Friday, 30 October 2020

लौह महिला : श्रीमती गांधी

 लौह महिला : श्रीमती गांधी

            श्रीमती इन्दिरा गांधी इतनी मजबूत महिला थी,कि आज के दौर मे तो उतने मजबूत बहुतेरे पुरूष भी नही है। इनमें भारतीय राजनीति का एक अलग और मजबूत इतिहास लिखने की क्षमता थी , अपने किये को स्वीकारने की ताकत थी | अपने निर्णयो पर अडिग होना जानती थी । देश के लिए बेखौफ लड़ना,मरना और दुश्मनो का सामना कैसे करना है पता था। यू ही नही श्रीमती इन्दिरा गांधी को लौह महिला के खिताब से सम्मानित किया गया है उन्होने अपने बात व्यवहार से साबित किया था कि वो एक अत्यधिक मजबूत महिला है ।श्रीमती इंदिरा गांधी में भी कुछ खामियां रही होंगी। उन्होंने देश पर इमरजेंसी थोपी थी। कुछ हद तक हम कह सकते हैं लोकतंत्र का गला घोंटा, बावजूद इसके ,उसी महिला के हौसले ने अमेरिका और चीन को भी दहला दिया।अमेरिका और चीन की सरपरस्ती में रहकर भी पाक को भारत के सामने ज़मीन के बल लेटने को मजबूर कर दिया।अमेरिकी राष्ट्रपति निक्सन की धमकियों और घुड़कियों  को दरकिनार कर देश का मान ऊंचा रखा, और पाकिस्तान की तो जाने दीजिए.......उनके बुलंद इरादे ने पाक के दो टुकड़े कर दिए़़......  

           


आज उस इंदिरा गांधी को भी याद करने का दिन है , जिनके शहादत को यू ही नहीं भुलाया जा सकता। ऐसे बुलन्द हौसलें वाली लौह महिला के लिये सलामी तो बनती है । आज के दौर मे भी वो बहुत से लोगों को लिये प्रेरणा स्त्रोत है, उनका विशाल व्यक्तित्व और भी लोगो के लिए प्रेरणादायी हो सकता है अगर लोग कुछ सीखना चाहे ....

सादर श्रद्धान्जली💐💐💐

लौह महिला 🙏🙏🙏

सुनो ना.... सिर्फ तुम्हें पा लेना

 सुनो ना.... 

सिर्फ तुम्हें पा लेना ही 

मेरे मुक़मल 

इश्क़ की दास्तां नही है 

तुम मेरे साथ रहो 

ये भी 

ख़्वाहिश नही है मेरी 

बस तुम 

जिन लम्हो में 

उदास हो तो 

उन लम्हो में 

मैं तेरे साथ रहूं 

तेरी होंठों की 🙂 मुस्कान 

बनकर 

बस इतनी ही गुज़ारिश है मेरी 

उस खुदा से💕💕💕💕💕


Wednesday, 28 October 2020

काशी की गंगा 1

 

अगर मैं तुम्हे बता सकूं की
मेरा ऐसे कभी कभार लिखना
हमारे संवाद सा है
टूटा फूटा मगर जटिल
पर लिखना अब मुझे मिजाज से अपाहिज
और तन से हताश बना देता है
बिल्कुल हमारे संवाद की तरह

अगर मैं तुम्हे बता सकूं
तो बताऊंगी की
हो सके तो कर लेना बातें
महीने की पगार और इन्फ्लेशन के बारे में
टेरिस पर एक लम्बे किस के बाद
गर हो सके तो बचा लेना
वो दो लाल फेवरेट कॉफ़ी मग
वो तारीफे जिनसे तुम मुझे सजाते थे
जो हमारी शामों का हिस्सा है
क्यूंकि पूरे होने की एक ही शर्त है
एक अधूरी " मैं "
और इक आधे " तुम"

अगर मैं तुम्हे बता सकूं
तो बताऊंगी की
पहाड़ो से उतरती धुँध में
मैं कैसे बनाती हूँ तुम्हारा चेहरा
किसी प्रिंटर की पिन ब्रश से निकली
एक अघड़ सी तस्वीर सा
तारो से बिछे आसमान में
मुझे नही दिखती है कोई गैलेक्सी
दिखती है मुझे तुम्हारी दो जोड़ी आँखे
वो मुस्कुराती आँखे जो चमक उठी थी
मुझे अपने पास देखकर
और कहा था तुमने
चले आओ इश्क़ करते है

