Sunday, 12 September 2021

फिर भी जी गई।।

ना मैं गिरी, 
ना मेरी उम्मीदों के बुर्ज़-ए-मीनार गिरे ।
पर मुझे गिराने वाले, 
लोग कई-कई बार गिरे।।
सवाल जहर का नहीं था, 
वो तो मैं हंस कर पी गई।
तकलीफ तो लोगों को तब हुई, 
जब मैं फिर भी जी गई।।

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