साबरमति के संत : महात्मा गाँधी
'दे दी हमें आजादी बिना खडग बिना ढाल, साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल'-लोकप्रिय गीत की ये पंक्तियां बापू के करिश्माई व्यक्तित्व और कृतित्व का प्रशस्ति-गान हैं। गांधी-दर्शन के चार आधारभूत सिद्धांत हैं- सत्य, अहिंसा, प्रेम और सद्भाव। वह बचपन में 'सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र' नाटक देखकर सत्यावलंबी बने। उनका विश्वास था कि सत्य ही परमेश्वर है। उन्होंने सत्य की आराधना को भक्ति माना और अपनी आत्मकथा का नाम 'सत्य के प्रयोग' रखा। 'मुंडकोपनिषद' से लिए गए राष्ट्रीय वाक्य 'सत्यमेव जयते' के प्रेरणा-श्रोत बापू हैं। अहिंसा का अर्थ है-मन, वाणी अथवा कर्म से किसी को आहत न करना। ईष्र्या-द्वेष अथवा किसी का बुरा चाहना वैचारिक हिंसा है तथा परनिंदा, झूठ बोलना, अपशब्दों का प्रयोग एवं निष्प्रयोजन वाद-विवाद वाचिक हिंसा के अंतर्गत आते हैं। बापू सत्य और अहिंसा के पुजारी थे। उनका विचार था, 'अहिंसा के बिना सत्य की खोज असंभव है। अहिंसा साधन है और सत्य साध्य।' शांति प्रेमी रूस के टॉलस्टाय और अमेरिका के हेनरी डेविड थॉरो उनके आदर्श थे।
चौरी-चौरा में तनिक हिंसा हो जाने पर बापू ने तमाम आलोचनाओं के बावजूद देशव्यापी सत्याग्रह आंदोलन को स्थगित कर दिया। सच्चा प्रेम नि:स्वार्थ एवं एकरस होता है। उसमें अपने सुख की कामना नहीं होती। काका कालेलकर की दृष्टि में-बापू सर्वधर्म समभाव के प्रणेता थे। 'वसुधैव कुटुंबकम्' का उदात्ता सिद्धांत और वेदोक्त 'सर्व खल्विदं ब्रह्म' उनके जीवन का मूलमंत्र था। उनकी प्रार्थना सभाओं में गीता के श्लोक, रामायण की चौपाइयां, विनय-पत्रिका के पद के साथ ही नरसी मेहता व रवींद्रनाथ टैगोर के भजन आदि के प्रमुख अंशों का पाठ होता था। उनके हृदय में प्रेम व सभी धर्मो के प्रति आदरभाव था। इसीलिए, प्यार में 'बापू' एवं 'राष्ट्रपिता' भी कहलाए। अल्बर्ट आइंस्टीन ने सच ही कहा था। 'आने वाली पीढि़यां, संभव है कि शायद ही यह विश्वास करें कि महात्मा गांधी की तरह कोई व्यक्ति इस धरती पर कभी हुआ था।'
Neelam Vandana
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