Monday, 16 December 2019

सर्दी की वो रात

  सुनो ना..
             ये सर्द मौसम अब थोड़ा आशिक़ाना भी हो   गया है....काले घने बादल इस तरह उमड़ घुमड़ कर   आ रहे हैं , जैसे तुम्हारी यादें आती हैं...रह रह कर   बिजली बिल्कुल तुम्हारे तरह कड़कते हुये डरा रही।   है, और तुमसे ही डर कर मैं तुम्हारे ही आगोश मे     सिमट जाना चाहती हूँ।
             बारिश की बूँदों सराबोर कर दिया है इस ।     मिट्टी को और मिटटी से आती हुई सौंधी सौंधी खुशबू   तुम्हारे यही कही मेरे आस पास  होने का एहसास   करा रही है । ये तुम्हारे होने का एहसास ये महक।   मदहोश कर रहा है ।
             इस बारिश की बूँदों ने तुम्हारे प्यार की तरह।  मुझे सराबोर कर दिया है, और मैं दीवानों जैसे       तुम्हारी उस पुरानी तस्वीर को जो सालों पहले हमने   लिया था एक ऐसी ही सर्द रात में को एक टक निहार रही हूँ इसी उम्मीद में कि एक दिन तो ऐसा फिर से   ज़रूर आएगा जब तुम मेरी बाँहों में होगे हमेशा के   लिये।
#बस_यू_ही

अज़ब मुलाकात की गज़ब कहानी


अज़ब मुलाकात की गज़ब कहानी

वो मुलाकात ,
पहली मुलाकात थी,
तुमसे भी और जिन्दगी से भी.
कितनी अजीब थी,
कितनी अचानक.
ना तुम्हे पता था ना हमे गुमान...
किसे पता था,
नौकरी के साक्षात्कार के साथ...
जिन्दगी से भी सामना हो जायेगा...
वो तुम्हारा हौले से पूछना ,
कि क्या हमसे भी मिलोगी।
वो मेरा वैसे ही हॉमी भरना,
वो गुलाबी शहर का वो,
गुलाबी सा सिन्धी कैम्प...
क्या गज़ब इत्तेफाक था।
गुलाबी सूट मेरा और ,
वो अनजाने मे ही तुम्हारे
शर्ट का गुलाबी होना।
कितना अजीब था ना सब
पहली मुलाकात में 
एक जान पहचान वाले 
अनजान के साथ 
वो घन्टों तक गुलाबी शहर 
की सड़को पर घूमना,
जयपुर के मोक्ष बजार से विश्वविद्यालय तक 
जौहरी बाजार से ऐलीमेन्ट मॉल तक घूमना
वो लम्बी कभी खत्म ना होने वाली बातें,
घर से कालेज तक
नौकरी से परिवार तक
अन्ना से मोदी तक 
कुछ भी तो ना छूटा था 
अपनी बातों में...
बातों बातों में कैसे 
घन्टे पलों मे बदल गये 
खबर भी नहीं...
वो हमारी रवानगी का 
आलम भी कितना गज़ब था।  
आखिर में मेरा बस के टिकट के लिये जाना और बस वाले का टिकट के लिये मना करने पर मेरा परेशान होना...
वो आपका टिकट के लिये तुरन्त जाना 
और ले कर आना...
कितना कुछ तो कह गया था 
जो था अनकहा सा।
आपकी रूमानियत से भरी
नज़रे टिकी हुयी थी 
मेरे चेहरे पर और 
चाहती थी उतर जाना दिलों में।
तभी देखा था हमने भी
पहली बार आपकी चेहरे को , 
पकड़ी गयी थी आपकी पहली चोरी।
उलझ गयी थी नज़रे हमारी।
जितना अज़ीब था ना वो पहली मुलाकात  
उतना ही गज़ब था हमारी रवानगी
ऑखो ऑखों मे चुरा ले गये थे 
आप मेरा सब कुछ 
गुलाबी होठ आपके, 
मदहोश सी ऑखें,
पीछा करते हुये 
साथ आ गयी थी हमारे।
#बस_यू_ही



