Maa_ka_Lockdown
दिमाग पर बहुत जोर देने के बाद भी मुझे ऐसा कोई लॉकडाउन याद नहीं आता जो मेरी मम्मी ने ऐसा कुछ किया हो, क्योंकि हम सभी भाई बहनों पर लॉकडाउन लगाने की पूरी जिम्मेदारी अनकहे रूप में हमारी बड़की जिज्जी ने जो ले रखी थी। बाकी बचा खुचा कसर पापा जी पूरा कर देते थे।
यू तो हम सब भाई बहन जिज्जी की नजरों से ही सहम जाते थे, एक वक़्त था जब पूरे घर मे उनकी ही तानाशाही चलती थी, लेकिन अब लगता है कि जिज्जी भी जितनी दिखती थी उतनी बड़ी वाली हिटलर नहीं थी। हॉ वो मम्मी की अच्छी वाली सहयोगी थी। मम्मी जो काम हम लोगो से कराना चाहती करा लेती और जो नहीं कराना चाहती उसे जिज्जी से बड़े प्यार से मना करा देती।
यू तो मम्मी और जिज्जी की मिलीजुली सरकार ने हमलोगों के बचपन में अव्वल तो कोई बहुत लॉकडाउन कराया नहीं है पर जो लॉकडाउन कराया भी वो बहुत मामूली हुआ करते थे, जैसे जब तक होमवर्क पूरा नही होता कही नही जाना है। जब तक ये काम पूरा नहीं होता (कोई भी छोटा मोटा काम ) नही होता खाना नही मिलेगा। या फिर सबसे खतरनाक होता था कि करो तुम अपने मन की फिर समझे रहना। इसके बाद तो हम जहॉ होते थे बस वही थम से जाते थे।
अन्धेरा होने के बाद घर से बाहर नही रहना है, ये था सबसे बड़ा वाला लॉकडाउन जिसे कमोबेश घर के सभी लोग मानते थे और इस लॉकडउन में समय और जरूरत के मुताबिक बदलाव तो आया है। लेकिन बचपन से पड़ी इसकी आदत के कारण अब भी काम खत्म होने के बाद सबसे पहले घर का रास्ता दिखता है।
ये सारे लॉकडाउन जो बचपन से हम सभी सहते आये है, जिसे कभी माँ ने लगाया या कभी माँ की मर्जी से जिज्जी , बड़े भाईया या पापा ने इन सबका बहुत अहम किरदार होता हैं हमें एक भला इन्सान बनाने में। इसीलिये माँ तो बस माँ होती है।
यूँ ही नहीं होता
“माँ” का दर्जा ‘सर्वोत्तम’
ना जाने कितना
‘त्याग’ और ‘संघर्ष’
छुपा होता है इस शब्द के पीछे❣️
Happy_Mothers_Day_every_mother
आज मदर्स डे पर भी लॉकडाउन है, तो अब बात करते है उस लॉकडाउन की जो हर माँ लगाती है कभी ना कभी अपने बच्चों पर....
मेरी माँ दुनिया की सबसे नायाब और बेमिसाल माँ थी । जो हर बच्चे को उसकी मे लगती हैं और बहुत हद तक वो अपने बच्चे के लिये होती भी है।दिमाग पर बहुत जोर देने के बाद भी मुझे ऐसा कोई लॉकडाउन याद नहीं आता जो मेरी मम्मी ने ऐसा कुछ किया हो, क्योंकि हम सभी भाई बहनों पर लॉकडाउन लगाने की पूरी जिम्मेदारी अनकहे रूप में हमारी बड़की जिज्जी ने जो ले रखी थी। बाकी बचा खुचा कसर पापा जी पूरा कर देते थे।
यू तो हम सब भाई बहन जिज्जी की नजरों से ही सहम जाते थे, एक वक़्त था जब पूरे घर मे उनकी ही तानाशाही चलती थी, लेकिन अब लगता है कि जिज्जी भी जितनी दिखती थी उतनी बड़ी वाली हिटलर नहीं थी। हॉ वो मम्मी की अच्छी वाली सहयोगी थी। मम्मी जो काम हम लोगो से कराना चाहती करा लेती और जो नहीं कराना चाहती उसे जिज्जी से बड़े प्यार से मना करा देती।
यू तो मम्मी और जिज्जी की मिलीजुली सरकार ने हमलोगों के बचपन में अव्वल तो कोई बहुत लॉकडाउन कराया नहीं है पर जो लॉकडाउन कराया भी वो बहुत मामूली हुआ करते थे, जैसे जब तक होमवर्क पूरा नही होता कही नही जाना है। जब तक ये काम पूरा नहीं होता (कोई भी छोटा मोटा काम ) नही होता खाना नही मिलेगा। या फिर सबसे खतरनाक होता था कि करो तुम अपने मन की फिर समझे रहना। इसके बाद तो हम जहॉ होते थे बस वही थम से जाते थे।
अन्धेरा होने के बाद घर से बाहर नही रहना है, ये था सबसे बड़ा वाला लॉकडाउन जिसे कमोबेश घर के सभी लोग मानते थे और इस लॉकडउन में समय और जरूरत के मुताबिक बदलाव तो आया है। लेकिन बचपन से पड़ी इसकी आदत के कारण अब भी काम खत्म होने के बाद सबसे पहले घर का रास्ता दिखता है।
ये सारे लॉकडाउन जो बचपन से हम सभी सहते आये है, जिसे कभी माँ ने लगाया या कभी माँ की मर्जी से जिज्जी , बड़े भाईया या पापा ने इन सबका बहुत अहम किरदार होता हैं हमें एक भला इन्सान बनाने में। इसीलिये माँ तो बस माँ होती है।
यूँ ही नहीं होता
“माँ” का दर्जा ‘सर्वोत्तम’
ना जाने कितना
‘त्याग’ और ‘संघर्ष’
छुपा होता है इस शब्द के पीछे❣️
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