Saturday, 12 March 2022

मैंने संभावनाएं ढूंढी है शून्य में भी...

मैंने संभावनाएं ढूंढी है शून्य में भी,
मैं इतनी जल्दी हार भी तो नहीं मानती,
नकारात्मकता से कोई वास्ता नहीं मेरा....
 जिन हालातों में लोग नाउम्मीद हो जाते हैं, नहीं छोड़ती मैं उम्मीदों का दामन...
हैरान परेशान जिन्दगी से
खींच लाती हूं सुकून और खुशियों के कुछ पल...
कभी उगते कभी ढलते 
हुए सूरज से
तो कभी चांद , पर्वत और नदियों के कलकल से...

मैंने संभावनाएं ढूंढी है शून्य में भी,
जब चारों ओर था मौत का ताण्डव,
जब हर तरफ बिखरी थीं मायूसी,
नहीं हारी थी मैंने हिम्मत
दिया था हौसला लोगों को सावधानी वो बचाव के साथ जीने के लिए

मैंने संभावनाएं ढूंढी है शून्य में भी,
जब कोई भी नही था पास मेरे,
गांव के बाहर बसे हुए
अनजानों की बस्ती में
जलाये हैं दिवाली के दिये,
फुलझड़िया और पटाखे बच्चों के साथ
बिखेरे हैं होली के रंग
और लिया है गुझियों का स्वाद उन बुजुर्गों के साथ,
मैंने बटोर के जमा किए है उन लोगों की दुआये हजार
मैंने संभावनाएं ढूंढी है शून्य में भी।
नकारात्मकता से कोई वास्ता नहीं मेरा
दोपहर की धूप को,मुट्ठी में मैने भर लिया,
यह असंभव काम था,संभव इसे मैने कर लिया।
नीलम वन्दना

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