एक प्यार हमारा
जो जन्मा था कल ही
काटते पत्थरों को और
किनारों की बंदिशों से लड़ते
जैसे ऋषिकेश से जन्मी हो नई गंगा
और यूँ एक लंबा सफर तय करते
कहीं थकते कहीं झुकते
पर रुकने की पर ज़रा सी भी ख्वाहिश नहीं
फिर ठहर जाना
तुम्हारी दुनिया में आकर
ठहरना क्योंकि
कदमों को अब मिलाना है
एक दाएं हाथ में दूजे दाएं हाथ को थमाना है
इस लम्बे सफर से थकन में
टिकना है तुम्हारे कंधो पर
जैसे हो काशी की गंगा
गंगा आरती सा संगीत
गूँजे तुम्हारे पुकारने में
इस साथ में "मैं" "मैं" रहूँ
और "तुम" "तुम" रहो
एक एक हाथ "हम" का थामे हुए
जैसे बनारस में गंगा और
गंगा किनारे बसा बनारस
बस इतनी सी ही तो ख्वाहिश है जाना
मैं तुम्हारे इश्क़ में
काशी की गंगा होना चाहती हूँ
बसा लू खुद मे तुझको और
तेरी बन जाऊ..
तू बन जाए शिव मेरा ,
और मै तेरी काशी हो जाऊ..
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