Friday, 31 December 2021
नया साल
Monday, 20 December 2021
नव संकल्प के साथ नववर्ष का आगाज
अटल बिहारी वाजपेई जी
सन् 1924 क्रिसमस के दिन
इक सितारा उदय हुआ...
तब किसी को खबर नहीं ,
राजनीति के ब्रम्हांड में
ध्रुव तारा उदय हुआ था.....
राजनीति के तुफानों में भी
जिसने उम्मीदों का दीप जलाया था...
सत्ता से ऊपर है देश
हमेशा यही समझाया था....
जननायक कुछ ऐसे थे वो,
दलों को नहीं उन्होंने
लोगों के दिलों को जीता था.....
उनकी मधुर वाक्पटुता का रस
शत्रु भी सहर्ष पीता था.....
प्रखर थे वक्ता,कवि हृदय भी
भारतरत्न कहलाये है....
उनकी कवितायें सुनने
विपक्षी दल भी आए हैं.....
नहीं की शत्रुता कभी किसी से,
स्वस्थ प्रतिस्पर्धा वो करते थे....
विपक्ष का दम भी उनसे था,
सत्ताधारी डरते थे....
विश्व शांति के पक्षधर थे वो,
पर दुश्मन को सबक सिखाया था...
विश्व शक्ति के नाकों तले,
परमाणु परीक्षण कराया था,
नहीं डरता है भारत किसी से
यह दुनिया को बतलाया था।
एक बार एक मोहतरमा ने
प्रणय निवेदन भेजा था,
मुंह दिखाई के रस्म में उसने
कश्मीर को मांगा था।
निवेदन को स्वीकार कर
तब पूरा पाकिस्तान
दहेज में इन्होंने मांगा था..
ऐसे ही इनके हाजिर जवाबी के
किस्से जहां में चर्चित थे....
कृष्ण बिहारी जी के घर में
जन्मे उनके लाल थे....
अटल बिहारी नाम है जिनका
अटल इरादे रखतें थे।
Friday, 19 November 2021
कारवां मन्जिल की ओर
चलते जाओ नेक नीयत से,
नेकी के फरिश्ते मिल ही जाएंगे।
आज बेशक अकेले हो तुम सफर में ,
कल कारवां भी बनते जायेंगे।
बस यूं ही हिमाद्री वर्मा "समर्थ" ने भी नेक नियती के साथ 2014 से लिखना शुरू किया।और उनके लेखन की ख्वाहिश "ख्वाहिशों के समन्दर" से चल कर ख्वाहिशों की धारा में एहसास दिल के, मन के अल्फ़ाज़ और अल्फाजों के कारवां" से आगे बढ़ते हुए ये "कारवां मन्जिल की ओर" कहानी संग्रह के सम्पादन तक पहुंच गया है।
सम्पर्क साहित्य संस्थान के तत्वावधान में सम्पादित व साहित्यगार प्रकाशन द्वारा प्रकाशित "कारवां मन्जिल की ओर" एक ऐसा कहानी संकलन है, जो देश के विभिन्न क्षेत्रों में रह रही विभिन्न सामाजिक परिवेशो में रह रही 51 साहित्यिक अभिरुचि रखने वाली आधी शक्ति ने जो कुछ अपने आस-पास देखा महसूस किया , उसे कलमबद्ध किया। इन सभी कहानियों में समाज के विभिन्न परिस्थितियों से जूझती महिलाओं के सकारात्मकता व नकारात्मकता दोनों पक्षों के दर्शन होते हैं साथ हुआ विडम्बना वो विसंगतियों की व्यथा और जीवन संघर्ष परिलक्षित होता है। वो आंचल पाहवा की कहानी मूरत में बलात्कार पीड़िता का दर्द हो , या रिश्तों के महत्व समझाती अनिला बत्रा की कहानी रिश्तों की महक हो। बुजुर्गो के साथ ही परिवार का अस्तित्व बताता अंजली कौशिक की कहानी सोच हो या दहेज के दर्द को उकेरती और उसे अभिशाप समझने वाले निखिल का बिना दहेज शादी का निर्णय करने वाली डा. आशा सिंह सिकरवार की कहानी दहेज एक अभिशाप। ऐसे ही इस कहानी संग्रह की सभी कहानियां एक से बढ़कर एक हैं और सभी मानवीय मूल्यों को बनाए रखने का समर्थन करती है।संक्षेप में अगर आपको नारी संघर्ष और उपलब्धियों से जुड़ी हुई बातें पसंद आती है तो निसंदेह यह पुस्तक आपको पसंद आएगी।
