Saturday, 21 November 2020

चुभन ज़िन्दगी की

 

         उम्र का तजुर्बा यही कहता है कि बच्चों का भविष्य बनाये और साथ ही अपने बुढ़ापे के लिए  दाल रोटी का भी जुगाड़ करके..खुद ही रख लें जवानी में......आगे कम्पीटिशन टफ है और इनकम का सोर्स कम..ऊपर से भागम भाग जिंदगी।
       

         अभी हम जिस काल में हैं, हमारे अभिभावक निश्चय ही बेहतर जीवन व्यतित कर रहे हैं जो कि हमें हासिल नहीं होगा , और जो जीवन हमारे दादा दादी, नाना नानी ने जिया नि:सन्देह कुछ मामलों में वो हमारे अभिभावकों के जीवन से भी से बेहतर था। वृद्धावस्था का जीवन पीढ़ी दर पीढ़ी कुछ मामलों में बदतर ही हुआ है। यह भी एक कटु सच है ।
      

          आप चाह कर भी बच्चों पर डिपेंड नही हो पाओगे और न ही बच्चे आपको वह साथ और सहयोग दे पाएंगे,जिसके आप हकदार हो तो ,और जहां तक हो सके उनसे...अपेक्षाएं कम ही पालें।वरना दुखी होना पड़ेगा।

           हम सब आये दिन देखते सुनते रहते हैं कि जब..बच्चे अपने माता-पिता को बृद्धाश्रम छोड़ देते है। ये सब देख सुन कर हमारी पीढ़ी में खुद से ही वृद्धाश्रम जाने के लिये कही ना कही मानसिक रूप से तैयार हो रही हैं।

         जो काफी हद तक सही भी हैं, ज़िन्दगी के जद्दोजहद में उलझे बच्चों के पास हमारे  लिए टाइम होगा नहीं।शुरू से भरे पूरे परिवार में रहने वाले हम जब उम्र के उस मोड़ पर पहुँच जायेगें,जहॉ किसका जीवनसाथी भी कब साथ छोड़ दे कहा नहीं जा सकता.... तो कम से कम अपने हमउम्र लोगों का साथ तो मिलेगा।और अपनी स्वेच्छा से बच्चों को स्वतन्त्र जीवन जीने को छोड़ देने से मानसिक कष्ट भी कम होगा।

  क्योंकि ज़िन्दगी के हर चुभन को निकालना है, वो चुभन कुछ भी कैसी भी  क्यु ना हो।☺️




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