Monday, 16 August 2021

क्या होता है इंतजार


तुम्हे पता हैं क्या होता है इंतजार........क्या होता हैं किसी से मिलने की आस......जो एक बेसब्री सी उम्मीदहोती है। जीने की तमन्ना होती हैं। कुछ करे का जज्बा है।चैत वैशाखकी तपती दुपहरी में सावन की फुहार होती हैं तुमसे मिलने की आस।बार बार कई बार टूटती हुई उम्मीदों के साथ एक छोटी सी आशा जो कह जाती है हर टूटती उम्मीद के बाद की नहीं ऐसा नहीं हो सकता ,अगर जो कुछ भी हुआ वो एक छलावा नहीं था तो तुम थोड़ी देर के लिए सही लेकिन मिलोगे तो...... हमे नहीं पता की जब मेरा इंतजार पूरा होगा और तुम मेरे सामने होगे तो मैं खुद को कैसे संभालूंगी.......
            पता हैं मैने तुम्हारे लिए कुछ उपहार भी रखे हुए हैं। जिनमे कुछ कपड़े ,कुछ किताबे और हां तुम्हारी पसंद के चॉकलेट और बेसन के लडडू भी रखे हुए है सालो से,वो भी मिलना चाहते शायद तुमसे। कुछ भी खराब नही हुआ है और ना ही होगा ।सब कुछ सहेज कर रखा है मैने........कई सालो के बाद एक बार यू ही लगा कि एक बार देख तो लूं कही लडडू महक तो नही गए , और तुमने भी तो कहा था ना कि लड्डुओ को किसी गाय को खिला दो , जाने कब आना हो। खोला था मैंने डिब्बा बहुत प्यार से और एक लड्डू मै देखा  कल वैसा ही था जैसा मैंने रखा था। तुम्हे नहीं पता न तुम्हारे लिए बनाए लड्डूओ में से बिना तुम्हे खिलाए वो एक लडडू खाना मुझे कितने अपराधबोध से भर गया था और मैंने उसे पुनः फिर से सही से बंद करके रख दिया।
           ये सारे तुम्हारे उपहार , मैं कितनी बेसब्री से तुम्हारा इंतज़ार करते हैं तुम्हे क्या पता।ये सब तुम्हारी अमानत है मेरे पास तब तक जब तक तुम ले नही जाते....
     कैसे बताऊं मैं कितना महकती हूँ मैं, भीग कर...तेरे प्यार की ओस से और सोचती हूँ, ये अक्सर अगर तुम बरस जाते आप... तो क्या कमाल होता...



Wednesday, 11 August 2021

बातें अभी और भी है।

बातें अभी और भी है।

   2020 जुलाई अगस्त से करोना का कहर कुछ कम होने लगा था और जिन्दगी धीमी ही सही पर वापस पटरी पर लौटने लगी थी।  2021 जनवरी की शुरुआत कुछ इस उम्मीद पर हुई थी कि अब करोना धीरे धीरे समाप्त हो जायेगा किन्तु ईश्वर को शायद ये मन्जूर नहीं था वो इन्सानों को प्रकृति से खिलवाड़ करने की सजा देना चाहते थे। इन्सानों ने जिस तरह प्रकृति को प्लास्टिक से ढका था प्रकृति ने इन्सानों को ही प्लास्टिक में बन्द कर दिया। मार्च-अप्रैल में करोना नामक दानव ने फिर से सर उठाना शुरू कर दिया था और अप्रैल-मई में तो ये अपने भंयकर विकराल रूप को धारण कर चुका था।हर तरफ से मदद की गुहार सुनाई देती थी। शायद ही कोई घर बचा हो जहां मौत ने अपने कदम नहीं रखें हो। अस्पतालों के बुरे हाल थे।
          जहां इतने बुरे माहौल में जिससे जितना मदद बन सका उसने किया। बहुत सारे सामाजिक संस्थाएं आगे आयी वहीं कुछ लोग ऐसे भी थे जो अभी भी सरकारों को कोसने,आपसी दुश्मनी निकालने से बाज नहीं आ रहें थे।कुछ लोग खून,प्लाज्मा,‌आक्सीजन और जीवनरक्षक दवाओं की जमाखोरी और कालाबाजारी कर रहे थे। कुछ लोग मदद के लिए आगे तो आये लेकिन इस शर्त पर कि अगर जीवन के लिए संघर्षरत इन्सान मोदी भक्त हुआ तो मैं मदद नहीं करूंगा उसकी मदद तो खुद मोदी जी ही आकर करेंगे। मैं उसे समझाती रह गयी कि हर इंसान को खून और प्लाज्मा मोदी जी नहीं दे सकते ,ये हमें आप को ही करना होगा और हम आप भी बस कुछ लोगों को ही दे सकते हैं तो कृपया अगर आप दें सकते हैं तो जरूर दें। लेकिन वो बन्दा अपनी पर अड़ा रहा और नहीं दिया। कुछ लोग ऐसे भी मिले जिन्हें सोशल मीडिया पर इनबाक्स में आपसे हाय हैलो करके आपकी तारीफों के पुल तो बांधने थे लेकिन वो आपकी मदद के गुहार लिए पोस्ट को अपने वाल पर शेयर करने से कतराते रहे। और इन सबकी सबसे खास बात कि ये सब भी इन्सान थे।
वक्त कैसा भी हो गुजर जाता है ,कभी हंसा के कभी रुला के........ लेकिन साथ ही बहुत कुछ सीखा भी जाता हैं।