Sunday, 24 November 2019

दिल चाहता है

                         दिल चाहता है

     हाँ मै दिल से चाहती हूँ....
     कुछ दिनों या महीनो बाद,
      एक दिन  मुझे फोन करो,
     और वो फोन मेरी ओर से ना उठे ...
     तुम एक दो तीन चार बार और कोशिश करो,
     और फिर भी बस फोन की घंटी बजती रहे.....
     कुछ दिन और गुज़र जाने के  बाद, तुम्हे थोड़ी।         और फ़िक्र हो,और मुझसे बात करने को बेसब्र हो       जाओ...
     तुम मैसेज करो एक के बाद एक कई सारे...
     और वो संदेश प्रेषित तो हो जाये, लेकिन
     उनका कोई भी जवाब
     फिर कभी नहीं आए...
    फिर तुम बेकरार हो कर
    सोचो मेरे बारे में,
    मेरी हर बात,
    मेरी आवाज़,मेरा चेहरा... 
    तुम्हारे लिए मेरी फ़िक्र..
    मेरे साथ बिताया हर एक लम्हा..
    तुम्हारी बिना बात की नाराज़गी
    पर भी यू दिल से मनाना।
    वो मेरा तुम्हे सताना,और चिढ़ाना....
    फिर तुम्हारा मान कर भी फिर से चिढ़ जाना।
    फिर से तुम मुझे कई बार फोन करो,
    कभी अपने दूसरे नम्बर से ,
   कभी अपने किसी मिलने वाले के फोन से।
   और फिर भी कोई जवाब ना मिले,
    तुम फिर से मुझे संदेश भेजो
    जिसका कोई जवाब न मिले..
    तुम अचानक बहुत बेचैन हो जाओ,
    तुम्हें सब कुछ याद आता रहे,
    तुम लगातार मेरे बारे में सोचो...
    तुम्हे सब कुछ याद आये..
     सब कुछ...
    और फिर तुम्हें नींद न आये..
    बस मेरी याद आये...
    तुम मुझे सोशल मिडीया पर ढूँढो..
    फिर संदेश करो..
     फिर फोन करो..
    फिर कोई जवाब न मिले..
    तब तुम फोन में अननेम्ड फोल्डर खोलकर..
    मेरी और अपनी तस्वीरें देखो...
    तुम्हे गुस्सा आये,
    चीढ हो, तुम्हे रोना आये..
    तुम्हें एहसास हो
    कि मैंने कैसे गुज़ारा होगा ,
   वो तुम्हारे जुदाई के पलों को ।
   एहसास हो तुम्हे किसी के लिये
    परेशान होना क्या होता है..?
    क्या होता है टूट जाना...?
    फिर कुछ अच्छा भी नहीं लगेगा तुम्हे,
    तब तुम हर जगह मुझे ही ढूँढोगे...
   बस एक बार ,आखिरी बार मुझे देखना चाहोगे,
    मुझे सुनना चाहोगे..मेरे सीने से लग कर ,
    मुझसे लिपटकर रोना चाहोगे..
    तुम दिवाने हो जाओगे ,उस प्यार के लिए,
    जो सिर्फ और सिर्फ मुझसे मिल सकता था..
   और उस हाल में, तुम्हे सुनने  वाला
  तुम्हारे माथे को चूमने वाला, तुम्हे सीने से लगाने।      वाला ...कोई नही होगा ..."मैं"....भी नही....
  तुम महसूस करो दिल का टूटना,
   कैसा लगता है जब कुछ अन्दर तक टूट जाता है।
  सब कुछ बिखर सा जाता है, अकेलेपन में रोना..
   किसी से बहुत कुछ कहने की चाहत
   और  कुछ भी न कह पाने की बेबसी..
   सारे काम ज़बरदस्ती से लगे,
   बस हर वक़्त किसी नशे की ज़रूरत लगे,
   नींद की गोलियों का भी कोई असर ना हो,...
  हर वक़्त..सोते जागते,
   बस मैं ही रहूँ..
   तुम्हारे दिमाग में रहूँ...
   उस वक़्त...जब ये सब हो..
   शायद तुम्हे समझ आये..
    कि तुम कितने गलत थे...
  तुमने क्या किया..?और तुम्हे क्या मिला था..?
   और तुमने क्या खो दिया...? तब तुम्हें समझ आएगा...
  मैं किस हाल में थी..मैं ये सब दिल से चाहती  हूँ..
   हाँ..सच में..पर एक सच ये भी है..
   कि आज भी मैं तुम्हारे  फोन और संदेशों को
   चाह कर भी बड़ी मुश्किलों के बाद भी अनदेखा।   नही कर पाती  हूँ..
   आज भी हर व्हाटसअप पर लगी फोटो
   छुपा लेती हूँ दुनिया की नज़रे बचा  कर.....
   आज भी सिर्फ तुम्हे
   ऑनलाइन देखने के लिए
   फोन देखती हूँ....
   और लास्ट सीन बहुत पहले का देख बेचैन हो जाती। हूँ।
    पर फिर भी अब कोई संदेश  नहीं करती और
   ना ही करूँगी ..
    क्योंकि मैं दिल से चाहती  हूँ..
    तुम एक बार महसूस करो....

