Tuesday, 12 October 2021

धरती की बेटी

धरती की बेटी
धरती की बेटी थी , 
धरती जैसी ही थी।
सहती‌ हि गई 
हर दर्द को,
जैसे धरती मां 
सहती है सब हंस कर,
पीती ही गयी 
जीवन से मिले, 
कड़वे‌ आंसूओ को 
जैसे 
धरती मां पी जाती हैं 
बारिश के जल को...
धरती जैसे ही 
जना उसने
लव कुश जैसे 
लाल को
दे कर 
बढ़ा गयी वो
रघुकुल की
वंश बेल
और
धरती की बेटी
समा गई फिर से
धरती में ही
लेकिन 
बना गई 
मर्यादा पुरुषोत्तम
जगत पिता को,
जिसे पहचान न पाते नर
यदि वह
होते न
अवतरित.....
धरती
देती है फल
और
 रहती है फलित सदा....
नीलम वन्दना

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