Sunday, 18 July 2021

गर्मी , तो बस गर्मी ही होती है।



गर्मी , तो बस गर्मी ही होती है। 
गर्मी सिर्फ मौसम में ही नहीं,
शब्दों में भी होती है,
पैसों में भी होती है गर्मी,
गर्मी सिर्फ मौसम मे ही नही,
अहंकार की भी होती गर्मी,
भूख की भी होती हैं गर्मी,
समंदर की भी होती अपनी गर्मी,
शरीर में भी होती हैं गर्मी,

गर्मी से तपती है धरती
जो चुभती है दिलों में
जो रुलाती है इन आंखों को
एक टीस सी उठती हैं मन में
जला देती हैं कई बार 
रिश्तों के मखमली एहसास को
कई बार गर्मी के ताप से
स्वाहा हो जाता  सबकुछ

इसीलिए गुजरता हुआ वक्त , ढलती हुई उम्र , 
गिरती हुई बारिश की बूंदे 
कानों में कह जाती हौले से
थोड़ा सा धीरज रखें
मुश्किल से वक्त में
गर्मी किसी की भी हो
कैसी भी हो 
रहती नही सदा टिक कर हैं

नीलम वन्दना

गर्मी


गर्मी
गर्मी ने तेवर दिखाया
सूर्य देव ने साथ निभाया
कूलर ए सी ने दिया जवाब
सबके हुए हाल खराब
क्या बच्चे, बुढ़े और जवान
दोपहरी में सड़के हुई वीरान

पशु पक्षी भी रहते बेहाल
आम,जामुन, खीरे, तरबूज
कोशिश करते लाने की बाहर
पन्ना, सिकंजी, लस्सी और 
कुल्फी ले आते जान में जान...
नीलम वन्दना

Thursday, 8 July 2021

Democracy 2019

Democracy 2019 
         डेमोक्रेसी हमारा मूवी के बैनर तले बनी एक बेहतरीन शार्ट मूवी है जिसका निर्देशन आदित्य अग्निहोत्री जी ने किया है।  मूवी डेमोक्रेसी में मुख्य भूमिका निभाई है सिद्धार्थ स्वामी जी (पिता),ऋतु डालमिया जी (माता),अजिंक्या मिश्रा जी (सोनू)और त्रयंबक शुक्ला जी (चिन्टू)। फिल्म में गीत संगीत दिया है गौतम केशवानी जी ने तथा पुनः आदित्य अग्निहोत्री जी व आशुतोष अग्निहोत्री जी ने मिलकर  स्क्रीनप्ले व संवाद लिखा है।
         फिल्म में सभी किरदारों के स्वाभाविक और जानदार अभिनय ने फिल्म में जान डाल दी हैं। फिल्म के शुरू में अजिंक्या मिश्रा जी और त्र्यंबक शुक्ला जी की बातचीत हो जिसमें वो अपना गुस्सा मिश्रित नाराज़गी ज़ाहिर कर रहे होते हैं कि जब खुद के मन की ही करनी होती है तो आखिर उनसे पूछा हि क्यों जाता है, या फिर डाइनिंग टेबल पर इस बार छुट्टियों में घुमने का लोकतांत्रिक प्रक्रिया से निर्णय करते पिता के किरदार में सिद्धार्थ स्वामी जी और उनकी पत्नी के भूमिका में ऋतु डालमिया जी के चेहरों के उतार चढ़ाव बच्चों की उत्सुकता हो या फिर सफर के दौरान बच्चों का आश्चर्य चकित होना और सिद्धार्थ जी का शान्त भाव से बच्चों को समझाना, किचन में खाना बनाते हुए या आखिर में अपनी हार देख तुनक कर उठती हुई ऋतु जी का अभिनय हो।
       गौतम केशवानी जी का गीत संगीत भी बढ़िया है।फिल्म के अन्त में लिया गया गीत "भाई कितने भेष बदला ले" कहानी में  पूरी तरह से फिट बैठता है।
        फिल्म में संवादों की अदायगी जितनी खूबसूरत है ,उतने ही बेहतरीन संवाद भी है वो चाहे शुरू में बच्चों की खीझने वाले हो, डाइनिंग टेबल पर के वार्तालाप हो, सफर के दौरान पूछे गए बच्चों के सवाल हो या फिर सिद्धार्थ स्वामी जी द्वारा दिए गए उनके जवाब।
     12 मिनट 56 सेकेंड की अवधि की मूवी में निर्देशक दिखाना चाहते हैं कि कैसे लोकतंत्र के नाम पर लम्बे चौड़े प्रोसेस निभाये जाते हैं, निर्णय भी लिया जाता हैं, उसके बाद बन्द दरवाजे के पीछे जा कर कैसे वो निर्णय बदल दिये जाते हैं और जनता मन मसोस कर मूकदर्शक बनी रह जाती हैं। कुशल निर्देशन का परिचय देते हुए आदित्य जी फिल्म अवधि में दर्शकों को बांधे रखने में और फिल्म को माध्यम बना कर, जो सन्देश देना चाहते थे उसमें पूर्णतः सफल रहे हैं।

Sunday, 4 July 2021

कलयुग की अभिमन्यु

रचो चक्रव्यूह
तुम सब चाहे जितने ,
सारे चक्र तोडूंगी,
रण से मुँह ना
कभी मोड़ूँगी ,
सफलता का ताज पहनूंगी मैं
कायर नहीं वीरांगना हूं मैं,
कलयुग की अभिमन्यु हूँ मैं ।

सामने समन्दर हो चट्टान हो
बवंडर हो या हो तुफ़ान....
अब लक्ष्य से डीगा सके
ऐसी कोई बला नहीं...
कायर नहीं वीरांगना हूं मैं,
कलयुग की अभिमन्यु हूं मैं ।

तोड़ सारे मिथक
सबको दिखलाऊंगी मैं,
विजय ध्वजा फहराऊगी,
द्वापर की कहानी
अब नहीं दुहराउंगी मैं,
कायर नहीं वीरांगना हूं मैं,
कलयुग की अभिमन्यु हूं मैं ।

क्षितिज को छुने का ख्वाब है
दिलों में प्यासा सैलाब हैं,
साकार करूंगी वो सपने सारे
जो माता पिता ने देखें है ,
मेहनत से मुंह ना मोड़ूगी मैं
कायर नहीं वीरांगना हूं मैं,
कलयुग की अभिमन्यु हूँ मैं ।

जिनको आज है सन्देह
वहीं कल कन्धों पर बैठायेगें
रवि - शशी विजय उद्घोष करेंगे...
हासिल वो मुकाम करूंगी
कायर नहीं वीरांगना हूं मैं,
कलयुग की अभिमन्यु हूँ मैं ।