    जो मैं करती थी!!
    करती हूँ...!!!
💔

Tuesday, 15 October 2019

गर याद हो गुलाबी शहर की वो गुलाबी शाम

       हमने प्यार में कोई पागलपन नहीं किया। ना एक दूसरे के नाम के टैटू शरीर पर गुदवाये, ना नीट वोदका पी, ना समंदर किनारे दिन दहाड़े प्यार किया , ना रातभर जग कर बाते करी । लेकिन जो कुछ भी किया वो किसी और के बस की बात भी नही .......बस आपको  छू के देखा है और हर बार कोशिश की है आपके खुशबू को ,आपको महसूस करने की । कई बार बिना देखे भी महसूस किया है अपने आस पास , बहुत करीब मे ..हमने कुछ शामे कुछ रातें साथ मे गुजारी है और साथ मे होते थे सिर्फ  हम आप और हमारी खामोशी , वो भी एक कोशिश थी आपकी खामोशियों को पढ़ने की ....आपको बिना छुए  , दूरियो के साथ महसूस करने की , और ये सब मैने किया है ....पायी है कामयाबी आपकी खामोशियों को पढ़ने की ,आपको समझने की और आपसे दूर रह कर भी आपको महसूस करने की | आपकी खुशबू बिखर जाती है कई बार मेरे आसपास , जब आप हमसे बहुत दूर होते है तब भी और बहुत मुश्किल होता है खुद का खुद मे होना।
        आपको पता है , जब आप रेलवे स्टेशन पर छोड़ गये थे.  हम देर तक भीगते रहे आपकी यादो मे और मेरे ऑसूओ से भीगें थे मेरे दोनो गाल और कन्धे की शर्ट तुम्हारे ।तुम्हारी ज़ुदाई मे जार जार रोया था दिल मेरा और मेरे इय गम मे साथी थे इन्द्र देव के बादल भी । उन्होने भीगा दिया था पूरा गुलाबी शहर , ख्वाजा का शहर और सीमाए तोड़ दी थी नगरों की। नवीबों का कहे या झीलो का शहर कहे .... इन सबने पूरा साथ दिया था मेरा उस ज़ुदाई के पलों मे भी, मुझे याद है पूरी रात बरसा था बादल उस रोज़।
         जुदा होते वक़्त आप आये थे मेरे पास बहुत पास तक और छुआ था सिर्फ मेरी बाहो को और आपकी उस छुअन मे कशिश थी सबके सामने सबकी नज़रे चुरा कर मुझको बाहो मे भर लेने की |वो कुछ अलग सा था पर मुझे बहुत अच्छा लगा था वो आगोश़।
       आपके मुझे छोड़ कर वापस जाते वक़्त मैं रोक लेना चाहती थी और ज़ोर से चिल्लाना चाहती थी  कि  "आप रोज ऐसे ही क्यों नहीं रहते , आप मत जाइये ना" !!!!
बस यू ही
गर याद हो वो गुलाबी शहर की गुलाबी शाम

Saturday, 24 August 2019

आप से तुम की यात्रा....📝

कभी सूरदास ने एक स्वप्न देखा था, कि रुख्मिनी और राधिका मिली हैं और एक दूजे पर निछावर हुई जा रही हैं।

सोचता हूँ, कैसा होगा वह क्षण जब दोनों ठकुरानियाँ मिली होंगी। *दोनों ने प्रेम किया था। एक ने बालक कन्हैया से, दूसरे ने राजनीतिज्ञ कृष्ण से। एक को अपनी मनमोहक बातों के जाल में फँसा लेने वाला कन्हैया मिला था, और दूसरे को मिले थे सुदर्शन चक्र धारी, महायोद्धा कृष्ण।*

कृष्ण राधिका के बाल सखा थे, पर राधिका का दुर्भाग्य था कि उन्होंने कृष्ण को तात्कालिक विश्व की महाशक्ति बनते नहीं देखा। राधिका को न महाभारत के कुचक्र जाल को सुलझाते चतुर कृष्ण मिले, न पौंड्रक-शिशुपाल का वध करते बाहुबली कृष्ण मिले।

*रुख्मिनी कृष्ण की पत्नी थीं, महारानी थीं, पर उन्होंने कृष्ण की वह लीला नहीं देखी जिसके लिए विश्व कृष्ण को स्मरण रखता है। उन्होंने न माखन चोर को देखा, न गौ-चरवाहे को। उनके हिस्से में न बाँसुरी आयी, न माखन।*

