मेरे बचपन का शहर बसता है छोटी बडी पतली चौडी गलियो मे ,गंगा और गंगा किनारे बने हुये सुन्दर मनोरम घाट ,गंगा के उस पार बहुत विशाल खुला रेतीला मैदान | संगीत व कला का उपासक , संस्कृती का संवाहक , कजरी ,ठुमरी और बासुरी की धुन ... शिक्षा की राजधानी , माँ सरस्वती विराजती ,जीवन को ज़िवित रखता मृत्यूपरांत जीवनदाता , जहा की सुबह होती सबसे अलबेली और रातो को भी जागता है हमारा शहर | सिर्फ विश्व के प्राचीनतम शहर न हो कर एक खुबसूरत जज्बात भी है| हमारे शहर की गलियो की रौनक ,स्वादिष्ट खाने की खुशबू , मन्दिरो मे घन्टो की टनटन के साथ रस घोलते हुए आरती के सुमधुर बोल और साथ ही बिना किसी भेदभाव बिना , मजहब के दीवारो को गिराते हुये मस्जिदो से आती हुई अजान की आवाज़ गुजती है कानो मे और माँ के हथेलियो के स्पर्श जैसे लगती ,हौले से कहती अब उठो भी जाओ सुबह हो गयी|
#अब आप अनुमान लगाये मेरे खुबसूरत से शहर का नाम
#बस यू ही..
#अब आप अनुमान लगाये मेरे खुबसूरत से शहर का नाम
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