Friday, 31 December 2021

नया साल

तू नया है तो दिखा सुबह नई और शाम नई,
दिखा जिन्दगी का वो रंग जो है सबसे जुदा
ना हो करोना का डर,ना हो फिक्र किसी को रोजी की।
हर्षित हर मन हो, समृद्ध धरा हो।
बारिश हो खुशियों की, बिखरी हो चारों ओर
हरियाली भाईचारे की।
वरना इन आँखों ने देखे है अब तक नए साल कई ।।
आप सभी को नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं 🙏🏻

Monday, 20 December 2021

नव संकल्प के साथ नववर्ष का आगाज

नव संकल्प के साथ नववर्ष का आगाज

ये वक्त है जब हम नए साल की ओर,नई उम्मीदों के साथ नई उपलब्धियों की ओर बढ़ रहे हैं। हम सभी ने अपने गुजरे वक्त से बहुत कुछ सीखा है,और आने वाले दिनों के लिए सपने भी संजोए हैं।नव वर्ष में हमसब खुश रहना चाहते हैं,और हम कुछ नये संकल्प लेते हैं।हमारी इच्छाएं सफलता की गारंटी नहीं देती हैं,लेकिन यह सफलता के रास्तों को रौशन जरुर करती है और सफलता की ओर हमारे रास्तों को आसान बनाती है।सभी संकल्प हमेशा पूरे हो कोई जरुरी नहीं होता,लेकिन ये हमें हमेशा याद दिलाता है कि अभी लक्ष्य को पाना है।नववर्ष 2022 के लिए हम सभी को कुछ संकल्प लेने चाहिए जैसे..
1. खुद को सुरक्षित रखने का संकल्प :-
 2020 के शुरू में आती एक भंयकर महामारी कोविड-19 ने जनमानस को बुरी तरह से झिंझोड़कर रख दिया है,और ये महामारी अभी भी थमती नहीं दिखती सो हम सभी को सर्वप्रथम खुद को स्वस्थ रखने का संकल्प लेना चाहिए।
2. दूसरों के दुख-दर्द को समझने का संकल्प :- करोना के कारण बहुत से लोगों की रोजी रोजगार छीन चुके हैं जिससे लोगों के बीच आर्थिक असमानता की खाई बढ़ती जा रही है। अतः ऐसे सभी जरूरतमंद लोगों के प्रति हमेशा अच्छा व्यवहार करें और उनके दुख दर्द को अपना समझें।उनकी हर सम्भव मदद का संकल्प लेना हम सबके लिए देश और समाज के लिए भी हितकर रहेगा।
3. महिलाओं की शिक्षा व सुरक्षा का संकल्प:
  इस बार भी हमें महिलाओं के प्रति बढ़ते अपराधों से मुक्ति के लिए महिलाओं की सुरक्षा का संकल्प लेना चाहिए, साथ ही लड़की को शिक्षित करने का प्रयास किया जाय।
4.बेड हैबिट बाय-बाय कराने का संकल्प:-
नयी पीढ़ी कई बार को नशे आदि की बुरी लत लग जाती है। इस नववर्ष में इन सभी बुरी आदतों से युवाओं को बचाने और जो इनकी गिरफ्त में हैं उनसे भी इस को बाय-बाय कराना होगा।
नीलम वन्दना

अटल बिहारी वाजपेई जी

सन् 1924 क्रिसमस के दिन

इक सितारा उदय हुआ...

तब किसी को खबर नहीं ,

राजनीति के ब्रम्हांड में

ध्रुव तारा उदय हुआ था.....

राजनीति के तुफानों में भी

जिसने उम्मीदों का दीप जलाया था...

सत्ता से ऊपर है देश

हमेशा यही समझाया था....

जननायक कुछ ऐसे थे वो,

दलों को नहीं उन्होंने

लोगों के दिलों को जीता था.....

उनकी मधुर वाक्पटुता का रस

शत्रु भी  सहर्ष पीता था.....

प्रखर थे वक्ता,कवि हृदय भी

भारतरत्न  कहलाये है....

उनकी कवितायें सुनने

विपक्षी दल भी आए हैं.....

नहीं की शत्रुता कभी किसी से,

स्वस्थ प्रतिस्पर्धा वो करते थे....

विपक्ष का दम भी उनसे था,

सत्ताधारी डरते थे....


विश्व शांति के पक्षधर थे वो,

पर दुश्मन को सबक सिखाया था...

विश्व शक्ति के नाकों तले,

परमाणु परीक्षण कराया था,

नहीं डरता है भारत किसी से

यह दुनिया को बतलाया था।


एक बार एक मोहतरमा ने

प्रणय निवेदन भेजा था,

मुंह दिखाई के रस्म में उसने

कश्मीर को मांगा था।

निवेदन को स्वीकार कर

तब पूरा पाकिस्तान

दहेज में इन्होंने मांगा था..

ऐसे ही इनके हाजिर जवाबी के


किस्से जहां में चर्चित थे....

कृष्ण बिहारी जी के घर में

जन्मे उनके लाल थे....

अटल बिहारी नाम है जिनका

अटल इरादे रखतें थे।


नीलम वन्दना

Friday, 19 November 2021

कारवां मन्जिल की ओर

चलते जाओ नेक नीयत से,
नेकी के फरिश्ते मिल ही जाएंगे।
आज बेशक अकेले हो तुम सफर में ,
कल कारवां भी बनते जायेंगे।
        बस यूं ही हिमाद्री वर्मा "समर्थ" ने भी नेक नियती के साथ 2014 से लिखना शुरू किया।और उनके लेखन की ख्वाहिश "ख्वाहिशों के समन्दर" से चल कर ख्वाहिशों की धारा में एहसास दिल के, मन के अल्फ़ाज़ और अल्फाजों के कारवां" से आगे बढ़ते हुए ये "कारवां मन्जिल की ओर" कहानी संग्रह के सम्पादन तक पहुंच गया है।
       सम्पर्क साहित्य संस्थान के तत्वावधान में सम्पादित व साहित्यगार  प्रकाशन द्वारा प्रकाशित  "कारवां मन्जिल की ओर" एक ऐसा कहानी संकलन है, जो देश के विभिन्न क्षेत्रों में रह रही विभिन्न सामाजिक परिवेशो में रह रही 51 साहित्यिक अभिरुचि रखने वाली आधी शक्ति ने जो कुछ अपने आस-पास देखा महसूस किया , उसे कलमबद्ध किया। इन सभी कहानियों में समाज के विभिन्न परिस्थितियों से जूझती महिलाओं के सकारात्मकता व नकारात्मकता दोनों पक्षों के दर्शन होते हैं साथ हुआ विडम्बना वो विसंगतियों की व्यथा और जीवन संघर्ष परिलक्षित होता है। वो आंचल पाहवा की कहानी मूरत में बलात्कार पीड़िता का दर्द हो , या रिश्तों के महत्व समझाती अनिला बत्रा की कहानी रिश्तों की महक हो। बुजुर्गो के साथ ही परिवार का अस्तित्व बताता अंजली कौशिक की कहानी सोच हो या दहेज के दर्द को उकेरती और उसे अभिशाप समझने वाले निखिल का बिना दहेज शादी का निर्णय करने वाली डा. आशा सिंह सिकरवार की कहानी दहेज एक अभिशाप। ऐसे ही इस कहानी संग्रह की  सभी कहानियां एक से बढ़कर एक हैं और सभी मानवीय मूल्यों को बनाए रखने का समर्थन करती है।संक्षेप में अगर आपको नारी संघर्ष और उपलब्धियों से जुड़ी हुई बातें पसंद आती है तो निसंदेह यह पुस्तक आपको पसंद आएगी।

कारवां मन्जिल की ओर

प्रथम संस्करण  :   2022

ISBN           :
978-93-90449-69-9

सम्पादन         :  हिमाद्री समर्थ
प्रकाशन।        :  साहित्यागार,
                   नामची मार्केट की गली
                   चौड़ा रास्ता, जयपुर
प्राप्ति का स्थान :  amazon.in
                     flipkart.com
मूल्य              :   300.00