कारवां मन्जिल की ओर
प्रथम संस्करण : 2022
ISBN :
978-93-90449-69-9
सम्पादन : हिमाद्री समर्थ
प्रकाशन। : साहित्यागार,
नामची मार्केट की गली
चौड़ा रास्ता, जयपुर
प्राप्ति का स्थान : amazon.in
flipkart.com
मूल्य : 300.00
काशी की संस्कृति और परंपरा
Sunday, 14 November 2021
जिन्दगी और मैं
जिन्दगी और मुझमें शुरू से ही ठनी थी।
उसे बड़ा करने की जिद्द थी ,
मेरी बचपन बचाने की मुहिम थी
जिन्दगी ने हर कदम एक नई चाल चली,
मैंने भी हर कदम उस चाल को यूं मात दी,
जब राहो में उसने वज़ीर कई खड़े किये,
तब मेरे बुद्धु से दिखते प्यादों ने भी कमाल किये,
चालो से भरे शह और मात के इस खेल में,
यूं ही जिन्दगी हमसे उलझती रही,
और हम भी अपने बचपन को चुरा कर निकलते रहे।
बाल दिवस
🥰
छोटी छोटी बातों पर,
तुनक के रूठने वाले,
छोटी छोटी बातों से
झट से खुश हो जाने वाले
बढ़ती हुई उम्र की गिनती में भी बचपन सी निश्छलता
व मासूमियत छुपा कर
रखने वाले बड़ों को भी ,
बाल दिवस की शुभकामना।
😎😎
Monday, 8 November 2021
अंगार आंख में
अंगार आंख में
अंगार आंख में डाले मां,
बेटे के ऊपर चिल्लाई,
ऐ परम गधे के गधे पुत्र!
क्यों पूरी रोटी नहीं खाई?
खानी है क्या तुझे पिटाई??
ना खाना पीना ढंग से,
ना ही करें ढंग से काम कोई
ना जाने सीखें कहां से
सारे काम बेढ़ंगे....
पढाई लिखाई से तोड़ के नाता,
सिर्फ बदमाशियों से जोड़े नाता।
एक पल भी चैन से रहे नहीं खुद,
मेरी भी है नींद उड़ाता,
ऐ परम गधे के गधे पुत्र,
क्यों नहीं पूरी रोटी खानी!!!🙄
नीलम वन्दना
Saturday, 23 October 2021
करवाचौथ का व्रत व करवाचौथ पर चांद की पूजा
Tuesday, 19 October 2021
सुनो ना....29
सुनो ना - 28
Tuesday, 12 October 2021
धरती की बेटी
Saturday, 2 October 2021
गुदड़ी के लाल लाल बहादुर शास्त्री
साबरमति के संत : महात्मा गाँधी
साबरमति के संत : महात्मा गाँधी
'दे दी हमें आजादी बिना खडग बिना ढाल, साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल'-लोकप्रिय गीत की ये पंक्तियां बापू के करिश्माई व्यक्तित्व और कृतित्व का प्रशस्ति-गान हैं। गांधी-दर्शन के चार आधारभूत सिद्धांत हैं- सत्य, अहिंसा, प्रेम और सद्भाव। वह बचपन में 'सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र' नाटक देखकर सत्यावलंबी बने। उनका विश्वास था कि सत्य ही परमेश्वर है। उन्होंने सत्य की आराधना को भक्ति माना और अपनी आत्मकथा का नाम 'सत्य के प्रयोग' रखा। 