अगर मैं तुम्हे बता सकूं
तो बताऊंगी की
आजकल पूरी रात
ये सोचने में बीत जाती है की
तुम्हे भूल जाऊं या याद करूँ
कभी साथ बिताए पल
खुशी के आँसू बनकर बहते है
तो कभी जुदा होने का वक़्त
पलके भिगो देता है
बिना कुछ कहे जो बातें
कह आती हो तुम उस बड़े से समंदर को
उन बातों के लिए शब्द चाहता हूँ
आज मैं तुम्हारे साथ
तुम्हारे इश्क़ में इक अज़नबी
एहसास हो जाना चाहता हूँ

अगर मैं तुम्हे बता सकूं
तो बताऊंगी की
"तुम" "तुम" ही रहो और
एक एक हाथ "हम" का थामे हुए
जैसे बनारस में गंगा और
गंगा किनारे बसा बनारस
बस इतनी सी ही तो

ख्वाहिश है जाना
मैं तुम्हारे इश्क़ में बसा लू खुद मे तुझको
और बन जाऊ तेरी... बन जाये तू शिव मेरा और मै तेरी काशी ....बन जाय तू काशी और मै
काशी की गंगा होना चाहती हूँ




काशी की गंगा 2


एक प्यार हमारा
जो जन्मा था कल ही
काटते पत्थरों को और
किनारों की बंदिशों से लड़ते
जैसे ऋषिकेश से जन्मी हो नई गंगा
और यूँ एक लंबा सफर तय करते
कहीं थकते कहीं झुकते
पर रुकने की पर ज़रा सी भी ख्वाहिश नहीं

फिर ठहर जाना
तुम्हारी दुनिया में आकर
ठहरना क्योंकि
कदमों को अब मिलाना है
एक दाएं हाथ में दूजे दाएं हाथ को थमाना है
इस लम्बे सफर से थकन में
टिकना है तुम्हारे कंधो पर
जैसे हो काशी की गंगा

गंगा आरती सा संगीत
गूँजे तुम्हारे पुकारने में
इस साथ में "मैं" "मैं" रहूँ
और "तुम" "तुम" रहो
एक एक हाथ "हम" का थामे हुए
जैसे बनारस में गंगा और
गंगा किनारे बसा बनारस
बस इतनी सी ही तो ख्वाहिश है जाना
मैं तुम्हारे इश्क़ में
काशी की गंगा होना चाहती हूँ
बसा लू खुद मे तुझको और
तेरी बन जाऊ..
तू बन जाए  शिव मेरा ,
और मै तेरी काशी हो जाऊ..





मैं इश्क कहूँ, तुम बनारस समझना..

 

मैं इश्क कहूँ, तुम बनारस समझना..

मैं गंगा सी निर्मल, बहती निरंतर
तू पत्थर वो अस्सी घाट का,
मैं शीतल साहिल की रेत सी! तर
और तू चाँद वो ठण्डी रात का...

मैं काशी की गलियों सी मग्न हर-पल
तू देखता मुझे शांत उस शाम सा,
मैं कुण्ड की लिए खूबसूरती खुद में
तू लगता महादेव के भाँग सा...

मैं बारिश के बाद की वो सोंधी खुश्बू
तू कुल्हड़ वाली दो घूंट चाय सा,
मैं मंदिर पे रंगे उस गेरूए सी
तू लिए रंग वो नुक्कड़ के पान सा...

मैं दशाश्वमेध की संध्या-आरती
तो तू सुबह-ए-बनारस उस घाट का,
मैं जैसे जायका वो चटपटे चाट की
तू खट्टे लस्सी की हल्की मिठास सा...

मैं संगमरमर वो मानस मंदिर की
तू इनमें पड़े उस स्लेटी धार सा,
मैं हाथों से जिसे पढ़ते गुजरती
तू लगता वही उभार किसी दीवार का...

मैं जैसे देव-दीपावली की जगमगाती कशिश
और तू इसकी तरफ डोर कोई खिंचाव का,
मैं तैरते-जलते दीपों सी उज्ज्वल
और तू इन्हें लहराता जैसे कोई बहाव सा...

मैं अंधियारे की वो पीतल सी रौशनी
तू किनारे ठहरा एक मुसाफिर अंजान सा,
मैं पंचगंगेश किनारे की वो मस्जिद
और तू जैसे निकलता उससे अजान सा...

मैं मन्नत किसी बंजारे की
तो तू दुआ है कोई मुकम्मल सा,
मैं मंदिर में पेड़ वो बरगद सी
और तू धागा जैसे कोई मलमल का...