काशी की संस्कृति और परंपरा

काशी की संस्कृति और परंपरा

ये काशी की पावन संस्कृति 
और प्राचीन परंपरा है,
ध्यान और शांति पाने को
मन सब का यहीं ठहरा है।

आज है चांद की चांदनी
कार्तिक पूर्णिमा की रात,
माँ लक्ष्मी का मिलेगा प्यार
देवताओं का आशीर्वाद

आज के दिन गंगा में 
स्नान कर डुबकी लगाते ,
मां करें उद्धार सब का
दान कर सब पुण्य कमाते,

गुरूद्वारों में हैं चलते लंगर
घाटों पे बंटती खिचड़ी है
भूखा नहीं यहां कोई रहता
यह अन्नपूर्णा की नगरी है।

रविदास से राजघाट तक
सभी सजे हैं घाट यहां
लाखों दीपक जगमग करते
अमरावती से ठाठ यहां ।

झिलमिल करते लहरों पर 
दीपक, कविताएं लिखते हैं
हर प्रतिबिंब ॐ के जैसा
दैविक अक्षर दिखते हैं।

इन्हें देख यूं लगता जैसे
धरती पर उतरा आकाश,
देव भूमि को छोड़ देवता
रखते हैं काशी की आस।

आज गुरु नानक की जयंती
सन्तों सा जीवन धारण हो
मन पवित्र, आत्मा सर चित हो
आनंदम पूरा पारण हो।

हर-हर करती गंगा कहती,
मैली कभी उसे मत  करना 
भारत की  पहचान है गंगा,
मृत्यु मोक्ष गंगा तट करना।

गंगा शिव की जटा में भी है
गंगा तट पर है श्मशान
तीनों लोकों में ही करती
 मां गंगा ही मोक्ष प्रदान।
नीलम वन्दना

Sunday, 14 November 2021

जिन्दगी और मैं


जिन्दगी और मुझमें शुरू से ही ठनी थी।

उसे बड़ा करने की जिद्द थी , 

मेरी बचपन बचाने की मुहिम थी

जिन्दगी ने हर कदम एक नई चाल चली,

मैंने भी हर कदम उस चाल को यूं मात दी,

जब राहो में उसने वज़ीर कई खड़े किये,

तब मेरे बुद्धु से दिखते प्यादों ने भी कमाल किये,

चालो से भरे शह और मात के इस खेल में,

यूं ही जिन्दगी हमसे उलझती रही,

और हम भी अपने बचपन को चुरा कर निकलते  रहे।





बाल दिवस

🥰
छोटी छोटी बातों पर,
तुनक के रूठने वाले,
छोटी छोटी बातों से
झट से खुश हो जाने वाले
बढ़ती हुई उम्र की गिनती में भी बचपन सी निश्छलता
व मासूमियत छुपा कर
रखने वाले बड़ों को भी ,
बाल दिवस की शुभकामना।
😎😎



Monday, 8 November 2021

अंगार आंख में

अंगार आंख में

अंगार आंख में डाले मां,
बेटे के ऊपर चिल्लाई,
ऐ परम गधे के गधे पुत्र!
क्यों पूरी रोटी नहीं खाई?
खानी है क्या तुझे पिटाई??
ना खाना पीना ढंग से,
ना ही करें ढंग से काम कोई
ना जाने सीखें कहां से
सारे काम बेढ़ंगे....
पढाई लिखाई से तोड़ के नाता,
सिर्फ बदमाशियों से जोड़े नाता।
एक पल भी चैन से रहे नहीं खुद,
मेरी भी है नींद उड़ाता,
ऐ परम गधे के गधे पुत्र,
क्यों नहीं पूरी रोटी खानी!!!🙄
नीलम वन्दना




Saturday, 23 October 2021

करवाचौथ का व्रत व करवाचौथ पर चांद की पूजा

करवाचौथ का व्रत व करवाचौथ पर चांद की पूजा

           हिन्दू धर्म के सबसे पवित्र माने जाने वाले कार्तिक मास में पड़ने वाला सबसे पहला त्यौहार करवा चौथ का व्रत होता हैं। करवाचौथ उत्तर भारत में शादीशुदा औरतों के द्वारा मनाया जाने वाला प्रमुख त्यौहार है। इसमें सभी सुहागिन स्त्रियां अपने पति की लंबी आयु की कामना करते हुए उनकी सुख-समृद्धि के लिए निर्जला व्रत रखती है। हिंदू धर्म में करवा चौथ का व्रत शादीशुदा महिलाओं के लिए बहुत खास होता है। इस दिन महिलाएं सोलहो श्रृंगार करके चौथ माता की पूजा करती है। रात में गणेश जी, भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा की जाती है। रात के समय चंद्रोदय के बाद चांद के दर्शन करके उसकी पूजा की जाती है। चांद को अर्घ्य दिया जाता है , और फिर पति के हाथों से जल ग्रहण करके व्रत का पारण किया जाता है। 

क्यों करते हैं चांद की पूजा
         गौरतलब है कि इस दिन भगवान शंकर, पार्वती जी के साथ कार्तिकेय जी की भी पूजा की जाती है। पार्वती जी की पूजा इसलिए की जाती है क्योंकि पार्वती जी ने कठिन तपस्या करके भगवान शंकर को हासिल किया था और अखंड सौभाग्यवती का वरदान प्राप्त किया था। ऐसी मान्यता है कि करवा चौथ का व्रत करने से 100 व्रत के बराबर फल मिलता है और पति को लंबी आयु मिलती है। जैसे पार्वती जी को अखंड सौभाग्य का वरदान प्राप्त था ठीक उसी तरह का सौभाग्य पाने के लिए सभी महिलाएं करवाचौथ के दिन उपवास रखती है।
           ऐसा माना जाता है कि करवा चौथ के दिन महिलाएं चंद्रमा की पूजा इसलिए भी करती हैं क्योंकि चंन्द्रमा को ब्रम्हा जी की संतान माना जाता है और उन्हें सौन्दर्य, शीतलता, प्रसिद्धि और प्रेम का प्रतीक माना जाता है, चंद्रमा शिव जी की जटा में सुशोभित होता है ,और यह दीर्घायु का भी प्रतीक है अतः ऐसे में करवा चौथ के दिन महिलाएं चंद्रमा की पूजा कर यह सभी गुणो को अपने पति में समाहित करने की प्रार्थना करती हैं।
            करवा चौथ व्रत में चंद्रमा की पूजा की एक मुख्य वजह ये भी है कि जिस दिन भगवान गणेश का सिर धड़ से अलग किया गया था उस दौरान उनका सिर सीधे चंद्रलोक चला गया था। पुरानी मान्यताओं के मुताबिक, कहा जाता है कि उनका सिर आज भी वहां मौजूद है। चूंकि गणेश को वरदान था कि हर पूजा से पहले उनकी पूजा की जाएगी इसलिए इस दिन गणेश की पूजा तो होती है साथ ही गणेश का सिर चंद्रलोक में होने की वजह से इस दिन चंद्रमा की खास पूजा की जाती है।
        एक प्राचीन कथा के अनुसार एक    करवा चौथ की कथा के अनुसार, एक साहूकार के सात बेटे और वीरावती नाम की एक पुत्री थी। सातों भाई अपनी बहन को अत्यधिक प्रेम करते थे। विवाह के उपरांत वीरावती का पहला करवा चौथ व्रत था, संयोगवश वह उस समय अपने मायके में थी। संध्या होते-होते वीरावती भूख और प्यास से व्याकुल हो मूर्छित हो गई। भाईयों को अपनी बहन की ये हालत देखी न गई, उन्होंने अपनी बहन से भोजन करने का आग्रह किया परंतु उसने मना कर दिया। जिसके बाद वीरावती का एक भाई दूर पेड़ पर चढ़कर छलनी में दिया दिखाने लगा और उससे कहा कि देखो बहन चांद निकल आया है तुम अर्घ्य देकर व्रत का पारण करो। ये बात सुनकर वीरावती खुशी-खुशी उठी और दीपक की रोशनी को चांद समझकर अर्घ्य देने के बाद भोजन करने बैठ गई। जैसे ही वीरावती ने पहला कौर मुंह में डाला तो उसमें बाल आ गया, दूसरे कौर में उसे छींक आ गई और तीसरे कौर में ससुराल से बुलावा आ गया कि वीरावती के पति की मृत्यु हो गई है। इसके बाद वीरावती ने पूरे वर्ष चतुर्थी के व्रत किए और अगले वर्ष करवा चौथ पर पुनः व्रत करके चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद व्रत का पारण किया और मां करवा की कृपा से उसका पति पुनः जीवित हो उठा। माना जाता है कि कोई भी स्त्री के पतिव्रत से छल न कर सके इसलिए स्त्रियां स्वयं अपने हाथ में छलनी लेकर दीपक की रोशनी में चंद्र दर्शन करके व्रत का पारण करती हैं। 