'मुंडकोपनिषद' से लिए गए राष्ट्रीय वाक्य 'सत्यमेव जयते' के प्रेरणा-श्रोत बापू हैं। अहिंसा का अर्थ है-मन, वाणी अथवा कर्म से किसी को आहत न करना। ईष्र्या-द्वेष अथवा किसी का बुरा चाहना वैचारिक हिंसा है तथा परनिंदा, झूठ बोलना, अपशब्दों का प्रयोग एवं निष्प्रयोजन वाद-विवाद वाचिक हिंसा के अंतर्गत आते हैं। बापू सत्य और अहिंसा के पुजारी थे। उनका विचार था, 'अहिंसा के बिना सत्य की खोज असंभव है। अहिंसा साधन है और सत्य साध्य।' शांति प्रेमी रूस के टॉलस्टाय और अमेरिका के हेनरी डेविड थॉरो उनके आदर्श थे।
चौरी-चौरा में तनिक हिंसा हो जाने पर बापू ने तमाम आलोचनाओं के बावजूद देशव्यापी सत्याग्रह आंदोलन को स्थगित कर दिया। सच्चा प्रेम नि:स्वार्थ एवं एकरस होता है। उसमें अपने सुख की कामना नहीं होती। काका कालेलकर की दृष्टि में-बापू सर्वधर्म समभाव के प्रणेता थे। 'वसुधैव कुटुंबकम्' का उदात्ता सिद्धांत और वेदोक्त 'सर्व खल्विदं ब्रह्म' उनके जीवन का मूलमंत्र था। उनकी प्रार्थना सभाओं में गीता के श्लोक, रामायण की चौपाइयां, विनय-पत्रिका के पद के साथ ही नरसी मेहता व रवींद्रनाथ टैगोर के भजन आदि के प्रमुख अंशों का पाठ होता था। उनके हृदय में प्रेम व सभी धर्मो के प्रति आदरभाव था। इसीलिए, प्यार में 'बापू' एवं 'राष्ट्रपिता' भी कहलाए। अल्बर्ट आइंस्टीन ने सच ही कहा था। 'आने वाली पीढि़यां, संभव है कि शायद ही यह विश्वास करें कि महात्मा गांधी की तरह कोई व्यक्ति इस धरती पर कभी हुआ था।'
Neelam Vandana
Tuesday, 28 September 2021
मेरी मन्नत हैं तू
मेरी मन्नत हैं तू
मेरी मन्नत है तू ,मेरी जन्नत है तू ....
मेरे इस जीवन का बेशकिमती नज़राना है तू.....
मांगी थी हर दर पर जो दुआ,
उस दुआ कि तासीर हैं तू.....
देखा था जो हसीन ख्वाब ,
उस ख्वाब की ताबीर है तू....
मेरी की गई हर अरदास की नेमत है तू ,....
मेरे दिल की धड़कन है तू
मेरे इस जीवन की आखिरी सांसें भी तू..
मेरी धरती मेरा आकाश तू,
मेरी तो पूरी दुनिया भी है तू ...
तुझसे ही उम्मीदे मेरी , मेरी हर जीत की आगाज है तू ,
मेरा अस्तित्व है तू ,मेरी पहचान है तू...
मेरे होने का वजूद है तू....
मेरा ही तो एक हिस्सा हैं तू ....
मेरे बुढ़ापे का सहारा तू...
तेरी ही किलकारियों से रौशन है घर सारा...
गोद में जब आये तू स्वर्ग सा लगे ये जग सारा....
ममता से भरा आँचल है मेरा,....
नन्हे कदमों के ठुमक से गुलजार आंगन हैं मेरा...
Friday, 17 September 2021
जिन्दगी : किश्तों में ना जाया करो
Wednesday, 15 September 2021
हाथों की लकीरें
हथेलिया तो मिल गयी थी हमारी और उनकी.!
लकीरो के न मिलने का मलाल रह गया..!!😔
नज़रे तो मिल गयी थी हमारी और उनकी...!
नज़रिये के न मिलने की कसक रह गया...!!
😌
दिल भी तो मिल गये थे ,हमारे और उनके..!
हम ना मिल सके मुक्कदर की बात है....!!
