तुम्हे पता हैं क्या होता है इंतजार........क्या होता हैं किसी से मिलने की आस......जो एक बेसब्री सी उम्मीदहोती है। जीने की तमन्ना होती हैं। कुछ करे का जज्बा है।चैत वैशाखकी तपती दुपहरी में सावन की फुहार होती हैं तुमसे मिलने की आस।बार बार कई बार टूटती हुई उम्मीदों के साथ एक छोटी सी आशा जो कह जाती है हर टूटती उम्मीद के बाद की नहीं ऐसा नहीं हो सकता ,अगर जो कुछ भी हुआ वो एक छलावा नहीं था तो तुम थोड़ी देर के लिए सही लेकिन मिलोगे तो...... हमे नहीं पता की जब मेरा इंतजार पूरा होगा और तुम मेरे सामने होगे तो मैं खुद को कैसे संभालूंगी.......
पता हैं मैने तुम्हारे लिए कुछ उपहार भी रखे हुए हैं। जिनमे कुछ कपड़े ,कुछ किताबे और हां तुम्हारी पसंद के चॉकलेट और बेसन के लडडू भी रखे हुए है सालो से,वो भी मिलना चाहते शायद तुमसे। कुछ भी खराब नही हुआ है और ना ही होगा ।सब कुछ सहेज कर रखा है मैने........कई सालो के बाद एक बार यू ही लगा कि एक बार देख तो लूं कही लडडू महक तो नही गए , और तुमने भी तो कहा था ना कि लड्डुओ को किसी गाय को खिला दो , जाने कब आना हो। खोला था मैंने डिब्बा बहुत प्यार से और एक लड्डू मै देखा कल वैसा ही था जैसा मैंने रखा था। तुम्हे नहीं पता न तुम्हारे लिए बनाए लड्डूओ में से बिना तुम्हे खिलाए वो एक लडडू खाना मुझे कितने अपराधबोध से भर गया था और मैंने उसे पुनः फिर से सही से बंद करके रख दिया।
ये सारे तुम्हारे उपहार , मैं कितनी बेसब्री से तुम्हारा इंतज़ार करते हैं तुम्हे क्या पता।ये सब तुम्हारी अमानत है मेरे पास तब तक जब तक तुम ले नही जाते....
कैसे बताऊं मैं कितना महकती हूँ मैं, भीग कर...तेरे प्यार की ओस से और सोचती हूँ, ये अक्सर अगर तुम बरस जाते आप... तो क्या कमाल होता...