करवाचौथ व्रत के नियम
            करवाचौथ व्रत के नियम काफी कठिन है, अतः इस व्रत को बहुत ही सावधानी और नियम पूर्वक किया जाता है। कुछ काम ऐसे होते हैं जिन्हें व्रत के दिन  नहीं करने चाहिए।
     जैसे कहते हैं कि सूर्योदय के साथ ही व्रत का प्रारंभ होता है अतः कोशिश करें कि सुर्योदय से पूर्व उठ जाय। इस दिन देर तक न सोना चाहिए। 
       2. पूजा-पाठ में भूरे और काले रंग के कपड़े नहीं पहनने चाहिेए , सम्भव हो तो इस दिन लाल रंग के कपड़े ही पहनें क्योंकि लाल रंग प्यार का प्रतीक है और पति-पत्नी के प्रेम के प्रतीक इस व्रत में लाल रंग आपसी प्रेम में और वृद्धि करेगा।
     3. इस पवित्र दिन न तो खुद सोएं और न ही किसी सोए हुए व्यक्ति को जगाएं।ऐसी मान्यता है कि करवाचौथ के दिन सोए हुए व्यक्ति जगाना अशुभ होता है।
     4. करवा चौथ पर सास द्वारा दी गई सरगी शुभ मानी जाती है। व्रत शुरू होने से पहले सास अपनी बहू को कुछ मिठाइयां, कपड़े और श्रृंगार का समान देती है। इस दिन सूर्योदय से पहले ही सरगी का भोजन करें और फिर पूरे दिन निर्जला व्रत रहकर पति की लंबी आयु के लिए कामना करें।

5. इस दिन व्रत करने वाली महिलाओं को अपनी भाषा पर नियंत्रण रखना चाहिए। महिलाओं को इस दिन घर में किसी बड़े का अपमान नहीं करना चाहिए।पति के साथ भी प्रेम पूर्वक रहना चाहिए।

6. शास्त्रों में कहा गया है कि करवा चौथ व्रत के दिन पति-पत्नी को आपस में झगड़ा नहीं करना चाहिए। झगड़ा करने पर आपको व्रत का फल नहीं मिलेगा।
       7. इस दिन सफेद चीजों का दान न करें। सफेद कपड़े, सफेद मिठाई, दूध, चावल, दही आदि को भूलकर भी किसी को न दें।
नीलम वन्दना



Tuesday, 19 October 2021

सुनो ना....29

सुनो ना .....
क्या तुम्हे खबर है कि
ये चाँद का दिल है या 
दिल में उतर आया चाँद है !
मेरे चाँद ने पूछा मुझसे,
तुम्हारे मन मे क्या है,
हम आज भी नही कह पाए
"तुम"

सुनो ना - 28

सुनो ना कह के सभी को सुनाती हूं.....
अपनापन महसूस कराती हूं.....
और
जब होता है दर्दे दिल बयां
बस यूं ही कह के सभी को बहलाती हूं...
आंखों के पीछे अब भी दरिया है,
कुछ भरे हुए
मत छेड़िए क्योंकि कुछ ज़ख्म हैं 
अभी भी हरे हरे....
बस_यू_ही

Tuesday, 12 October 2021

धरती की बेटी

धरती की बेटी
धरती की बेटी थी , 
धरती जैसी ही थी।
सहती‌ हि गई 
हर दर्द को,
जैसे धरती मां 
सहती है सब हंस कर,
पीती ही गयी 
जीवन से मिले, 
कड़वे‌ आंसूओ को 
जैसे 
धरती मां पी जाती हैं 
बारिश के जल को...
धरती जैसे ही 
जना उसने
लव कुश जैसे 
लाल को
दे कर 
बढ़ा गयी वो
रघुकुल की
वंश बेल
और
धरती की बेटी
समा गई फिर से
धरती में ही
लेकिन 
बना गई 
मर्यादा पुरुषोत्तम
जगत पिता को,
जिसे पहचान न पाते नर
यदि वह
होते न
अवतरित.....
धरती
देती है फल
और
 रहती है फलित सदा....
नीलम वन्दना

Saturday, 2 October 2021

गुदड़ी के लाल लाल बहादुर शास्त्री

गुदड़ी के लाल लाल बहादुर शास्त्री
गुदड़ी के लाल वे लाल बहादुर थे,
अपनी जन्मभूमि की खातिर सर्वस्व किये न्यौछावर थे।
आओ मिलकर उनका जन्मदिवस मनाये,उनको श्रद्धा सुमन चढ़ाये।
कष्ट अनेकों सह कर जिसने, निज जीवन का रुप संवारा।
सच्चरित्र और त्यागमूर्ति थे, आडम्बर का नहीं दिखावा।
कल से छोटे दिखते थे वो , सामर्थ्य हिमालय से ऊंचे रखते थे वो।
जीवन में जितने भी बांधा कंटक और झंझावात आते, उन सबसे वो नई उर्जा थे पाते।
विश्वास,धर्मनिष्ठ,निज देशप्रेम से ओतप्रोत,
कर्मठ से मन में उनके जलती थी ज्ञान जोत।
विश्व शांति के दिवाने थे वो, 
पर नहीं युद्ध से घबराते थे वो।
उनके कुशल नेतृत्व में ही, पाक हिन्द से था हारा,
जय जवान जय किसान उनका ही तो था नारा।
शान्ति की बलिदेवी पर भी ज्ञात उन्हें था मिट जाना,
ताशकंद में इसी शान्ति हेतु उन्हेंं पड़ा था जाना।
चिर शान्ति उन्हें वहीं प्राप्त हुई, 
अब चिर निद्रा में सो गया ये लाल,
यह खबर भी वहीं से प्राप्त हुई।
कोटि-कोटि ,जन के प्यारे थे वो, भारत मां के अमर सपूत रखवाले थे वो।

नीलम वन्दना

साबरमति के संत : महात्मा गाँधी

 साबरमति के संत : महात्मा गाँधी

        'दे दी हमें आजादी बिना खडग बिना ढाल, साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल'-लोकप्रिय गीत की ये पंक्तियां बापू के करिश्माई व्यक्तित्व और कृतित्व का प्रशस्ति-गान हैं। गांधी-दर्शन के चार आधारभूत सिद्धांत हैं- सत्य, अहिंसा, प्रेम और सद्भाव। वह बचपन में 'सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र' नाटक देखकर सत्यावलंबी बने। उनका विश्वास था कि सत्य ही परमेश्वर है। उन्होंने सत्य की आराधना को भक्ति माना और अपनी आत्मकथा का नाम 'सत्य के प्रयोग' रखा। 'मुंडकोपनिषद' से लिए गए राष्ट्रीय वाक्य 'सत्यमेव जयते' के प्रेरणा-श्रोत बापू हैं। अहिंसा का अर्थ है-मन, वाणी अथवा कर्म से किसी को आहत न करना। ईष्र्या-द्वेष अथवा किसी का बुरा चाहना वैचारिक हिंसा है तथा परनिंदा, झूठ बोलना, अपशब्दों का प्रयोग एवं निष्प्रयोजन वाद-विवाद वाचिक हिंसा के अंतर्गत आते हैं। बापू सत्य और अहिंसा के पुजारी थे। उनका विचार था, 'अहिंसा के बिना सत्य की खोज असंभव है। अहिंसा साधन है और सत्य साध्य।' शांति प्रेमी रूस के टॉलस्टाय और अमेरिका के हेनरी डेविड थॉरो उनके आदर्श थे।