😌
Sunday, 12 September 2021
फिर भी जी गई।।
Monday, 16 August 2021
क्या होता है इंतजार
तुम्हे पता हैं क्या होता है इंतजार........क्या होता हैं किसी से मिलने की आस......जो एक बेसब्री सी उम्मीदहोती है। जीने की तमन्ना होती हैं। कुछ करे का जज्बा है।चैत वैशाखकी तपती दुपहरी में सावन की फुहार होती हैं तुमसे मिलने की आस।बार बार कई बार टूटती हुई उम्मीदों के साथ एक छोटी सी आशा जो कह जाती है हर टूटती उम्मीद के बाद की नहीं ऐसा नहीं हो सकता ,अगर जो कुछ भी हुआ वो एक छलावा नहीं था तो तुम थोड़ी देर के लिए सही लेकिन मिलोगे तो...... हमे नहीं पता की जब मेरा इंतजार पूरा होगा और तुम मेरे सामने होगे तो मैं खुद को कैसे संभालूंगी.......
पता हैं मैने तुम्हारे लिए कुछ उपहार भी रखे हुए हैं। जिनमे कुछ कपड़े ,कुछ किताबे और हां तुम्हारी पसंद के चॉकलेट और बेसन के लडडू भी रखे हुए है सालो से,वो भी मिलना चाहते शायद तुमसे। कुछ भी खराब नही हुआ है और ना ही होगा ।सब कुछ सहेज कर रखा है मैने........कई सालो के बाद एक बार यू ही लगा कि एक बार देख तो लूं कही लडडू महक तो नही गए , और तुमने भी तो कहा था ना कि लड्डुओ को किसी गाय को खिला दो , जाने कब आना हो। खोला था मैंने डिब्बा बहुत प्यार से और एक लड्डू मै देखा कल वैसा ही था जैसा मैंने रखा था। तुम्हे नहीं पता न तुम्हारे लिए बनाए लड्डूओ में से बिना तुम्हे खिलाए वो एक लडडू खाना मुझे कितने अपराधबोध से भर गया था और मैंने उसे पुनः फिर से सही से बंद करके रख दिया।
ये सारे तुम्हारे उपहार , मैं कितनी बेसब्री से तुम्हारा इंतज़ार करते हैं तुम्हे क्या पता।ये सब तुम्हारी अमानत है मेरे पास तब तक जब तक तुम ले नही जाते....
कैसे बताऊं मैं कितना महकती हूँ मैं, भीग कर...तेरे प्यार की ओस से और सोचती हूँ, ये अक्सर अगर तुम बरस जाते आप... तो क्या कमाल होता...
Wednesday, 11 August 2021
बातें अभी और भी है।
बातें अभी और भी है।
2020 जुलाई अगस्त से करोना का कहर कुछ कम होने लगा था और जिन्दगी धीमी ही सही पर वापस पटरी पर लौटने लगी थी। 2021 जनवरी की शुरुआत कुछ इस उम्मीद पर हुई थी कि अब करोना धीरे धीरे समाप्त हो जायेगा किन्तु ईश्वर को शायद ये मन्जूर नहीं था वो इन्सानों को प्रकृति से खिलवाड़ करने की सजा देना चाहते थे। इन्सानों ने जिस तरह प्रकृति को प्लास्टिक से ढका था प्रकृति ने इन्सानों को ही प्लास्टिक में बन्द कर दिया। मार्च-अप्रैल में करोना नामक दानव ने फिर से सर उठाना शुरू कर दिया था और अप्रैल-मई में तो ये अपने भंयकर विकराल रूप को धारण कर चुका था।हर तरफ से मदद की गुहार सुनाई देती थी। शायद ही कोई घर बचा हो जहां मौत ने अपने कदम नहीं रखें हो। अस्पतालों के बुरे हाल थे।
