कई बार चुभते है
असामान्य से ये दिन
उत्सवों की भीड़
और इतनी तैय्यारी
जाने क्यूं
ऐसा लगता है
सब बेवजह खुद को
बहलाने में जुटे है
जीना नहीं चाहते
फिर भी जिये जा रहे हैं
ज़िन्दगी के इस बोझ को
ढोये जा रहे है।
बस_यू_ही
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