Monday, 9 August 2021

पापा

  मैं तो "पत्थर" थी; मेरे माता-पिता "शिल्पकार" थे.....
मेरी हर "तारीफ़" के वो ही असली "हक़दार हैं।
             हर लड़की की तरह मेरे लिए भी मेरे पापा मेरे लिए किसी हीरो से कम नहीं थे। फिर भी जाहिर तौर पर हमारे विचारों में मतभेद भी बहुत थे, लेकिन मनभेद कभी नहीं हुआ। मेरे पिता ईमानदार कर्मठ और साहसी थे ।और कहीं ना कहीं ये सभी गुण मेरे में भी परिलक्षित होते हैं। आज मैं जो कुछ भी हूं ,जैसी भी हूं उसमें सबसे ज्यादा योगदान मेरे माता-पिता का ही है।


प्रमेय

पुस्तक का नाम         :  प्रमेय
प्रकाशक                 : राजपाल एण्ड सन्स
                                    
पुस्तक प्राप्ति का स्थान  : Amazon.in https://www.amazon.in/Pramey-Bhagwant-Anmol/dp/9389373484/ref=sr_1_4?crid=29DDITDELK3A9&dchild=1&keywords=bhagwant+anmol&qid=1624852982&s=books&sprefix=Bhagwant+%2Cstripbooks%2C572&sr=1-4

मूल्य                          : ₹ 200
संस्करण प्रथम             : 2021

हिन्दी लेखकों के वर्तमान पीढ़ी में अनमोल भगवंत जी के लेखन हमेशा ही अनोखा और एक अलग अन्दाज़ लिए हुए रहा है, भगवंत जी ने साहित्य में नित नए प्रयोग करते हुए कीर्तिमान स्थापित किए हैं।
कभी कामयाबी की कहानी ,कभी रिश्तों के मर्म , कभी किन्नरों की जिंदगी ,कभी लड़कपन के नटखट अंदाज , कभी गांवों के अल्हड़पन और इस बार विज्ञान और ईश्वरीय शक्ति के बीच के मानसिक जद्दोजहद को अनमोल भगवंत जी ने अपनी रचना में उकेरा है।
         "अध्यात्म सृजन हैं, विज्ञान शोध हैं, धर्म नियम हैं।"
उपरोक्त लाइन भगवंत अनमोल की नयी कृति प्रमेय का सार भी है और जान भी। अध्यात्म, विज्ञान, धर्म,चेतना पर गहन शोध और चिन्तन के साथ प्रमेय में दो प्रेम कथाएं समानांतर चलती हैं, एक फ़ातिमा और सूर्यांश जो दो भिन्न धर्मों को मानने वाले सामान्य मध्यम वर्गीय परिवार से ताल्लुक रखते हैं। दूसरी कथा दो भिन्न ग्रहों के निवासी तारकेय और सुनैना की प्रेम का दुःखद अंत हैं।
       रचना की भाषा जरुर कहीं कहीं थोड़ी अश्लील होती हैं लेकिन उसके कारण कथा की रोचकता ज़रा भी प्रभावित नहीं होती। आप एक बार पुस्तक  शुरू करने के बाद पूरी पढ़ कर ही बन्द करना चाहेंगे।अगर आप कुछ नया और अलग पढ़ने के लिए खोज रहे हैं तो प्रमेय को पढ़े निस्संदेह आपकी खोज पूरी होगी।👍