जहां इतने बुरे माहौल में जिससे जितना मदद बन सका उसने किया। बहुत सारे सामाजिक संस्थाएं आगे आयी वहीं कुछ लोग ऐसे भी थे जो अभी भी सरकारों को कोसने,आपसी दुश्मनी निकालने से बाज नहीं आ रहें थे।कुछ लोग खून,प्लाज्मा,आक्सीजन और जीवनरक्षक दवाओं की जमाखोरी और कालाबाजारी कर रहे थे। कुछ लोग मदद के लिए आगे तो आये लेकिन इस शर्त पर कि अगर जीवन के लिए संघर्षरत इन्सान मोदी भक्त हुआ तो मैं मदद नहीं करूंगा उसकी मदद तो खुद मोदी जी ही आकर करेंगे। मैं उसे समझाती रह गयी कि हर इंसान को खून और प्लाज्मा मोदी जी नहीं दे सकते ,ये हमें आप को ही करना होगा और हम आप भी बस कुछ लोगों को ही दे सकते हैं तो कृपया अगर आप दें सकते हैं तो जरूर दें। लेकिन वो बन्दा अपनी पर अड़ा रहा और नहीं दिया। कुछ लोग ऐसे भी मिले जिन्हें सोशल मीडिया पर इनबाक्स में आपसे हाय हैलो करके आपकी तारीफों के पुल तो बांधने थे लेकिन वो आपकी मदद के गुहार लिए पोस्ट को अपने वाल पर शेयर करने से कतराते रहे। और इन सबकी सबसे खास बात कि ये सब भी इन्सान थे।
वक्त कैसा भी हो गुजर जाता है ,कभी हंसा के कभी रुला के........ लेकिन साथ ही बहुत कुछ सीखा भी जाता हैं।
Monday, 9 August 2021
पापा
मैं तो "पत्थर" थी; मेरे माता-पिता "शिल्पकार" थे.....
मेरी हर "तारीफ़" के वो ही असली "हक़दार हैं।
हर लड़की की तरह मेरे लिए भी मेरे पापा मेरे लिए किसी हीरो से कम नहीं थे। फिर भी जाहिर तौर पर हमारे विचारों में मतभेद भी बहुत थे, लेकिन मनभेद कभी नहीं हुआ। मेरे पिता ईमानदार कर्मठ और साहसी थे ।और कहीं ना कहीं ये सभी गुण मेरे में भी परिलक्षित होते हैं। आज मैं जो कुछ भी हूं ,जैसी भी हूं उसमें सबसे ज्यादा योगदान मेरे माता-पिता का ही है।
प्रमेय
पुस्तक का नाम : प्रमेय
प्रकाशक : राजपाल एण्ड सन्स
पुस्तक प्राप्ति का स्थान : Amazon.in https://www.amazon.in/Pramey-Bhagwant-Anmol/dp/9389373484/ref=sr_1_4?crid=29DDITDELK3A9&dchild=1&keywords=bhagwant+anmol&qid=1624852982&s=books&sprefix=Bhagwant+%2Cstripbooks%2C572&sr=1-4
मूल्य : ₹ 200
संस्करण प्रथम : 2021
हिन्दी लेखकों के वर्तमान पीढ़ी में अनमोल भगवंत जी के लेखन हमेशा ही अनोखा और एक अलग अन्दाज़ लिए हुए रहा है, भगवंत जी ने साहित्य में नित नए प्रयोग करते हुए कीर्तिमान स्थापित किए हैं।
कभी कामयाबी की कहानी ,कभी रिश्तों के मर्म , कभी किन्नरों की जिंदगी ,कभी लड़कपन के नटखट अंदाज , कभी गांवों के अल्हड़पन और इस बार विज्ञान और ईश्वरीय शक्ति के बीच के मानसिक जद्दोजहद को अनमोल भगवंत जी ने अपनी रचना में उकेरा है।