चौरी-चौरा में तनिक हिंसा हो जाने पर बापू ने तमाम आलोचनाओं के बावजूद देशव्यापी सत्याग्रह आंदोलन को स्थगित कर दिया। सच्चा प्रेम नि:स्वार्थ एवं एकरस होता है। उसमें अपने सुख की कामना नहीं होती। काका कालेलकर की दृष्टि में-बापू सर्वधर्म समभाव के प्रणेता थे। 'वसुधैव कुटुंबकम्' का उदात्ता सिद्धांत और वेदोक्त 'सर्व खल्विदं ब्रह्म' उनके जीवन का मूलमंत्र था। उनकी प्रार्थना सभाओं में गीता के श्लोक, रामायण की चौपाइयां, विनय-पत्रिका के पद के साथ ही नरसी मेहता व रवींद्रनाथ टैगोर के भजन आदि के प्रमुख अंशों का पाठ होता था। उनके हृदय में प्रेम व सभी धर्मो के प्रति आदरभाव था। इसीलिए, प्यार में 'बापू' एवं 'राष्ट्रपिता' भी कहलाए। अल्बर्ट आइंस्टीन ने सच ही कहा था। 'आने वाली पीढि़यां, संभव है कि शायद ही यह विश्वास करें कि महात्मा गांधी की तरह कोई व्यक्ति इस धरती पर कभी हुआ था।'

Neelam Vandana


Tuesday, 28 September 2021

मेरी मन्नत हैं तू

मेरी मन्नत हैं तू

मेरी मन्नत है तू ,मेरी जन्नत है तू  ....
मेरे इस जीवन का बेशकिमती नज़राना है तू.....

मांगी थी हर दर पर जो दुआ,
उस दुआ कि तासीर हैं तू.....

देखा था जो हसीन ख्वाब ,
उस ख्वाब की ताबीर है तू....

मेरी की गई हर अरदास की नेमत है तू ,....

मेरे दिल की धड़कन है तू
मेरे इस जीवन की आखिरी सांसें भी तू..

मेरी धरती मेरा आकाश तू,
मेरी तो पूरी दुनिया भी है तू ...

तुझसे ही उम्मीदे मेरी , मेरी हर जीत की आगाज है तू ,

मेरा अस्तित्व है तू ,मेरी पहचान है तू...
मेरे होने का वजूद है तू....
मेरा ही तो एक हिस्सा हैं तू ....
मेरे बुढ़ापे का सहारा तू...

तेरी ही किलकारियों से रौशन है घर सारा...
गोद में जब आये तू स्वर्ग सा लगे ये जग सारा....
ममता से भरा आँचल है मेरा,....
नन्हे कदमों के ठुमक से गुलजार आंगन हैं मेरा...


Friday, 17 September 2021

जिन्दगी : किश्तों में ना ‌जाया करो



उठो जागो और सफलता प्राप्ति से पूर्व मत रुको,
  जिंदगी का हर क्षण उम्मीदों से भरे रहो,
खुशियों के हर पल को बाहों में अपनी भरा करो,
आसमान से ऊंचे ख्वाब तुम देखा करो,
बुलन्द हौसलों से उड़ाने अपनी भरा करो,
गर गिर जाओ ठोकर से कभी तुम कभी,
दुगुनी हिम्मत से फिर खुद ही उठा करो।।

अपनी जिंदगी के हर एक पल में,
अपनी पूरी जिंदगी जी भर कर जिया करो,
अपनी बेशकिमती इस जीवन को यू 
किस्तों में मत जाया करो।।

कुछ पाने की चाह लिए,
अपना आज ना खोया करो,
जब भी जहां भी मिले जो भी खुशी ,
दोनों हाथों से फैला के 
दामन उनको बटोरा करो,
अपने बड़ों की तो सुनते ही हो,
कुछ अपने मन की भी किया करो,
क्या अपने क्या गैर,
लगा सभी को गले कभी कभी हंसा करो,
अपनी बेशकिमती इस जीवन को यू 
किस्तों में मत जाया करो।।

अपनी जिंदगी के हर एक पल में,
अपनी पूरी जिंदगी जी भर कर जिया करो,
अपनी बेशकिमती इस जीवन को यू 
किस्तों में मत जाया करो।।

भौतिकता की चाह लिए,
रिश्तों को मत खोया करो,
अपनेपन को साथ लिए 
अपनी भाषा,देश और
संस्कृतियों को सहेजा करो
जीवन जीने का हो अगर नशा,
हर घूंट जिन्दगी की पिया करो,
अपनी बेसकिमती इस जीवन को यू 
किस्तों में मत जाया करो।।

अपनी जिंदगी के हर एक पल में,
अपनी पूरी जिंदगी जी भर कर जिया करो,
अपनी बेशकिमती इस जीवन को यू 
किस्तों में मत जाया करो।।

आ जाये कभी जिन्दगी में 
जो गम के बादल कभी,
तुम हिम्मत मत हारा करो,
चाहे जितनी भी हो मुश्किलें,
तुम अपनी मुस्कान बिखेरा करो,
जब तक हैं ये जीवन सुधा
यूं ही हार कर वक्त से
जिंदगी का साथ ना छोड़ा करो,
अपनी बेशकिमती इस जीवन को यू 
किस्तों में मत जाया करो।।

अपनी जिंदगी के हर एक पल में,
अपनी पूरी जिंदगी जी भर कर जिया करो,
अपनी बेशकिमती इस जीवन को यू 
किस्तों में मत जाया करो।।

Wednesday, 15 September 2021

हाथों की लकीरें

हथेलिया  तो  मिल  गयी  थी हमारी और उनकी.!
लकीरो  के  न  मिलने  का मलाल  रह  गया..!!😔
नज़रे तो मिल गयी थी हमारी और उनकी...!
नज़रिये के न मिलने की कसक रह गया...!!
😌

दिल भी तो मिल गये थे ,हमारे और उनके..!
हम ना मिल सके मुक्कदर की बात है....!!
😌


Sunday, 12 September 2021

फिर भी जी गई।।

ना मैं गिरी, 
ना मेरी उम्मीदों के बुर्ज़-ए-मीनार गिरे ।
पर मुझे गिराने वाले, 
लोग कई-कई बार गिरे।।
सवाल जहर का नहीं था, 
वो तो मैं हंस कर पी गई।
तकलीफ तो लोगों को तब हुई, 
जब मैं फिर भी जी गई।।