कितनी अद्भुत लीला है, राधिका के लिए *कृष्ण कन्हैया था,* रुख्मिनी के लिए *कन्हैया कृष्ण थे।* पत्नी होने के बाद भी रुख्मिनी को कृष्ण उतने नहीं मिले कि वे उन्हें *"तुम"* कह पातीं। *आप से तुम तक की इस यात्रा को पूरा कर लेना ही प्रेम का चरम पा लेना है।* रुख्मिनी कभी यह यात्रा पूरी नहीं कर सकीं।

*राधिका की यात्रा प्रारम्भ ही 'तुम' से हुई थीं। उन्होंने प्रारम्भ ही "चरम" से किया था। शायद तभी उन्हें कृष्ण नहीं मिले।*

कितना अजीब है न! कृष्ण जिसे नहीं मिले, युगों युगों से आजतक उसी के हैं, और जिसे मिले उसे मिले ही नहीं।

तभी कहता हूँ, कृष्ण को पाने का प्रयास मत कीजिये। पाने का प्रयास कीजियेगा तो कभी नहीं मिलेंगे। बस प्रेम कर के छोड़ दीजिए, जीवन भर साथ निभाएंगे कृष्ण। कृष्ण इस सृष्टि के सबसे अच्छे मित्र हैं। राधिका हों या सुदामा, कृष्ण ने मित्रता निभाई तो ऐसी निभाई कि इतिहास बन गया।

राधा और रुख्मिनी जब मिली होंगी तो *रुख्मिनी राधा के वस्त्रों में माखन की गंध ढूंढती होंगी, और राधा ने रुख्मिनी के आभूषणों में कृष्ण का बैभव तलाशा होगा।* कौन जाने मिला भी या नहीं। सबकुछ कहाँ मिलता है मनुष्य को... कुछ न कुछ तो छूटता ही रहता है।

*जितनी चीज़ें कृष्ण से छूटीं उतनी तो किसी से नहीं छूटीं। कृष्ण से उनकी माँ छूटी, पिता छूटे, फिर जो नंद-यशोदा मिले वे भी छूटे। संगी-साथी छूटे। राधा छूटीं। गोकुल छूटा, फिर मथुरा छूटी। कृष्ण से जीवन भर कुछ न कुछ छूटता ही रहा। कृष्ण जीवन भर त्याग करते रहे। हमारी आज की पीढ़ी जो कुछ भी छूटने पर टूटने लगती है, उसे कृष्ण को गुरु बना लेना चाहिए। जो कृष्ण को समझ लेगा वह कभी अवसाद में नहीं जाएगा। कृष्ण आनंद के देवता है। कुछ छूटने पर भी कैसे खुश रहा जा सकता है, यह कृष्ण से अच्छा कोई सिखा ही नहीं सकता।*

महागुरु था मेरा कन्हैया...
इस सृष्टि के सबसे प्यारे मनुष्य का जन्मदिवस है न आज ! खुश होइए, आज का दिन खुश होने के लिए ही है। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के दिन खुश रहना ही व्रत है। मैं तो आज व्रत ही इसलिए रहता हूँ ताकि शाम को एक किलो दही दबा सकूँ। आप सबको श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की ढेरों शुभकामनाएं। मस्त रहें सब, धर्म की जय हो।

✍🏻 सर्वेश तिवारी

Sunday, 28 July 2019

अहंकार

ले डूबेगा तुमको एक दिन,
ये तुम्हें तुम्हारा अहंकार।
भाषा अभद्र शोभित हो तुम्हें,
है यही तुम्हारा संस्कार।
वाणी पर संयम है ही नहीं,
सम्वाद भला तुमसे क्या हो?
गाली गलौज हाथापाई को,
छोड़ भला सीखे क्या हो?
तुम्हे शायद मालूम ही नही,
क्या होती है जिन्दगी.
क्या मतलब होता है भाषा का
संस्कार का तो तुम्हे सं भी पता नही,
ना ही संयम है तुम्हारे बस का ,
गाली गलौज हाथापाई से,
कभी किसी का भी भला हुआ नही
तुम्हारे ये सारे गुण , सिर्फ तोड़ते है,
कभी तुम्हे कभी तुम्हारे अपनो को,
लेकिन तुम्हे इन सब से क्या,
तुम तो बस तुष्ट करो
अपने तुच्छ से अहम को
और नष्ट कर दो अपने
आस पास के सभी जीवन को |
#बस_यू_ही

कद्र नही हमारी

किसी को कद्र नही हमारी ,
कोई दिलो जान हार बैठा है |
किसी को इश्क नही हमसे ,
कोई दिवाना बना बैठा है |
किसी को नफरत है हमसे,
कोई प्यार किये बैठा है |
किसी को यकिन नही हमारा ,
कोई ऐतबार किये बैठा है |
किसी को आरजू नही मिलने की ,
और कोई इन्तजार मे नज़रे बिछाये बैठा है |
#बस_यू_ही

Wednesday, 26 June 2019

कुछ रिश्ते बेनामी

सुनो ना ...

