Friday, 30 December 2011

इस भरी दुनिया में कोई भी हमारा न हुआ ......

                    आज इस भीड़ भरी दुनिया में भी हर  शख्स अकेलेपन का शिकार सा है ...आखिर क्यों है ऐसा आज हमारे पास भौतिक जगत की सारी सुविधाये है ..भगवान के दिए हुए माता पिता भाई बहन और बाकि रिश्तेदार भी है ..फिर भी हर दूसरा व्यक्ति अकेलेपन की समस्या से ग्रसित है ......
.                .इसके कारण शायद हम खुद ही है आज का इन्सान इतना ज्यादा भौतिकतावादी हो गया है की उसके पास अपनों के पास बैठने के लिए समय ही नहीं ..न ही वो माता पिता को समय दे पता है न ही परिवार के अन्य सदस्यों को...और तो और आज की माताये भी अपने बच्चो को पूरा समय नहीं दे पाती
और न ही उनके पिता आज आधुनिक युग में बच्चो की परवरिश उनके आयाओ के भरोसे पे हो रही है ......
                आखिर क्यों हम अपने माता पिता को समय नहीं दे पाते.......हम अपने बच्चो के साथ क्यों उनका बचपना नहीं जी पाते जैसे   हमारे माता पिता हमारे साथ जीते थे ...हम उन्हें भौतिक जगत की सारी चीज़े दे रहे है बस अपना अमूल्य समय ही नहीं दे रहे जिसके कारण वो उन संस्कारो से वंचित हो जा रहे है ..जो हम उन्हें जाने अनजाने दे देते ..जो उन्हें विरासत में उनके दादा दादी दे देते ....
              आज हम ये भूल जाते है की जो आज हम अपने बच्चो को जाने अनजाने दे रहे है वही कल हमे ब्याज के साथ वापिस मिलने वाला है ...हम बच्चो
 के भावनात्मक विकास को अवरूध कर रहे है .कही न कही..आज कभी हम परेशान होते है की हमारे साथ कोई भी नहीं है लेकिन क्या हम कभी ये देखते है हम किसी के साथ कभी थे  या है की नहीं ...
              .आज हम अपनों के लिए समय न होने का रोना रोते है तो कल उनके पास हमारे लिए समय कहा से आएगा ......

Thursday, 29 December 2011

भ्रष्टाचार...........भारत सहित दुनिया भर में सबसे गंभीर मुद्दा...........

    भ्रष्टाचार रोकने के लिए जन लोकपाल बिल लाने की माँग करते हुए अन्ना हज़ारे का आंदोलन दोबारा शुरू हो गया है. मगर कई लोगों को ऐसा लगता है कि भ्रष्टाचार भारत में जड़ें जमा चुका है और उसे हटाना आसान काम नहीं होगा.

भ्रष्टाचार एक ऐसी समस्या है जिसके बारे में लोग बातें करना और भाषण देना बहुत पसंद करते हैं लेकिन व्यवहार में कुछ भी नहीं बदलता. भ्रष्टाचार से निबटने के बारे में भी सैकड़ों सुझाव सामने आते रहते हैं.
   
    भ्रष्टाचार शब्द एक ऐसा तिलिस्म सा बनता जा रहा है जिसे रोक पाना किसी भी सरकार के लिए असंभव सा बनता जा रहा है.भ्रष्टाचार की मुख्य जड़ उसके अंदर छिपी हुई अभिलाषा है.जब तक इंसान अपनी सोच और आवश्यकता नहीं बदलेगा तक दुनिया का कोई भी क़ानून बनाने से कुछ नहीं होगा. इसलिए अब ऐसे सार्थक लोकपाल बिल की दरकार है जिसके मार्फ़त भ्रष्ट तत्वों पर कानूनी शिकंजा कसा जा सके. देश में भ्रष्टाचार एक ऐसा रोग बन गया है जिसका इलाज अब कानून बनाए बिना होने वाला नहीं है
    .भ्रष्टाचार हाथ पर हाथ रखकर बैठने से तो ख़त्म नहीं होगा या हम ऐसा सोचे कि कोई फ़रिश्ता आएगा और भ्रष्टाचार समाप्त करेगा.ऐसा कभी नहीं होगा.इसे ख़त्म करने के लिए किसी ना किसी को पहल करनी होगी और अगर किसी ने पहल नहीं की तो हम कुछ नहीं कर सकते हैं.
     भ्रष्टाचार का मतलब बारूदी सुरंग वाले क्षेत्र में फॅस जाने जैसा है एक कदम हिलाया नहीं कि विस्फोट में जान गॅवाना या विकलांग होना ही है। इसलिए किसी भ्रष्टाचारी को तिहाड में भेजकर न तो खुश होने जैसी कोई बात है और न ही इससे संतोष किया जा सकता है.भ्रष्टाचार के खिलाफ भाषण देना और लड़ना अलग अलग बात है अगर आप किसी को रिश्वत लेते हुए या देते हुए देखते हैँ उसके खिलाफ जोखिम लेकर साक्ष्य एकत्र करते हैँ और जाँच मेँ अगर अधिकारी पूछता है न तो आप से ली गयी न आपने दी है तो आपको क्या परेशानी है हू आर यू. अपने पैसे और समय खर्च करने के बाद ऐसे सवाल बहुत तकलीफ देते हैँ...
      उन कारणों का पहचान कर ठीक करना होगा जिसके कारण लोग भ्रष्टाचारी होते जा रहे है.
सबसे बड़ी बात है भ्रष्टाचार विरोधी चर्चा का होना. चर्चा से जागरूकता बढ़ती है. हर व्यक्ति अगर बरबस भ्रष्टाचार विरोधी चर्चा एवं जागरूकता को अपनी जीवनशैली मे शामिल कर लेगा तो भ्रष्टाचार अपने आप कम हो जाएगा.
     भ्रष्टाचार एक ऐसी बुराई है जिसे जड़ से मिटाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है. भारत में जबतक लोगों को जागरुक नहीं किया जाएगा तब तक इसे ख़त्म करना असंभव है.शोध एवं विरोध से काफ़ी हद तक भ्रष्टाचार कम किया जा सकता है
     