Monday, 16 August 2021

क्या होता है इंतजार


तुम्हे पता हैं क्या होता है इंतजार........क्या होता हैं किसी से मिलने की आस......जो एक बेसब्री सी उम्मीदहोती है। जीने की तमन्ना होती हैं। कुछ करे का जज्बा है।चैत वैशाखकी तपती दुपहरी में सावन की फुहार होती हैं तुमसे मिलने की आस।बार बार कई बार टूटती हुई उम्मीदों के साथ एक छोटी सी आशा जो कह जाती है हर टूटती उम्मीद के बाद की नहीं ऐसा नहीं हो सकता ,अगर जो कुछ भी हुआ वो एक छलावा नहीं था तो तुम थोड़ी देर के लिए सही लेकिन मिलोगे तो...... हमे नहीं पता की जब मेरा इंतजार पूरा होगा और तुम मेरे सामने होगे तो मैं खुद को कैसे संभालूंगी.......
            पता हैं मैने तुम्हारे लिए कुछ उपहार भी रखे हुए हैं। जिनमे कुछ कपड़े ,कुछ किताबे और हां तुम्हारी पसंद के चॉकलेट और बेसन के लडडू भी रखे हुए है सालो से,वो भी मिलना चाहते शायद तुमसे। कुछ भी खराब नही हुआ है और ना ही होगा ।सब कुछ सहेज कर रखा है मैने........कई सालो के बाद एक बार यू ही लगा कि एक बार देख तो लूं कही लडडू महक तो नही गए , और तुमने भी तो कहा था ना कि लड्डुओ को किसी गाय को खिला दो , जाने कब आना हो। खोला था मैंने डिब्बा बहुत प्यार से और एक लड्डू मै देखा  कल वैसा ही था जैसा मैंने रखा था। तुम्हे नहीं पता न तुम्हारे लिए बनाए लड्डूओ में से बिना तुम्हे खिलाए वो एक लडडू खाना मुझे कितने अपराधबोध से भर गया था और मैंने उसे पुनः फिर से सही से बंद करके रख दिया।
           ये सारे तुम्हारे उपहार , मैं कितनी बेसब्री से तुम्हारा इंतज़ार करते हैं तुम्हे क्या पता।ये सब तुम्हारी अमानत है मेरे पास तब तक जब तक तुम ले नही जाते....
     कैसे बताऊं मैं कितना महकती हूँ मैं, भीग कर...तेरे प्यार की ओस से और सोचती हूँ, ये अक्सर अगर तुम बरस जाते आप... तो क्या कमाल होता...



Wednesday, 11 August 2021

बातें अभी और भी है।

बातें अभी और भी है।

   2020 जुलाई अगस्त से करोना का कहर कुछ कम होने लगा था और जिन्दगी धीमी ही सही पर वापस पटरी पर लौटने लगी थी।  2021 जनवरी की शुरुआत कुछ इस उम्मीद पर हुई थी कि अब करोना धीरे धीरे समाप्त हो जायेगा किन्तु ईश्वर को शायद ये मन्जूर नहीं था वो इन्सानों को प्रकृति से खिलवाड़ करने की सजा देना चाहते थे। इन्सानों ने जिस तरह प्रकृति को प्लास्टिक से ढका था प्रकृति ने इन्सानों को ही प्लास्टिक में बन्द कर दिया। मार्च-अप्रैल में करोना नामक दानव ने फिर से सर उठाना शुरू कर दिया था और अप्रैल-मई में तो ये अपने भंयकर विकराल रूप को धारण कर चुका था।हर तरफ से मदद की गुहार सुनाई देती थी। शायद ही कोई घर बचा हो जहां मौत ने अपने कदम नहीं रखें हो। अस्पतालों के बुरे हाल थे।
          जहां इतने बुरे माहौल में जिससे जितना मदद बन सका उसने किया। बहुत सारे सामाजिक संस्थाएं आगे आयी वहीं कुछ लोग ऐसे भी थे जो अभी भी सरकारों को कोसने,आपसी दुश्मनी निकालने से बाज नहीं आ रहें थे।कुछ लोग खून,प्लाज्मा,‌आक्सीजन और जीवनरक्षक दवाओं की जमाखोरी और कालाबाजारी कर रहे थे। कुछ लोग मदद के लिए आगे तो आये लेकिन इस शर्त पर कि अगर जीवन के लिए संघर्षरत इन्सान मोदी भक्त हुआ तो मैं मदद नहीं करूंगा उसकी मदद तो खुद मोदी जी ही आकर करेंगे। मैं उसे समझाती रह गयी कि हर इंसान को खून और प्लाज्मा मोदी जी नहीं दे सकते ,ये हमें आप को ही करना होगा और हम आप भी बस कुछ लोगों को ही दे सकते हैं तो कृपया अगर आप दें सकते हैं तो जरूर दें। लेकिन वो बन्दा अपनी पर अड़ा रहा और नहीं दिया। कुछ लोग ऐसे भी मिले जिन्हें सोशल मीडिया पर इनबाक्स में आपसे हाय हैलो करके आपकी तारीफों के पुल तो बांधने थे लेकिन वो आपकी मदद के गुहार लिए पोस्ट को अपने वाल पर शेयर करने से कतराते रहे। और इन सबकी सबसे खास बात कि ये सब भी इन्सान थे।
वक्त कैसा भी हो गुजर जाता है ,कभी हंसा के कभी रुला के........ लेकिन साथ ही बहुत कुछ सीखा भी जाता हैं।



Monday, 9 August 2021

पापा

  मैं तो "पत्थर" थी; मेरे माता-पिता "शिल्पकार" थे.....
मेरी हर "तारीफ़" के वो ही असली "हक़दार हैं।
             हर लड़की की तरह मेरे लिए भी मेरे पापा मेरे लिए किसी हीरो से कम नहीं थे। फिर भी जाहिर तौर पर हमारे विचारों में मतभेद भी बहुत थे, लेकिन मनभेद कभी नहीं हुआ। मेरे पिता ईमानदार कर्मठ और साहसी थे ।और कहीं ना कहीं ये सभी गुण मेरे में भी परिलक्षित होते हैं। आज मैं जो कुछ भी हूं ,जैसी भी हूं उसमें सबसे ज्यादा योगदान मेरे माता-पिता का ही है।


प्रमेय

पुस्तक का नाम         :  प्रमेय
प्रकाशक                 : राजपाल एण्ड सन्स
                                    
पुस्तक प्राप्ति का स्थान  : Amazon.in https://www.amazon.in/Pramey-Bhagwant-Anmol/dp/9389373484/ref=sr_1_4?crid=29DDITDELK3A9&dchild=1&keywords=bhagwant+anmol&qid=1624852982&s=books&sprefix=Bhagwant+%2Cstripbooks%2C572&sr=1-4

मूल्य                          : ₹ 200
संस्करण प्रथम             : 2021

हिन्दी लेखकों के वर्तमान पीढ़ी में अनमोल भगवंत जी के लेखन हमेशा ही अनोखा और एक अलग अन्दाज़ लिए हुए रहा है, भगवंत जी ने साहित्य में नित नए प्रयोग करते हुए कीर्तिमान स्थापित किए हैं।
कभी कामयाबी की कहानी ,कभी रिश्तों के मर्म , कभी किन्नरों की जिंदगी ,कभी लड़कपन के नटखट अंदाज , कभी गांवों के अल्हड़पन और इस बार विज्ञान और ईश्वरीय शक्ति के बीच के मानसिक जद्दोजहद को अनमोल भगवंत जी ने अपनी रचना में उकेरा है।
         "अध्यात्म सृजन हैं, विज्ञान शोध हैं, धर्म नियम हैं।"
उपरोक्त लाइन भगवंत अनमोल की नयी कृति प्रमेय का सार भी है और जान भी। अध्यात्म, विज्ञान, धर्म,चेतना पर गहन शोध और चिन्तन के साथ प्रमेय में दो प्रेम कथाएं समानांतर चलती हैं, एक फ़ातिमा और सूर्यांश जो दो भिन्न धर्मों को मानने वाले सामान्य मध्यम वर्गीय परिवार से ताल्लुक रखते हैं। दूसरी कथा दो भिन्न ग्रहों के निवासी तारकेय और सुनैना की प्रेम का दुःखद अंत हैं।
       रचना की भाषा जरुर कहीं कहीं थोड़ी अश्लील होती हैं लेकिन उसके कारण कथा की रोचकता ज़रा भी प्रभावित नहीं होती। आप एक बार पुस्तक  शुरू करने के बाद पूरी पढ़ कर ही बन्द करना चाहेंगे।अगर आप कुछ नया और अलग पढ़ने के लिए खोज रहे हैं तो प्रमेय को पढ़े निस्संदेह आपकी खोज पूरी होगी।👍


