
#विनीता : हा जी वो दिनेश जी के साथ महानगर टाइम्स मे काम करती थी |
#इन्सपेक्टर : आप कभी मिली है उससे , दिनेश जी के परिवार मे स्मिता को लेकर इतना क्रोध क्यु है ?
जबकी उनके काल रिकार्ड और व्हाटसअप मैसेज के  रिकार्डस से पता चलता है कि पिछले दिनो सबसे ज्यादा बाते स्मिता , परिवार के सदस्यो और  आपके नम्बर से ही हुये है |
#विनीता : जी मै उससे कभी मिली तो नही हू | दिनेश जी के परिवार का स्मिता को ले कर क्रोध क्यो है ये भी मै अभी नही बता सकती | लेकिन आप स्मिता को इतना महत्व क्यो दे रहे है |
#इन्सपेक्टर : क्योकि मूझे लगता है कि दिनेश जी के आत्महत्या की कोई ना कोई कडी स्मिता से कही ना कही जुडी है ,हो सकता है आपसे उन्होने जब बात की हो तो , किसी का जिक्र किया हो या फिर वो स्मिता के कारण ही इतने तनाव मे रहे हो और जब तनाव बरदास्त नही हुआ तो उन्होने आत्महत्या जैसा कदम उठा लिया हो |
#विनीता :   दिलीप जी इतने कायर तो नही थे, जो आत्महत्या जैसे कदम उठा ले पर क्या कहू कुछ समझ नही आ रहा अभी , होने को तो बहुत कुछ हो सकता है और कुछ नही भी | 
#इन्सपेक्टर : जी बिलकुल हो सकता है|क्या आपको ऐसा लगता है कि हो सकता है किसी ने उन्हे ऐसा करने को उकसाया हो |
#विनीता : सर आप भी , इतना सुलझा हुआ ,सम्मानित पेशे से जुडा समझदार व्यक्ति भी किसी के उकसाने पर ऐसे बेवकूफी वाले काम कैसे कर सकता है..और फिर आप ही बता रहे है कि उन्होने कोर्ट से बेल ले रखी थी | तो कही तो कोई तो FIR दर्ज हुयी होगी |
#इन्सपेक्टर :  ओ के मैडम तो इस बारे मे और कुछ नही पता ?
#विनीता : जी नही
#इन्सपेक्टर   :  ठीक है मैडम अगर कोई सूचना मिले तो बताइयेगा | और जब तक ये केस खत्म नही होता आप अपने काल डिटेल्स और मैसेज को डिलीट नही करेगी|
#विनीता  :  जी सर
#इन्सपेक्टर :  जी समय देने के लिये बहुत बहुत धन्यवाद | आगे फिर अगर आपकी जरुरत पडी तो बुलायेगे |
#विनीता  :  जी जरूर
   इसके बाद विनीता तो वापस इन्दौर आ गयी लेकिन उसका दिल दिमाग वही कही रह गया था जयपुर मे |
वो हमेशा दिलीप के ही ख्यालो मे खोयी रहती वो ऐसा कैसे कर सकता था | उसके जैसा समझदार सुलझा व्यक्ति ऐसा कैसे कर सकता है उसका तो वो व्यक्तित्व था कि अगर वो जिद पर आ जाये तो सामने वाला अपनी जान दे दे फिर उसने किसी के उकसाने भर से ऐसा कैसे कर किया होगा | ऐसा तो नही कि स्मिता कही उसे ब्लैकमेल कर रही थी | ऐसी कौन सी बात थी जो उसे खाये जा रही थी किसी से तो खुल कर बोल सकता था | मै थी उसकी पत्नी , बच्चे सभी तो थे | फिर आखिर वो अकेला क्यो और कैसे पड़ गया |