कुछ रिश्ते
बेनामी की चादर
ओढ़े चुपके से
आगे बढ़ते जाते है ,
नदी के किनारो से
जो कही नही मिलते
लेकिन कभी
बिछड़ते भी नही
बस चुपचाप
चलते जाते है
साथ साथ
बिना कुछ कहे
बिना किसी वादे के
साथ यू ही कुबूल हो,
तो कहो तुम भी
 कुबूल है|
प्यार को हिचक भी
कहा होती है
कभी कुबूल करने मे
कुबूल है कुबूल है
तेरे साथ साथ
यू ही चलते चले
जाना कुबूल है|

 #बस_यू_ही

नीलम वन्दना (वन्दना द्विवेदी)

मेरे बचपन का शहर

मेरे बचपन का शहर बसता है छोटी बडी पतली चौडी गलियो मे ,गंगा और गंगा किनारे बने हुये सुन्दर मनोरम घाट ,गंगा के उस पार बहुत विशाल खुला रेतीला मैदान | संगीत  व कला का उपासक , संस्कृती  का संवाहक ,  कजरी ,ठुमरी और बासुरी की धुन ... शिक्षा की राजधानी , माँ सरस्वती विराजती ,जीवन  को ज़िवित रखता  मृत्यूपरांत जीवनदाता , जहा की सुबह  होती सबसे अलबेली और रातो को भी जागता है हमारा शहर | सिर्फ विश्व के प्राचीनतम शहर न हो कर एक खुबसूरत जज्बात भी है| हमारे शहर की गलियो की रौनक ,स्वादिष्ट खाने की खुशबू , मन्दिरो मे घन्टो की टनटन के साथ रस घोलते हुए आरती के सुमधुर बोल और साथ ही बिना किसी भेदभाव बिना , मजहब के दीवारो को गिराते हुये मस्जिदो से आती हुई अजान की आवाज़ गुजती है कानो मे और माँ  के हथेलियो के स्पर्श जैसे लगती ,हौले  से कहती अब  उठो भी जाओ सुबह हो गयी|

#अब आप अनुमान लगाये मेरे खुबसूरत से शहर का नाम
#बस यू ही..

अकेला (कहानी










                      #अकेला  (कहानी)

                20 दिसम्बर की वो गहरी काली ठन्डी रात थी जब फोन की घन्टी बजी थी ... विनीता ने फोन उठाया तो उधर से आवाज आयी...
# हैलो विनीता आन्टी मै वेद बोल रहा हू |
#विनीता : हा जी बेटा बोलिए क्या हुआ आप इतना घबराये हुए क्यो हो ?
#वेद : आन्टी वो पापा नही रहे |
#विनीता : क्या ? कब ?
#वेद : आज शाम को |
#विनीता : मै पहुचती हू अभी बेटा |
      विनीता ने फोन तो रख दिया लेकिन उसकी नीद उससे कोसो दूर उड़न छू हो चुकी थी | मोबाइल मे उसने समय देखा तो 3 : 30 हो रहा था | विनीता के दिमाग मे कब कहा कैसे क्यो किसने किया होगा ये सब ऐसे ना जाने कितने सवाल एक साथ  विस्फोट करने लगे थे , अभी कल दिन मे ही मेरी व्हाट्सअप पर चैट हुयी थी |ऐसा कुछ तो नही लगा हा थोडा परेशान जरूर लग रहा थि और इन्ही सवालो मे उलझती विनीता ना जाने कब 10 साल पूराने अतीत की गलियो मे उलझती चली गयी.... कैसे वो दोनो मिले थे , जब मिले थे तब दोनो ही एक दूसरे को बिल्कुल भी नही जानते थे , बस कभी कभी सोशल मिडिया पर हाय हैलो हो जाता था .... फिर धीरे धीरे बाते होने लगी और जान पहचान बढ़ती चली गयी | कभी कभी दिलीप की बाते बहुत मासूमियत से भरी होती तो कभी खुराफाती अन्दाज , वैसे तो मै बहुत नकचढी थी , गुस्सा मेरे नाक पर हुआ करता था , लेकिन फिर भी ना जाने क्यु दिलीप की बातो मे एक अजीब सा सम्मोहन महसूस होता था और मै खिचती चली गई थी उसकी ओर | जब दिलीप ने पहली बार विनीता को फोन किया था तो दिलीप की आवाज पहली बार सुन कर विनीता की खुशी मे कितना आश्चर्य मिल गया था ...
   