पानी बरसा

पानी बरसा
गड़गड़ गड़गड़ बादल गरजे,
चमचम चमचम बिजली चमके।
रिमझिम रिमझिम पानी बरसे,
टरटर टरटर करते मेंढ़क आये।
मोर सजीला नाच दिखाते,
चारों ओर हरियाली छाये।
कुहुकू कुहूक कर कोयल बोले,
वातावरण में मिश्री हैं घोले।
कविता,सविता पिंकी रानो
झूलों पर झूला है झूले।
राजू ,सोनू ,मोनू संग मिलकर
हम सबने पानी में जहाज चलाये
मम्मी ने गरमागरम पकौड़े बनाये,
हम सब ने मिलकर, मजे से खाये।
नीलम वन्दना




चंदा मामा

चंदा मामा
********
चन्दा मामा आओ ना
अपना यान दिखाओ ना
हमें भी उसमें घुमाओ ना
हमें अपने घर ले जाओ ना
हलुआ पूरी और मिठाई
हमें तुम खिलाओ ना
हमें भी करनी है मस्ती
आपने खेल खिलौने दिखलाना
मामी से भी मिलवाना  
छुपमछुपाई खेलेंगे
चोट लगी तो भी नहीं रोयेगे
तुम्हारे घर से देखेंगे
कैसी धरती लगती है।
कैसे दिखते नदी,सागर ,पर्वत सारे
नीलम वन्दना


नसीब

हथेली पर रखकर नसीब,
तू क्यों अपना मुकद्दर ढूँढ़ता है..
सीख उस समन्दर से,
जो टकराने के लिए पत्थर ढूँढ़ता है..!!
  NeelamVandana


छू लो आसमान


बुलन्द हौसले से
सपनों की उड़ान से
छू लो आसमान तुम
सफलता कदम चूमे
रचो नित नए कीर्तिमान तुम

पर याद रहे धरती से,
जड़ें ना हिलने पाये।
संस्कारों की डोर,
ना यूं टूटने पाये।

क्योंकि आसमानों में उड़ने वाले
परिन्दे भी कर जाते चुगली,
आसमानों में उड़ाने होती है
और ठिकाने तो धरती पर ही होते है।



लम्हों की जिंदगी

     
💫♥️सावन की बरसती बूंदें एक बात सीखा गई जिंदगी के खूबसूरत लम्हों सिर्फ महसूस किये जाते हैं कैद नहीं💘
           तुम्हे पता हैं तुम्हारे साथ टुकड़ों में गुजारे हुये एक एक लम्हा मेरी जिंदगी के कुछ बेहद खुबसूरत लम्हो में से हैं, और उन टुकड़ों में बिखरे हुए लम्हों को जोड़ कर मैंने अपनी बाकी बची हुई तमाम उम्र के लिए यादों का आशियाना बना लिया है। अब कभी तुमसे मिलने की उम्मीद नहीं होने के बावजूद बस इतनी सी ख्वाहिश है कि यादों के उस आशियाने में कुछ लम्हे और जोड़ सकूं।
       हां उम्मीद ना होने के बावजूद है , तुमसे मिलने की तमन्ना है, तुम्हे सुनने की ख्वाइश है,लेकिन तुम्हारी इच्छा के बिना नहीं.!♥️ ♥️
          तुम्हें पता हैं रोज अपने ईश्वर से प्रार्थना भी यही करती हूं कि अगर इस जन्म में मैंने कभी भी कोई अच्छा काम किया हो तो उसके बदले में अगले जन्म में हमें वो आपसे मिला दें ,रिश्ता जो भी उसे पसन्द हो ,बस हमें साथ रहने का और ज्यादा बहुत ज्यादा समय दे। 
        कैसे बताएं कि मेरे लिए कितने खास हो तुम, ईश्वर से डरते ना होते तो कह देते कि मेरे ईश्वर ही हो तुम...

Sunday, 18 July 2021

गर्मी , तो बस गर्मी ही होती है।



गर्मी , तो बस गर्मी ही होती है। 
गर्मी सिर्फ मौसम में ही नहीं,
शब्दों में भी होती है,
पैसों में भी होती है गर्मी,
गर्मी सिर्फ मौसम मे ही नही,
अहंकार की भी होती गर्मी,
भूख की भी होती हैं गर्मी,
समंदर की भी होती अपनी गर्मी,
शरीर में भी होती हैं गर्मी,

गर्मी से तपती है धरती
जो चुभती है दिलों में
जो रुलाती है इन आंखों को
एक टीस सी उठती हैं मन में
जला देती हैं कई बार 
रिश्तों के मखमली एहसास को
कई बार गर्मी के ताप से
स्वाहा हो जाता  सबकुछ

इसीलिए गुजरता हुआ वक्त , ढलती हुई उम्र , 
गिरती हुई बारिश की बूंदे 
कानों में कह जाती हौले से
थोड़ा सा धीरज रखें
मुश्किल से वक्त में
गर्मी किसी की भी हो
कैसी भी हो 
रहती नही सदा टिक कर हैं

नीलम वन्दना

गर्मी


गर्मी
गर्मी ने तेवर दिखाया
सूर्य देव ने साथ निभाया
कूलर ए सी ने दिया जवाब
सबके हुए हाल खराब
क्या बच्चे, बुढ़े और जवान
दोपहरी में सड़के हुई वीरान

पशु पक्षी भी रहते बेहाल
आम,जामुन, खीरे, तरबूज
कोशिश करते लाने की बाहर
पन्ना, सिकंजी, लस्सी और 
कुल्फी ले आते जान में जान...
नीलम वन्दना

Thursday, 8 July 2021

Democracy 2019

Democracy 2019 
         डेमोक्रेसी हमारा मूवी के बैनर तले बनी एक बेहतरीन शार्ट मूवी है जिसका निर्देशन आदित्य अग्निहोत्री जी ने किया है।  मूवी डेमोक्रेसी में मुख्य भूमिका निभाई है सिद्धार्थ स्वामी जी (पिता),ऋतु डालमिया जी (माता),अजिंक्या मिश्रा जी (सोनू)और त्रयंबक शुक्ला जी (चिन्टू)। फिल्म में गीत संगीत दिया है गौतम केशवानी जी ने तथा पुनः आदित्य अग्निहोत्री जी व आशुतोष अग्निहोत्री जी ने मिलकर  स्क्रीनप्ले व संवाद लिखा है।
         फिल्म में सभी किरदारों के स्वाभाविक और जानदार अभिनय ने फिल्म में जान डाल दी हैं। फिल्म के शुरू में अजिंक्या मिश्रा जी और त्र्यंबक शुक्ला जी की बातचीत हो जिसमें वो अपना गुस्सा मिश्रित नाराज़गी ज़ाहिर कर रहे होते हैं कि जब खुद के मन की ही करनी होती है तो आखिर उनसे पूछा हि क्यों जाता है, या फिर डाइनिंग टेबल पर इस बार छुट्टियों में घुमने का लोकतांत्रिक प्रक्रिया से निर्णय करते पिता के किरदार में सिद्धार्थ स्वामी जी और उनकी पत्नी के भूमिका में ऋतु डालमिया जी के चेहरों के उतार चढ़ाव बच्चों की उत्सुकता हो या फिर सफर के दौरान बच्चों का आश्चर्य चकित होना और सिद्धार्थ जी का शान्त भाव से बच्चों को समझाना, किचन में खाना बनाते हुए या आखिर में अपनी हार देख तुनक कर उठती हुई ऋतु जी का अभिनय हो।
       गौतम केशवानी जी का गीत संगीत भी बढ़िया है।फिल्म के अन्त में लिया गया गीत "भाई कितने भेष बदला ले" कहानी में  पूरी तरह से फिट बैठता है।
        फिल्म में संवादों की अदायगी जितनी खूबसूरत है ,उतने ही बेहतरीन संवाद भी है वो चाहे शुरू में बच्चों की खीझने वाले हो, डाइनिंग टेबल पर के वार्तालाप हो, सफर के दौरान पूछे गए बच्चों के सवाल हो या फिर सिद्धार्थ स्वामी जी द्वारा दिए गए उनके जवाब।
     12 मिनट 56 सेकेंड की अवधि की मूवी में निर्देशक दिखाना चाहते हैं कि कैसे लोकतंत्र के नाम पर लम्बे चौड़े प्रोसेस निभाये जाते हैं, निर्णय भी लिया जाता हैं, उसके बाद बन्द दरवाजे के पीछे जा कर कैसे वो निर्णय बदल दिये जाते हैं और जनता मन मसोस कर मूकदर्शक बनी रह जाती हैं। कुशल निर्देशन का परिचय देते हुए आदित्य जी फिल्म अवधि में दर्शकों को बांधे रखने में और फिल्म को माध्यम बना कर, जो सन्देश देना चाहते थे उसमें पूर्णतः सफल रहे हैं।