"अध्यात्म सृजन हैं, विज्ञान शोध हैं, धर्म नियम हैं।"
उपरोक्त लाइन भगवंत अनमोल की नयी कृति प्रमेय का सार भी है और जान भी। अध्यात्म, विज्ञान, धर्म,चेतना पर गहन शोध और चिन्तन के साथ प्रमेय में दो प्रेम कथाएं समानांतर चलती हैं, एक फ़ातिमा और सूर्यांश जो दो भिन्न धर्मों को मानने वाले सामान्य मध्यम वर्गीय परिवार से ताल्लुक रखते हैं। दूसरी कथा दो भिन्न ग्रहों के निवासी तारकेय और सुनैना की प्रेम का दुःखद अंत हैं।
रचना की भाषा जरुर कहीं कहीं थोड़ी अश्लील होती हैं लेकिन उसके कारण कथा की रोचकता ज़रा भी प्रभावित नहीं होती। आप एक बार पुस्तक शुरू करने के बाद पूरी पढ़ कर ही बन्द करना चाहेंगे।अगर आप कुछ नया और अलग पढ़ने के लिए खोज रहे हैं तो प्रमेय को पढ़े निस्संदेह आपकी खोज पूरी होगी।👍
पानी बरसा
पानी बरसा
गड़गड़ गड़गड़ बादल गरजे,
चमचम चमचम बिजली चमके।
रिमझिम रिमझिम पानी बरसे,
टरटर टरटर करते मेंढ़क आये।
मोर सजीला नाच दिखाते,
चारों ओर हरियाली छाये।
कुहुकू कुहूक कर कोयल बोले,
वातावरण में मिश्री हैं घोले।
कविता,सविता पिंकी रानो
झूलों पर झूला है झूले।
राजू ,सोनू ,मोनू संग मिलकर
हम सबने पानी में जहाज चलाये
मम्मी ने गरमागरम पकौड़े बनाये,
हम सब ने मिलकर, मजे से खाये।
नीलम वन्दना
चंदा मामा
चंदा मामा
********
चन्दा मामा आओ ना
अपना यान दिखाओ ना
हमें भी उसमें घुमाओ ना
हमें अपने घर ले जाओ ना
हलुआ पूरी और मिठाई
हमें तुम खिलाओ ना
हमें भी करनी है मस्ती
आपने खेल खिलौने दिखलाना
मामी से भी मिलवाना
छुपमछुपाई खेलेंगे
चोट लगी तो भी नहीं रोयेगे
तुम्हारे घर से देखेंगे
कैसी धरती लगती है।
कैसे दिखते नदी,सागर ,पर्वत सारे
नीलम वन्दना
नसीब
हथेली पर रखकर नसीब,
तू क्यों अपना मुकद्दर ढूँढ़ता है..
सीख उस समन्दर से,
जो टकराने के लिए पत्थर ढूँढ़ता है..!!
NeelamVandana
छू लो आसमान
बुलन्द हौसले से
सपनों की उड़ान से
छू लो आसमान तुम
सफलता कदम चूमे
रचो नित नए कीर्तिमान तुम
पर याद रहे धरती से,
जड़ें ना हिलने पाये।
संस्कारों की डोर,
ना यूं टूटने पाये।
क्योंकि आसमानों में उड़ने वाले
परिन्दे भी कर जाते चुगली,
आसमानों में उड़ाने होती है
और ठिकाने तो धरती पर ही होते है।
लम्हों की जिंदगी
Sunday, 18 July 2021
गर्मी , तो बस गर्मी ही होती है।
गर्मी
Thursday, 8 July 2021
Democracy 2019
Sunday, 4 July 2021
कलयुग की अभिमन्यु
रचो चक्रव्यूह
तुम सब चाहे जितने ,
सारे चक्र तोडूंगी,
रण से मुँह ना
कभी मोड़ूँगी ,
सफलता का ताज पहनूंगी मैं
कायर नहीं वीरांगना हूं मैं,
कलयुग की अभिमन्यु हूँ मैं ।
सामने समन्दर हो चट्टान हो
बवंडर हो या हो तुफ़ान....
अब लक्ष्य से डीगा सके
ऐसी कोई बला नहीं...