       #दिलीप :  हैलो मै दिलीप बोल रहा हू जयपुर से.
#विनीता :  हैलो अरररे आप आपको मेरा न. कहा से मिला ..
#दिलीप    जी वो आपके फेसबुक प्रोफाइल से मिला..
#विनीता : अरे उसे तो मैने महिनो पहले हटा लिया फिर आपको..
#दिलीप :   मेरी चश्मेबद्दूर जिगर का छल्ला वो मैने महिनो पहले ही लिया था  सोचा आज फोन भी कर लू आपको कोई तकलीफ तो नही.
#विनीता : अरे कैसी बाते करते है आप अव इसमे क्या तकलीफ होगी | लेकिन गज़ब का धैर्य है आपके पास , आप इतने दिनो से नम्बर रखे थे लेकिन बताया नही और ना ही काल किया | मै तो अब तक ना जाने कितने बार बात कर चुकी होती |
#दिलीप : उफ्फ आप तो नाराज हो गयी  चलिये गुस्ताखी माफ महारानी साहिबा अब तो कर लिया ना...
   कितना हंसमुख मस्त स्भाव वाला था वो कभी कभी उतना ही गंभीर और शान्त हो जाता था | दरअसल वो एक अन्तर्मुखी व्यक्तित्व वाला था|
    कुछ समय बाद मेरी भी नौकरी दिलीप के शहर से कोई  80 कि. मी. दूर किशनगढ़ के एक मार्बल कम्पनी मे लग गयी थी कितनी खुशी महसूस हुयी थी मुझे तब | मैने ये बात तुरन्त दिलीप को बताया था वो भी बहुत खुश हुआ था शायद मुझसे ज्यादा | हम दोनो समझ नही पा रहे थे कि वो खुशी मेरी नौकरी की है या हम दोनो अब मिल सकते है इसकी है| जिस दिन मेरी ज्वाइनिग थी उस शाम दिलीप मुझे ऑफिस से पिकअप करने आया था , वो हमारी पहली मुलाकात थी हमने खाना भी साथ ही खाया फिर वो मुझे मेरे पी.जी. तक ड्राप कर वापस चला गया | तीन साल तक मै किशनगढ़ मे रही और शायद ही कोई ऐसा दिन गुजरा हो कि हमारी बात ना हुयी हो , मुलाकतो का सिलसिला भी साथ मे चलता रहा | कब हम दोनो अनजान से घनिष्ट हो गये पता ही नही चला | फिर कुछ दिनो बाद मेरी इन्दौर के कालेज़ मे नौकरी लग गयी और मै किशनगढ़ से इन्दौर चली आयी | कितना दुखी हुआ था और मजबूर भी था | परिवार को छोड़ना नही चाहता था वो और मेरे साथ भी | कितनी उलझन थी उसके दिमाग मे एक साथ अपना काम परिवार और मै सब कुछ शामिल था उसकी उलझनो मे | और मै भी कहा बहुत खुश थी किस्समत के इस फैसले से लेकिन जिन्दगी गुजारने के लिए नौकरी भी जरुरी थी और जिन्दगी जीने के लिए दिलीप का साथ | कई दिनो थक यै कशमकश चलता रहा दोनो के ही दिमाग मे| और फाइनली विजयी हुआ जिन्दगी का गुजारा | जिन्दगी जीन के अरमान तो कही दिल के किसी कोने मे  दफन  हो गये| और मै इन्दौर आ गयी|  विनीता यू ही अतीत के यादो मे उलझी हुयी थी कि दरवाजे की घन्टी बजी और विनीता एकदम से अतीत से वर्तमान मे आ गयी | घडी मे सुबह के 7 बजा दिये थे और काम वाली बाई ने दरवाजे की घन्टी | विनीता ने दरवाजा खोला और फिर अपने दिनचर्या मे लग गयी | आज उसका मन किसी भी काम मे नही लग रहा था बस घूम फिर कर उसका दिमाग दिलीप और उसके परिवार पर चला जा रहा था क्यु हुआ होगा , सब कैसे होगे आदि |
       फिर भी उसने अनमने मन से सारे दिन का काम निपटाया और ऑफिस मे अगले 2 दिन की छुट्टी की एपलिकेसन दे आयी थी अब रास्ते की तैयारी भी करनी थी उसे आज रात मे ही इन्दौर से निकल कर कल सुबह तक जयपुर पहुचना था |