Sunday, 4 July 2021

कलयुग की अभिमन्यु

रचो चक्रव्यूह
तुम सब चाहे जितने ,
सारे चक्र तोडूंगी,
रण से मुँह ना
कभी मोड़ूँगी ,
सफलता का ताज पहनूंगी मैं
कायर नहीं वीरांगना हूं मैं,
कलयुग की अभिमन्यु हूँ मैं ।

सामने समन्दर हो चट्टान हो
बवंडर हो या हो तुफ़ान....
अब लक्ष्य से डीगा सके
ऐसी कोई बला नहीं...
कायर नहीं वीरांगना हूं मैं,
कलयुग की अभिमन्यु हूं मैं ।

तोड़ सारे मिथक
सबको दिखलाऊंगी मैं,
विजय ध्वजा फहराऊगी,
द्वापर की कहानी
अब नहीं दुहराउंगी मैं,
कायर नहीं वीरांगना हूं मैं,
कलयुग की अभिमन्यु हूं मैं ।

क्षितिज को छुने का ख्वाब है
दिलों में प्यासा सैलाब हैं,
साकार करूंगी वो सपने सारे
जो माता पिता ने देखें है ,
मेहनत से मुंह ना मोड़ूगी मैं
कायर नहीं वीरांगना हूं मैं,
कलयुग की अभिमन्यु हूँ मैं ।

जिनको आज है सन्देह
वहीं कल कन्धों पर बैठायेगें
रवि - शशी विजय उद्घोष करेंगे...
हासिल वो मुकाम करूंगी
कायर नहीं वीरांगना हूं मैं,
कलयुग की अभिमन्यु हूँ मैं ।



Wednesday, 9 June 2021

सुनो ना......बस एक बार

सुनो ना......
एक गुज़ारिश करू बोलो मानोगे,
वादा करके फिर तो नहीं जाओगे

बस एक बार अपने आगोश में छुपा लो,
जिन्दगी मुक्कमल होने से पहले.......

बस एक बार करा दो‌‌ अपना जी भर‌कर‌ दीदार इन तरसती आंखों को....
जिन्दगी मुक्कमल होने से पहले.....

बस एक बार घोल जाओ इन कानों में अपनी मखमली आवाज़ के जादू को
जिन्दगी मुक्कमल होने से पहले....
बस एक बार
नीलम वन्दना 

Sunday, 18 April 2021

आस्था की खास बात #COVID19Pandemic

         आखिरकार 2000 से अधिक लोगों में कोरोना वितरित करने के पश्चात् हमारे साधू संतो की भी आस्था हिल गयी औरहरिद्वार कुम्भ को समय पूर्व समाप्त करने की घोषणा करनी पड़ी। पंचायती अखाड़ा,निरंजनी अखाड़े के सचिव और कुंभ प्रभारी ने  की  हरिद्वार कुंभ समाप्ति की घोषणा की दी और सभी साधु-संतों से मूल स्थानों पर लौटने का अनुरोध किया है अभी भी राज्य सरकार ने कोई आदेश नहीं दिया है शायद वो साधू सन्तों की नाराज़गी से डर रहे हैं ।
       इतने सारे लोगों के जान की कीमत पर किसी भी आस्था की पुर्ति की जाय ये ग़लत है, लेकिन किसी भी आस्था की ख़ास बात होती हैं कि जब तक यह किसी अपने को ना खो दें ये खोती नहीं है ।
         इस विपदा की घड़ी में ऐसे आयोजन का औचित्य समझ से परे है, अगर यह आयोजन इतना ही जरूरी था तो प्रतीकात्मक आयोजन भी तो किया जा सकता था न ? साधु-संतों पर हिन्दू समाज अगाध श्रद्धा रखता है। सरकारों को जनता बड़े विश्वास से अपने व देश की सुरक्षा विकास और भले के लिए चुनती है, वे देश और समाज को राह दिखाते हैं और ये इनकी नैतिक जिम्मेदारी भी है। अगर कुम्भ का आयोजन टाल दिया गया होता या प्रतीकात्मक रूप में किया गया होता तो पूरे देश में एक सकारात्मक संदेश जाता। हमारे सम्मानित साधु-संत और सरकारे यह मौका चूक गये। कुम्भ से लौटनेवालों को अनिवार्य रूप से सरकारी केंद्रों पर कोरेन्टीन किया जाना चाहिए।
सुरक्षित रहिए समझदार बनिये घर से मत निकलिए । आप सब महत्वपूर्ण हैं । किसी और के लिए हो ना हो लेकिन अपने परिजनों के लिए आप महत्वपूर्ण है। आप उनके लिए दुनिया के एक शख्स नहीं उनकी पूरी दुनिया है 🙏🏻

COVID19Pandemic

COVID19Pandemic

अभी वैसे ही हमारे आस पास इतनी ज्यादा निराशा हताशा फैली हुई है , की पूछिए नहीं.....हर इंसान एक साथ न जाने कितने उलझनों में घिरा हुआ है,ऐसे के अगर हम सभी के नकारात्मकता को न देख कर सभी के सकारात्मकता को देखे उसे प्रोत्साहित करे ,उसकी तारीफ करे , और कुछ अच्छा करने की कोशिश करे तो ये ज्यादा अच्छा होगा....सभी की छोटी से छोटी कोशिश ,छोटा से छोटा योगदान भी इस समय बहुत महत्व रखता है । 
  ऐसे  विकट समय में निसंदेह विपक्ष के नेता राहुल गांधी जी का  यह कदम सराहनीय है।बाकी सभी सरकारों को बहुत पहले ही कर लेना चाहिए था....

कोरोना वायरस की स्थिति को देखते हुए कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने पश्चिम बंगाल में अपनी सभी रैलियां स्थगित कीं

राहुल गांधी ने मौजूदा स्थिति में सभी नेताओं को बड़ी रैलियों के परिणामों के बारे में सोचने की सलाह दी। 
COVID19Pandemic

Tuesday, 9 March 2021

सात समन्दर पार....

सुनो ना.....
आओ चलते हैं  एक बार फिर 
सात समन्दर पार....
और खो जाते सपनों की दुनिया में ....
जिंदगी की भाग दौड़ से  चुराते है थोड़े से लम्हे....
समंदर के किनारों पर उठती गिरती लहरों के साथ कुछ एक दूसरे को सुनते हैं....
सात समंदर पार झिलमिल करते तारों से सजे नीले आकाश तले समझते है एक दूसरे की खमोशी को....
जैसे समंदर की लहर बहा ले जाती  हैं किनारों की सारी गंदगी और कर जाती है तटों को स्वच्छ निर्मल , 
उन्ही लहरों के साथ हम भी विसर्जन कर देते है अपने सारे शिकवे शिकायते... भूल के सारी कड़वी यादें पहलू में भर लाते हैं कुछ कभी ना भूलने वाले सुनहरे खूबसूरत पल...
समंदर की तटों पे चट्टानों से टकराते हुए अठखेलियां करके जो लहरे वापिस जाती है वो खो जाती है विशाल समंदर में...
और फिर कभी वापिस नही आती वैसे ही तुम भी खो जाना कही इस दुनिया की भीड़ में बन के एक अजनबी... 
रह जायेंगे हम इस किनारे पर और जिंदगी गुजार जायेगी उन खूबसूरत सुनहरी यादों के सहारे जो हमने चुराए है...