कायर नहीं वीरांगना हूं मैं,
कलयुग की अभिमन्यु हूं मैं ।
तोड़ सारे मिथक
सबको दिखलाऊंगी मैं,
विजय ध्वजा फहराऊगी,
द्वापर की कहानी
अब नहीं दुहराउंगी मैं,
कायर नहीं वीरांगना हूं मैं,
कलयुग की अभिमन्यु हूं मैं ।
क्षितिज को छुने का ख्वाब है
दिलों में प्यासा सैलाब हैं,
साकार करूंगी वो सपने सारे
जो माता पिता ने देखें है ,
मेहनत से मुंह ना मोड़ूगी मैं
कायर नहीं वीरांगना हूं मैं,
कलयुग की अभिमन्यु हूँ मैं ।
जिनको आज है सन्देह
वहीं कल कन्धों पर बैठायेगें
रवि - शशी विजय उद्घोष करेंगे...
हासिल वो मुकाम करूंगी
कायर नहीं वीरांगना हूं मैं,
कलयुग की अभिमन्यु हूँ मैं ।
Wednesday, 9 June 2021
सुनो ना......बस एक बार
सुनो ना......
एक गुज़ारिश करू बोलो मानोगे,
वादा करके फिर तो नहीं जाओगे
बस एक बार अपने आगोश में छुपा लो,
जिन्दगी मुक्कमल होने से पहले.......
बस एक बार करा दो अपना जी भरकर दीदार इन तरसती आंखों को....
जिन्दगी मुक्कमल होने से पहले.....
बस एक बार घोल जाओ इन कानों में अपनी मखमली आवाज़ के जादू को
जिन्दगी मुक्कमल होने से पहले....
बस एक बार
नीलम वन्दना
Sunday, 18 April 2021
आस्था की खास बात #COVID19Pandemic
COVID19Pandemic
Tuesday, 9 March 2021
सात समन्दर पार....
Sunday, 21 February 2021
Sunday, 14 February 2021
लम्हो का इश्क़
Monday, 8 February 2021
अनहिता
मोहब्बत की कहानियां, किरदारों के गुजर जाने के बाद भी जिंदा रहती हैं. ये एक ऐसी शय है कि इसके खरीदार जमाने के बाजार में हमेशा रहते हैं.
आज अनहिता का जन्मदिन था, लेकिन अग्रिम ने उसे बधाई भी नही दिया, नये साल और त्योहारो पर विश करना तो अग्रिम ने कई सालो से बन्द कर दिया था। अगर अनहिता कभी विश कर भी दे तो बड़े ही अनमने मन से रिप्लाई देता। इस बात को लेकर दोनों को में कई बार अच्छे से बहस भी हो चुकी थी।
अनहिता बहुत हैरान थी अग्रिम के इस बदले हुये तेवर से। उसे समझ ही नही आ रहा था कि आखिर उन दोनो के रिश्ते मे गलती हुयी कहा।पिछले कई सालो से वो अग्रिम से सिर्फ कुछ वक्त ही तो मांग रही थी,जिसके लिए अग्रिम कभी परिवार कभी करोना और कभी उसके व्यवहार को दोष देकर टाल देता। पिछले 4 सालो मे तो ना जाने कितनी बार अग्रिम ने खुद की मिन्नते करायी थी, काफी मान मन्नौवल के बाद किसी तरह अनहिता ने टूटते बिखरते रिश्ते को बचाया था, और उस रिश्ते की आग मे खुद को सम्हाला था।
ज़िन्दगी की इसी उहापोह से गुज़रते ना जाने कब अनहिता अतीत के वादियो मे खो गयी उसे खबर भी नही हुआ।जैसे कल की ही बात हो जब उसके मोबाइल पर अग्रिम की पहली बार कॉल आयी थी, कितना अचम्भित रह गयी थी अनहिता की उसे उसका नम्बर कहा से और कैसे मिला? उसके बाद फिर दोनों की बातें अक्सर हो जाया करती थी।अब तो धीरे धीरे अग्रिम हर रोज ही आफिस से वापिस घर आते समय रास्ते मे अनहिता से बात करते लौटता। कभी कभी देर रात घर से भी बात कर लिया करता।अगर किसी कारण अनहिता का फोन नही लग पाता या कभी बात नही हो पाती तो कितना परेशान हो जाता था अग्रिम,और कहता "सारा दिन कहा व्यस्त थी महारानी साहिबा" या "आप तो ईद का चॉद का हो गयी है मेरी चश्मेबद्दूर जिगर का छल्ला" बोल कर नाराजगी जाहिर करता था, वो भी हस कर बात को खत्म कर दिया करती।