  सारी रात सफर कर के विनीता अगले दिन के सुबह 6 बजे दिलीप के घर जयपुर पहुच चुकी थी |वहा दिलीप की पत्नी , मोनी और उसके पति , वेद और उसकी पत्नी , और कुछ रिश्तेदार आ चुके थे , कुछ आ रहे थे | सभी रिश्तेदार आपस मे गुपचुप कुछ कुछ बाते कर रहे थे लेकिन घर वालो से निगाहे पड़ जाने पर चुप हो जाते थे| मुझे वहा देख कर वेद मुझे अन्दर ले गया तो मैने अकेले मे वेद से पूछा वेद ये क्या हुआ .... पापा ने ऐसा क्यू किया ये सब लोग आपस मे कैसी बात कर रहे है | ये मै क्या सुन रही हूँ | वेद फफक कर रो पडा और वही रखी कुर्सीयो पर निढाल सा गिर पडा|  उसे सम्भालते हुए  मेरे भी ऑखो से ऑसू आ गये और हम दोनो वही बैठ गये ,और वेद रोते रोते बताने लगा कैसे पिछले कुछ समय से उसके पापा (दिनेश जी ) परेशान थे | उन्होने अपने काम शुरू करने के लिए नौकरी भी छोड़ दी थी और काम भी सही से नही चल पा रहा था ,जिन दोस्तो के भरोसे उन्होने नया काम शुरू किया था सबने धीरे धीरे कर साथ छोड़ दिया था | उन्ही के ऑफिस मे कोई लड़की स्मिता काम करती थी वो भी उनके नये काम मे उनके साथ ही थी और अब ना जाने क्यु पिछले कुछ समय से पापा को धमकिया दे रही थी , वो तो उस दिन पापा का मोबाईल दीदी के पास था जब उस दिन स्मिता ने मैसेज़ किये थे | फिर बहुत जिद करने पर पापा ने बताया कि उनको लगता है ये स्मिता बाकी लोगो से मिल कर उनको बदनाम करना चाहती है , और पैसे ऐठना चाहती है | फिर हमलोगो ने कोर्ट से एन्ट्रीसिपेट्री बेल करायी कि  अगर कही से वो ऐसा कुछ करे तो हम सब पापा को बचा सके |  वेद इतना कुछ हो गया और तुम लोगो ने कुछ भी नही बताया | कुछ दिन पहले ही तो मेरी बात दिनेश जी से भी हुयी थी उन्होने भी कुछ नही बोला हा परेशान जरूर लगे मुझे और जब मैने कहा तो हमैशा की तरह टाल गये | हा जी आन्टी वो नौकरी छोड़ने के बाद से ही पता नही क्यु चुप चुप से रहने लगे थे , उन्होने ही आपसे भी ये सब बताने को मना किया था| कल दिन मे भी स्मिता से उनकी बात हुयी थी शायद |  विनीता की वेद से बात हो ही रही थी कि विनीता के फोन पर अनजान नम्बर से काल आयी | ये फोन श्यामनगर थाने से इन्सपेक्टर दशानन का था |
#इन्सपेक्टर  :  हैलो मैडम आप विनीता जी बोल रही है ?
#विनीता : हा जी मै विनीता बोल रही हू |
#इन्सपेक्टर : जी मै श्यामनगर थाने से इन्सपेक्टर दशानन बोल रहा हू और आप से दिलीप जोशी के केस के बारे मे कुछ पूछताछ करना चाह रहा हू |
#विनीता : जी यहा घर पर बात करना सही नही होगा ,मै ही थाने आ जाती हू |
#इन्सपेक्टर : जी मुझे भी घर पय आना सही नही लग रहा था ,इसीलिए फोन किया |
#विनीता : चलिए कोई नही ,मै आती हू|
    थोडी ही देर मे विनीता श्यामनगर थाने मे इन्सपेक्टर दशानन के ऑफिस मे होती है | इन्सपेक्टर दशानन उसे अपने ऑफिस मे बैठा कर पूछते है कि मैडम आपका और  दिलीप जोशी का कैसा रिश्ता था |
#विनीता  :  जी हम अच्छे दोस्त थे|
#इन्सपेक्टर  : क्या आपको पता है कि कुछ महिनो से दिलीप जी परेशान चल रहे थे और उन्होने पिछले साल सितम्बर मे Anticipetry bail भी  ले रखी थी |
#विनीता  : हा जी सर अभी वेद ने मुझे बताया उनके एन्ट्रीसिपेट्री बेल के विषय मे ,