पानी बरसा

पानी बरसा
गड़गड़ गड़गड़ बादल गरजे,
चमचम चमचम बिजली चमके।
रिमझिम रिमझिम पानी बरसे,
टरटर टरटर करते मेंढ़क आये।
मोर सजीला नाच दिखाते,
चारों ओर हरियाली छाये।
कुहुकू कुहूक कर कोयल बोले,
वातावरण में मिश्री हैं घोले।
कविता,सविता पिंकी रानो
झूलों पर झूला है झूले।
राजू ,सोनू ,मोनू संग मिलकर
हम सबने पानी में जहाज चलाये
मम्मी ने गरमागरम पकौड़े बनाये,
हम सब ने मिलकर, मजे से खाये।
नीलम वन्दना




चंदा मामा

चंदा मामा
********
चन्दा मामा आओ ना
अपना यान दिखाओ ना
हमें भी उसमें घुमाओ ना
हमें अपने घर ले जाओ ना
हलुआ पूरी और मिठाई
हमें तुम खिलाओ ना
हमें भी करनी है मस्ती
आपने खेल खिलौने दिखलाना
मामी से भी मिलवाना  
छुपमछुपाई खेलेंगे
चोट लगी तो भी नहीं रोयेगे
तुम्हारे घर से देखेंगे
कैसी धरती लगती है।
कैसे दिखते नदी,सागर ,पर्वत सारे
नीलम वन्दना


नसीब

हथेली पर रखकर नसीब,
तू क्यों अपना मुकद्दर ढूँढ़ता है..
सीख उस समन्दर से,
जो टकराने के लिए पत्थर ढूँढ़ता है..!!
  NeelamVandana


छू लो आसमान


बुलन्द हौसले से
सपनों की उड़ान से
छू लो आसमान तुम
सफलता कदम चूमे
रचो नित नए कीर्तिमान तुम

पर याद रहे धरती से,
जड़ें ना हिलने पाये।
संस्कारों की डोर,
ना यूं टूटने पाये।

क्योंकि आसमानों में उड़ने वाले
परिन्दे भी कर जाते चुगली,
आसमानों में उड़ाने होती है
और ठिकाने तो धरती पर ही होते है।



लम्हों की जिंदगी

     
💫♥️सावन की बरसती बूंदें एक बात सीखा गई जिंदगी के खूबसूरत लम्हों सिर्फ महसूस किये जाते हैं कैद नहीं💘
           तुम्हे पता हैं तुम्हारे साथ टुकड़ों में गुजारे हुये एक एक लम्हा मेरी जिंदगी के कुछ बेहद खुबसूरत लम्हो में से हैं, और उन टुकड़ों में बिखरे हुए लम्हों को जोड़ कर मैंने अपनी बाकी बची हुई तमाम उम्र के लिए यादों का आशियाना बना लिया है। अब कभी तुमसे मिलने की उम्मीद नहीं होने के बावजूद बस इतनी सी ख्वाहिश है कि यादों के उस आशियाने में कुछ लम्हे और जोड़ सकूं।
       हां उम्मीद ना होने के बावजूद है , तुमसे मिलने की तमन्ना है, तुम्हे सुनने की ख्वाइश है,लेकिन तुम्हारी इच्छा के बिना नहीं.!♥️ ♥️
          तुम्हें पता हैं रोज अपने ईश्वर से प्रार्थना भी यही करती हूं कि अगर इस जन्म में मैंने कभी भी कोई अच्छा काम किया हो तो उसके बदले में अगले जन्म में हमें वो आपसे मिला दें ,रिश्ता जो भी उसे पसन्द हो ,बस हमें साथ रहने का और ज्यादा बहुत ज्यादा समय दे। 
        कैसे बताएं कि मेरे लिए कितने खास हो तुम, ईश्वर से डरते ना होते तो कह देते कि मेरे ईश्वर ही हो तुम...