Sunday, 18 December 2011

aap apne phasle jitni jaldi ho sake le le.......


जल्द फैसला लेने वालों के लिए खुशखबरी है. एक शोध का दावा है कि जल्दी निर्णय लेने वाले लोग ज्यादा खुश रहते हैं बजाये उनके जो जिंदगी में अहम पड़ाव पर निर्णय के बारे में जूझते रहते हैं.
अध्ययनकर्ताओं को पता चला है कि ज्यादा देर से निर्णय लेने वाले ज्यादा दुखी और परेशान रहते हैं, जबकि तुरंत फैसला लेने वाले चिंतामुक्त तो रहते ही हैं बेहतर जिंदगी भी जीते हैं.
‘डेली मेल’ की खबरों के मुताबिक, अध्ययनकर्ताओं ने दो समूहों में बांटकर लोगों का अध्ययन किया. एक में ऐसे लोगों को रखा गया जो हर चीज को लेकर परेशान रहते हैं, जबकि दूसरे समूह में ऐसे लोग थे जो निर्णय लेने के प्रति शंकालु नहीं रहते.
उन्होंने दावा किया कि दुविधा की स्थिति में फंसे रहने वाले लोग ज्यादा परेशान रहते हैं. उनके अनिर्णय के कारण ‘सहयोगी’ यानि ‘गर्लफ्रैंड’ या ‘ब्ऑयफ्रेंड’ का साथ छूटने का डर से लेकर कैरियर पर असर और स्वास्थ्य को भी इससे नुकसान पहुंचता है.
शोध को लेकर प्रोफेसर जोएस एरीलिंगर ने कहा कि नौकरी के लिए आवेदन करने, साथी का चुनाव, घर खरीदने या ऐसे ही किसी अहम पड़ाव पर जल्द फैसला नहीं लेने वाले लोग अधिक ‘नर्वस’ रहते हैं.

Saturday, 10 December 2011

घर से निकलने से पहले कुछ मीठा जरुर खाना चाहिए, क्योंकि..

कहा जाता है कि किसी भी शुभ कार्य को करने से पहले मुंह मीठा करना चाहिए, कोई मिठाई या दही, शकर खाना चाहिए। यह परंपरा भी पुराने समय से ही चली आ रही है। आज भी कई लोग घर से निकलने के पूर्व कुछ मीठा खाते हैं।

हम जब भी किसी परीक्षा या किसी शुभ कार्य के लिए घर से निकलते हैं तो हमारे बुजुर्ग कुछ मीठा खाकर जाने की बात कहते हैं। आखिर इससे फायदा क्या होता है?

ऐसा माना जाता है मीठा खाकर कुछ भी कार्य करने से हमें सफलता मिलती है। मीठा खाने से हमारा मन शांत रहता है। हमारे विचार भी मिठाई की तरह ही मीठे हो जाते हैं। हमारी वाणी में मिठास आ जाती है। यदि हमारा मन किसी दुखी करने वाली बात में उलझा हुआ है और हम मीठा खा लेते हैं तुरंत ही मन प्रसन्न हो जाता है। मीठा खाने के बाद हम किसी भी कार्य को ज्यादा अच्छे से कर सकते हैं। 

साथ ही घर से निकलते समय मीठा खाने से हमारे सभी नकारात्मक विचार समाप्त हो जाते हैं और हमारे अंदर सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। कुछ लोग दही और शकर खाकर किसी भी शुभ कार्य की शुरूआत करते हैं। दही में खटास होती है और शकर में मिठास। इस खट्टे-मीठे स्वाद से हमारा मन तुरंत ही दूसरे सभी बुरे विचारों से हट जाता है। मीठा खाने से रक्त संचार बढ़ जाता है। एनर्जी मिलती है।

शुभ कार्य के पहले मीठा खाना चाहिए परंतु ज्यादा मीठा स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।