#इन्सपेक्टर : जी मै भी आपसे यही जानना चाहता हू कि उन्हे एन्ट्रीसिपेट्रि बेल की जरूरत क्यो पडी |आप उनके और उनके काम के बारे मे क्या ,और कितना जानती है |
#विनीता : सर सबसे पहले मै आपसे  कि क्या किसी ने कही कोई FIR करायी थी क्या उनके नाम पर , क्योकि बिना FIR के तो कोर्ट बेल देती नही है | और अगर ऐसा है तो वो कौन है|
#इन्सपेक्टर : वो तो अभी मै नही बता सकता | और आप सही है बिना FIR कोर्ट बेल नही देती | अच्छा आप बताए स्मिता को आप जानती है ?
#विनीता : हा जी वो दिनेश जी के साथ महानगर टाइम्स मे काम करती थी |
#इन्सपेक्टर : आप कभी मिली है उससे , दिनेश जी के परिवार मे स्मिता को लेकर इतना क्रोध क्यु है ?
जबकी उनके काल रिकार्ड और व्हाटसअप मैसेज के  रिकार्डस से पता चलता है कि पिछले दिनो सबसे ज्यादा बाते स्मिता , परिवार के सदस्यो और  आपके नम्बर से ही हुये है |
#विनीता : जी मै उससे कभी मिली तो नही हू | दिनेश जी के परिवार का स्मिता को ले कर क्रोध क्यो है ये भी मै अभी नही बता सकती | लेकिन आप स्मिता को इतना महत्व क्यो दे रहे है |
#इन्सपेक्टर : क्योकि मूझे लगता है कि दिनेश जी के आत्महत्या की कोई ना कोई कडी स्मिता से कही ना कही जुडी है ,हो सकता है आपसे उन्होने जब बात की हो तो , किसी का जिक्र किया हो या फिर वो स्मिता के कारण ही इतने तनाव मे रहे हो और जब तनाव बरदास्त नही हुआ तो उन्होने आत्महत्या जैसा कदम उठा लिया हो |
#विनीता :   दिलीप जी इतने कायर तो नही थे, जो आत्महत्या जैसे कदम उठा ले पर क्या कहू कुछ समझ नही आ रहा अभी , होने को तो बहुत कुछ हो सकता है और कुछ नही भी | 
#इन्सपेक्टर : जी बिलकुल हो सकता है|क्या आपको ऐसा लगता है कि हो सकता है किसी ने उन्हे ऐसा करने को उकसाया हो |
#विनीता : सर आप भी , इतना सुलझा हुआ ,सम्मानित पेशे से जुडा समझदार व्यक्ति भी किसी के उकसाने पर ऐसे बेवकूफी वाले काम कैसे कर सकता है..और फिर आप ही बता रहे है कि उन्होने कोर्ट से बेल ले रखी थी | तो कही तो कोई तो FIR दर्ज हुयी होगी |
#इन्सपेक्टर :  ओ के मैडम तो इस बारे मे और कुछ नही पता ?
#विनीता : जी नही
#इन्सपेक्टर   :  ठीक है मैडम अगर कोई सूचना मिले तो बताइयेगा | और जब तक ये केस खत्म नही होता आप अपने काल डिटेल्स और मैसेज को डिलीट नही करेगी|
#विनीता  :  जी सर
#इन्सपेक्टर :  जी समय देने के लिये बहुत बहुत धन्यवाद | आगे फिर अगर आपकी जरुरत पडी तो बुलायेगे |
#विनीता  :  जी जरूर
   इसके बाद विनीता तो वापस इन्दौर आ गयी लेकिन उसका दिल दिमाग वही कही रह गया था जयपुर मे |
वो हमेशा दिलीप के ही ख्यालो मे खोयी रहती वो ऐसा कैसे कर सकता था | उसके जैसा समझदार सुलझा व्यक्ति ऐसा कैसे कर सकता है उसका तो वो व्यक्तित्व था कि अगर वो जिद पर आ जाये तो सामने वाला अपनी जान दे दे फिर उसने किसी के उकसाने भर से ऐसा कैसे कर किया होगा | ऐसा तो नही कि स्मिता कही उसे ब्लैकमेल कर रही थी | ऐसी कौन सी बात थी जो उसे खाये जा रही थी किसी से तो खुल कर बोल सकता था | मै थी उसकी पत्नी , बच्चे सभी तो थे | फिर आखिर वो अकेला क्यो और कैसे पड़ गया |