नेताजी
कटक उडीसा मे थे जन्में
बचपन वहीं पर गुजरा था।
सबसेअलग छबि थी,
अलग था उनका शान।
बचपन से ही दीन-हीन की
सेवा थे करते
विवेकानंद जी थे बहुत ही भाये।
युवावस्था में छोड प्रशासनिक सेवा,
कूद पड़े थे स्वतन्त्रता संग्राम में
शामिल हो गए कांग्रेस में,
गांधी जी से मतभेद हुआ जब,
फ़ोर्वर्ड ब्लोक का गठन किया।
सुभाष चंद्र बोस नाम था इनका
नेताजी कहलाते थे।
आजादी के जंग में इनके
जांबाजी की गाथा
इतिहास हमें सुनाता है
जय हिन्द का नारा देकर जिसने
देशप्रेम का अलख जगाया है।
द्वितीय विश्व युद्ध में
आजाद हिंद का गठन किया।
"तुम मुझे खून दो मै तुम्हेंआजादी दूंगा"
नेताजी के नारे ने देशप्रेमीयो में
एक नया जूनून सा भर दिया।
दौड़ते हुए बाघ को नेताजी ने
आजाद हिन्द का प्रतीक बना
"तुम मुझे खून दो में आजादी
दूंगा" का आवाहन किया
नज़रबंद जब किया सरकार ने
धूल झोंकी,वेश बदलकर,
भागे चकमा देकर
दुश्मन का दुश्मन दोस्त समझ,
पहुँचे जापान, जर्मनी से
बुलंद घोषणा नेताजी ने
किया शंख नाद "जय हिन्द" का
जापानी सेना के सहयोग से
अंडमान निकोबार पर
विजय पताका फहराया
टोकीओ जाते समय हुये
असमय ही काल के शिकार
थी वो भयंकर हवाई दुर्घटना
छोड़ गये हम सबको नेताजी
शव तक किसी को मिल ना पाया।
गुलाम भारत के आज़ाद थे वो,
एक नया मोड दिया स्वतंत्रता संग्राम को
सारा जीवन गुजारा संघर्ष भरा,
पर भर को ना आराम मिला
स्वतंत्रता मांगे है बलिदान,
बिन बलिदान ना मिले स्वतंत्रता
सशस्त्र क्रांति द्वारा भारत को,
किया संकल्प स्वतंत्रत कराने को
मन में सदा उठती है ये हूक,
क्यूं मौत विवादित रही देशभक्त की,
भारत माता का यह सपूत,
देख पाया न आज़ाद अपनी माता को
नेताजी का यह बलिदान,
कभी ना भूलेगा हिन्दुस्तान
नीलम वन्दना