मैं उभरती-मचलती कड़ी जिस राज़ की
तू मुझमें राबता लिए उस एहसास का,
मैं दुर्गा-मंदिर के श्रीफल का पानी
और तू कयास जैसे कोई प्यास का...



मैं लहरों सी उठती-गिरती प्रतिपल
तू लगता इस बीच नौका-विहार सा,
हू मणिकर्णिका की अगर मैं गाथा
तो तू लगता जीवन-मरण के सार सा...

मैं सपनो को समेटे हुए एक परिधि
तू मुझे मुझसे मिलाता एक व्यास सा,
मानो अगर काशी जैसी मुझे कोई नगरी
तो तू है बसता इस नगर में जान सा...


काशी की गंगा 3

 ठिठुरती सी सुबह में एक दिन

अचानक नींद खुल गई

अलसाई आँखों को खोलने की 

एक नाकाम सी कोशिश में क्योंकि फिर आज तुम सामने हो


सोचती हूँ मुद्दतो बाद मिला है मौका वजु करूँ डूब कर

तुम्हारे होने के अहसास में

या होश में आऊँ और कह दूँ कि


तुम्हारे होने से ये वक़्त

टूटती आतिशबाजी सा खूबसूरत है

जैसे तारों को जल्दी सुला दिया हो किसीने

सपनों वाली परीयों की

कहानी सुना कर


अलसुबह 

तुम्हारे लिए लिखी कविता

यूँ ठंडे दही में डाल दी हो

मिश्री किसी ने

खिलखिलाना यूँ तुम्हारा

मेरी बेतुकी कविताएं सुनकर

जैसे कल के ढेर में मिल गया हो एक नया पटाखा एक किसी ऐसे बच्चे को

जिसकी दीवाली

हम सी हैप्पी नही है


रात के बुझे दीये से अंगड़ाई

तुम्हारे दुबारा पुकारने में है

गंगा आरती सा संगीत

गूँजे तुम्हारे पुकारने में

इस साथ में "मैं" "मैं" रहूँ

और "तुम" "तुम" रहो

एक एक हाथ "हम" का थामे हुए हम दोनों हो


फिर ठहर जाना

तुम्हारी दुनिया में आकर

ठहरना क्योंकि

कदमों को अब मिलाना है

एक दाएं हाथ में 

दूजे दाएं हाथ को थमाना है

इस लम्बे सफर के थकान में

टिकना है तुम्हारे कंधो पर

जैसे हो काशी की गंगा


और

गंगा किनारे बसा बनारस


देखना है उस

काले आकाश में बिखरती

वो रोशनियाँ को जो तुम्हारी

पलकों पर पड़कर

और भी खूबसूरत हो जाती है

उन जगमगाती आँखों से 

कुछ उजाले उधार चाहती हूँ

बस इतनी सी ही तो ख्वाहिश है जाना

मैं तुम्हारे इश्क़ में

दिवाली की बस एक रात होना चाहती हूँ !!!

सुनो ना...इश्क़ हैं।

 सुनो ना...... 

मुझसे बात ना होने पर वो जो  उलझन सी होती थी ना कभी.....  

और फिर मैसेन्जर में कॉल करने को बोलना इश्क़ है।

कुछ सही कुछ गलत मेरा बड़बड़ाते जाना..... 

और उसे शान्ति से सुन कर तुम्हारा चुप रह जाना इश्क है। 

मेरे हज़ार मैसेजेज़ के बाद तुम्हारा एक छोटा सा प्यार सा कोई  रिप्लाई का आना......

और उसे देख मेरे आँखों में आंसूओ का आना इश्क़ हैं। 


तुम कभी भी नहीं आओगे ये जानते हुये भी तुम्हारी मिन्नते करते जाना......

और बेसब्री व बेताबी से तेरा इन्तजार करना  इश्क़ है।

नीलम वन्दना 

वाराणसी



Monday, 26 October 2020

HathrasGangRape

 27th Sep. 2020 को हम बड़े जोर शोर से Daughter Day मनाते है। बहुत से लोगों को परेशानी भी  होती हैं कि ऐसा क्या है कि  जिसे देखो बोलते नही थकता कि #मेरी_बेटी_मेरा_अभिमान  अरे कभी #मेरा_बेटा_मेरा_अभिमान भी तो बोल के देखो,  और 