उस साल अनहिता के जन्मदिन के दिन कितनी ज्यादा ठण्डी थी, दिन के 11 बजे तक चारो ओर घने कोहरे का साम्राज्य कायम था फिर भी वह जयपुर से मुंह अन्धेरे ही निकल कर 11 वजे तक दिल्ली अनहिता के पास पहुच गया था।दोनो पूरे दिन साथ रहे ,और कितने बढ़िया से अनहिता का जन्मदिन मनाया था।अग्रिम ने जाते जाते वादा भी किया कि बाकी दिनो का पता नही लेकिन अब अनहिता के हर आने वाले जन्मदिन पर दोनो साथ होगा , और फिर एक बार तो अग्रिम के घर विदेश से उसके कुछ रिश्तेदार मिलने आये थे अनहिता ने कहा भी कि वो जन्मदिन मेहमानो के जाने के बाद मना लेगें,लेकिन अग्रिम नही माना था।अनहिता को कुछ समझ नही आ रहा था कि उससे वाकई मे कोई गलती हुयी है, या अग्रिम को मिन्नते कराने की लत पड़ चुकी है या फिर अग्रिम का अनहिता से मन भर चुका है| अतीत की यादो और वर्तमान मे उलझी रोते हुये अनहिता की आखे कब लग गयी पता भी नही चला | जब उसकी ऑखे खुली तो सूरज सर पर चढ़ चुका था।अनहिता को ऑफिस के लिये भी देर हो चुकी थी | रात मे अग्रिम से हुयी उसकी लडाई के कारण सर भी भारी सा महसूस हो रहा था | भारी मन से ही वो किचन मे गयी और चाय बनाते हुये उसने ऑफिस के मेल पर आकस्मिक अवकाश के लिये आवेदन कर दिया| चाय पीते हुये अनहिता सोच रही थी कि 1 महीने बाद अग्रिम का जन्मदिन आने वाला है तब तक शायद सब कुछ पहले सा सामान्य हो जाये और अनहिता ने मौन की राह पकड़ ली थी। ऊपर दिन ब दिन अग्रिम की बेरुखी बढ़ती ही जा रही थी।अग्रिम की ये खामोशी, पिछले कुछ दिनों मे उन देने के बीच हुयी लड़ाईया अनहिता के आत्मविश्वास को तोड़ रही थी। उपर से तो वह बराबर से अग्रिम से बोलती बात करती रहती लेकिन अन्दर ही अन्दर वह उसके ऐसे व्यवहार से टूट कर बिखरती जा रही थी । आखिर वक्त के साथ अग्रिम के जन्मदिन वाला दिन भी आ गया और इस एक महिने में दोनो के बीच कोई बात नही हुयी।अनन्त: अनहिता ने 27 जनवरी की शाम स्वयं को तोड़ देने वाला निर्णय लेते हुये एक सुन्दर सा जन्मदिन का केक और कार्ड खरीद कर अपने ऑसू भरे आँखो और कापते हाथो से अग्रिम को जन्मदिन के बधाई संदेश के साथ ही एक संदेश और लिखा "'मैं आपसे बहुत प्यार करती हूँ ,बहुत मुश्किल है आपके बिना रहना लेकिन...अब आपकी बेरुखी ने ये कदम उठाने के लिए मजबूर कर दिया बस अब और नही अब मैं आपको इस बंधन से आजाद कर रही हु मुझे पता है मैं आपकी पहली पसंद नही हूँ लेकिन इसमें मेरी कोई गलती नही है। मैं आपसे बेइंतिहा प्यार करती हूं और करती रहूंगी। आप कभी नही समझेगे कितना मुश्किल है मेरे लिये आपके बिना जीना........ लेकिन आपकी खुशी के लिये आपको मुक्त करती हूँ हमेशा के लिये खुद से और इस अनचाहे रिश्ते से ।।"