मैं तो "पत्थर" थी; मेरे माता-पिता "शिल्पकार" थे.....
मेरी हर "तारीफ़" के वो ही असली "हक़दार हैं।
हर लड़की की तरह मेरे लिए भी मेरे पापा मेरे लिए किसी हीरो से कम नहीं थे। फिर भी जाहिर तौर पर हमारे विचारों में मतभेद भी बहुत थे, लेकिन मनभेद कभी नहीं हुआ। मेरे पिता ईमानदार कर्मठ और साहसी थे ।और कहीं ना कहीं ये सभी गुण मेरे में भी परिलक्षित होते हैं। आज मैं जो कुछ भी हूं ,जैसी भी हूं उसमें सबसे ज्यादा योगदान मेरे माता-पिता का ही है।
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