29th September.  2020 को हमारे ही समाज के कुछ बेटे हमारी ही बेटी के साथ दरिंदगी कर जाते हैं और बेटी मौत की गोद में सो जाती हैं। ऐसा नहीं कि यह सब हमारे  बीच में पहली बार हुआ है, नही ये कई बार हो चुका है। हर उम्र की बेटी के साथ हो चुका हैं लेकिन हम हर बार की तरह एक बार फिर हमेशा की तरह थोड़ा बहुत शोर शराबा, नारे  बाजी करते है और फिर हाथ पर हाथ धरे बैठ जायेगें। 

आज हर बेटी कहना चाहेगी कि भले से आप सब  मत मनाये  Daughterday ,कभी मत बोलिये #मेरी_बेटी_मेरा_अभिमान लेकिन हमे जीने  दीजिये। हम भी तो आपके समाज का आधा अंग है। हमारे बिना तो आपकी भी दुनिया बेमानी है फिर क्यों हमे इज्जत से सुकून के साथ सिर्फ इन्सान मान कर क्यु नही जीने देते। 

#HathrasGangRape

काव्यान्जली : दर्द का रिश्ता

 काव्यान्जली : दर्द का रिश्ता


         अपने फ्लैट की बालकनी मे बैठ के चाय पीते हुए मैं काव्यांजलि के बारे मे सोचते हुये अतीत में चली गयी थी।  काव्यांजलि  

कल तक 13 वर्ष की कितनी प्यारी, मासूम और चुलबुली सी बच्ची थी । पूरी काॅलोनी की रौनक उससे बरकरार रहती थी। काव्यांजलि के होते काॅलोनी का कोई शख्स दुखी या परेशान नहीं रह सकता था। वह हर समय सबकी मदद के लिये हंसते हुए तैयार रहती थी ,और आज जब उसे मदद की जरूरत है...........तब !!! तब सब अपनी अपनी महानता की गाथा सुना रहे थे और स्वार्थ की रोटियाँ सेकने में व्यस्त हो गये थे। वो कितना  रोई  , चीखी ,चिल्लाई  थी । लेकिन किसी ने ना सूनी उसकी चीखे !! उन दरिन्दों ने कितनी बेदर्दी से नोच डाला था उस मासूम के पैरों को, उसकी जिव्हा को काट दिया था और हड्डियों के कई टुकड़े कर डाले !! उफ्फफ........

        सोचते हुये एकदम से एक झटका सा लगा कि अरे ये क्या कर रही हूँ मैं ? आज काव्यांजलि को हम सबकी , सबसे ज्यादा जरूरत है , मेरी बच्ची दर्द से कराहते हुये पुकार रही और हम सब यू बैठ कर चाय पी रहे हैं, टेलीविज़न पर उसके दर्द का कैसे पोस्टमार्टम होता देख रहे। नहीं अब और नहीं देख सकती मेरी बच्ची मैं आ रही हूँ तेरे पास। अब बिल्कुल भी परेशान ना होना । मैं साथ हूँ तेरे ..आज भी  .... कल भी और हमेशा... तेरे साथ ही रहूंगी। 

मेरी बच्ची यू नहीं हारने दूंगी तुम्हें , तेरे साथ दरिन्दगी करने वालों को ऐसी सजा दिलाऊंगी कि सहम जायेगी ये दरिन्दों की सारी क़ौम.....  फिर कोई और काव्यांजलि नहीं  होगी दरिन्दगी का शिकार....मेरी बच्ची मैं हूँ ना तेरी माँ। मेरा तेरा तो दर्द का रिश्ता भी है। 

नीलम वन्दना

https://lakshyajalpaiguri.blogspot.com/2020/10/blog-post_85.html?m=1



रवायत

 #रवायत

एक रवायत है ये जिंदगी, 

जिसे कायम रखना है।

मिट्टी को बस,

मिट्टी में तब्दील करना है।

ये जिम्मेदारी कब किसके कंधो पे आ जाये,

किसको है क्या खबर।

बंधन और मुक्ति का ये खेल ,

बस यही हैं ज़िन्दगी और 

यही है इस ज़िन्दगी की रवायत।।

बस_यू_ही

असामान्य से दिन

 कई बार चुभते है

असामान्य से ये दिन

उत्सवों की भीड़

और इतनी तैय्यारी

जाने क्यूं

ऐसा लगता है

सब बेवजह खुद को

बहलाने में जुटे है

जीना नहीं चाहते

फिर भी जिये जा रहे हैं

ज़िन्दगी के इस बोझ को 

ढोये जा रहे है।

बस_यू_ही