Sunday, 21 February 2021

सुनो ना....23

सुनो  ना .....
  गर होता मेरी दुआओ का असर , तो अब तक तुम मेरी आगोश में होते....
और जो होती इतनी गर्म तासीर बद्दुआओ की मेरी तो हम खुद कभी के सुपुर्दे खाक हो चुके होते....

Sunday, 14 February 2021

लम्हो का इश्क़



इश्क तो लम्हों में होता है और सदियों तक रहता हैं। हाँ इश्क ऐसा ही होता हैं।
बस यू ही
           
                  हाँ शिवान्गी को उस दिन इश्क़ ही तो हो गया था ,जब वो और शिवान्स पहली बार मिले थे और  गुजरते हुये दिन के एक एक पल के साथ शिवान्गी का प्यार बढ़ता ही चला गया। और दो अनजान एक दूसरे की ज़िन्दगी बन गये थे ।
आज शिवान्गी की तबियत कुछ ठीक नही और उसे शिवेन्द्र की बहुत याद आ रही थी जिसे ऑफिस के काम से कुछ दिनों के लिए बाहर जाना पड़ गया था । बिस्तर पर लेटी बीमार शिवान्गी को शिवेन्द्र के साथ हुयी अपनी पहली मुलाकात के एक एक पल याद आ रहा था..... 
कैसे वो  दोनों पहली बार अकेले घर से बाहर निकले थे। जनवरी की ठण्डी में सुबह सुबह दिल्ली पहुचे थे । शिवेन्द्र ने  पहले से ही होटल मे एक कमरा बुक करा लिया था। दिन में थोड़ा आराम करके शाम को दोनो थोड़ा घूमने निकले गये थे । कनाट प्लेस की चकाचौंध और दिल्ली की सर्दी मे दोनों एक दूसरे का हाथ थामे चले जा रहे थे, घूमते हुये वो देने पालिका बजार भी गये थे। वहा से खरीददारी करते हुये आइसक्रीम खाते हुए वापिस होटल आ गये थे। सुबह जब दोनो एक दूसरे से मिले थे तो एक ऐसे अनजान थे जिनके बीच बाते तो होती थी, लेकिन मुलाकात अभी तक नही हो पाया थी। आज बहुत कोशिश के बाद ये मुलाकात सम्भव हो पायी थी।
       आज शिवेन्द्र के साथ उसकी पहली मुलाकात की यादे उसे जितना खूबसूरत मखमली एहसास दे रही थी ,उतनी ही ज्यादा शिद्दत से उसे आज शिवेन्द्र की कमी महसूस करा रही थी। वो एक बार फिर से वापिस उन पलो को जी लेना चाहती थी। कैसे उन दोनो ने एक साथ वोडका की सिप ली थी,..... चिली पनीर और फ्रेच फ्राइ का टेस्ट.........और देर रात तक बाते करते रहे.... और बीते करते करते ही  शिवेन्द्र का  बिस्तर पर आधे बैठे आधे लेटे हुये उसे  पहली बार छुना...., कितनी मासूम सी थी वो छुअन की वो खुद भी उसकी बाहो मे सिमटती चली गई। उसे वह अनजान सा बिल्कुल भी नही लगा..... अनजाने शिवेन्द्र की बाहो मे अनकहा असीम  सुकून था, एक अजीब सी कशिश थी, उसकी बाहो मे, एक कभी ना छोडने का भरोसा था......उसकी गोद में अध लेटी शिवान्गी  को कब नीद आ गयी पता ही नही चला..... लगभग एक घण्टे बाद जब उसकी नीद खुली तो देखा शिवेन्द्र  उसे वैसे ही गोद मे लिये हुये अपने कितने प्यार से देख रहा था.......
       शिवाऩ्गी को पहली बार लगा था कि जिस इन्सान के गोद मे वो इतना सुकून और भरोसे से सो गई, वह कोई अनजाना कैसे हो सकता है..... जिसकी बाहो मे सिमटते हुये उसे रंच मात्र भी भय ना हुआ वो अनजाना कैसे हो सकता है,  उस अनजाने इन्सान के गोद मे कितना सुकून, कितना भरोसा था.... जैसे कोई  मासूम सो दुनिया की परवाह किये बगैर छुप जाता है माँ की ऑचल मे वैसे ही तो मैं भी  सो गई थी... कितना ममत्व था उस अनजान के छुअन में.....कितना वात्सल्य बरस रहा था उसके भूरे भूरे ऑखो से...... कैसे अनजान हो सकता है  ऐसा व्यक्ति.... नही ये अनजान नही ये मेरी ज़िन्दगी है..... एक सामान्य सी मुलाकात में जो इन्सान इतना कुछ दे जाये वो अनजान हो ही नही सकता..... जिसे कुछ देर के साथ में ही आपकी  फिक्र होने लगे.....जो पूरे रास्ते घूमते हुये भी पल पल आपका ख्याल रखे..... वो तो अनजान हो ही नही सकता वो तो ज़िन्दगी है।

Monday, 8 February 2021

अनहिता

मोहब्बत की कहानियां, किरदारों के गुजर जाने के बाद भी जिंदा रहती हैं. ये एक ऐसी शय है कि इसके खरीदार जमाने के बाजार में हमेशा रहते हैं.
           आज अनहिता का जन्मदिन था, लेकिन अग्रिम ने उसे बधाई  भी नही दिया, नये साल और त्योहारो पर विश करना तो अग्रिम ने कई सालो  से  बन्द कर दिया था। अगर अनहिता कभी विश कर भी दे तो बड़े ही अनमने मन से रिप्लाई देता। इस बात को लेकर दोनों को में कई बार अच्छे से बहस भी हो चुकी थी।
         अनहिता बहुत हैरान थी अग्रिम  के इस बदले हुये तेवर से। उसे समझ ही नही आ रहा था कि आखिर उन दोनो के रिश्ते मे गलती हुयी कहा।पिछले कई सालो से वो अग्रिम से सिर्फ कुछ वक्त ही तो मांग रही थी,जिसके लिए अग्रिम कभी परिवार कभी करोना और कभी उसके व्यवहार को दोष देकर टाल देता। पिछले 4 सालो मे तो ना जाने कितनी बार अग्रिम ने खुद की मिन्नते करायी थी, काफी मान मन्नौवल के बाद किसी तरह अनहिता ने टूटते बिखरते रिश्ते को बचाया था, और उस रिश्ते की आग मे खुद को सम्हाला था।   
            ज़िन्दगी की इसी उहापोह से गुज़रते ना जाने कब अनहिता अतीत के वादियो मे खो गयी उसे खबर भी नही हुआ।जैसे कल की ही बात हो  जब उसके मोबाइल पर अग्रिम की पहली बार कॉल आयी थी, कितना अचम्भित रह गयी थी अनहिता की उसे उसका नम्बर कहा से और कैसे मिला? उसके बाद  फिर दोनों की बातें अक्सर हो जाया करती थी।अब तो धीरे धीरे अग्रिम हर रोज ही आफिस से वापिस घर आते समय रास्ते मे अनहिता से बात करते लौटता। कभी कभी देर रात घर से भी बात कर लिया करता।अगर किसी कारण अनहिता का फोन नही लग पाता या कभी बात नही हो पाती तो कितना परेशान  हो जाता था अग्रिम,और कहता "सारा दिन कहा व्यस्त थी महारानी साहिबा" या "आप तो ईद का चॉद का हो गयी है मेरी चश्मेबद्दूर जिगर का छल्ला" बोल कर नाराजगी जाहिर करता था, वो भी हस कर बात को खत्म कर दिया करती।
           उस साल अनहिता के जन्मदिन के दिन कितनी ज्यादा ठण्डी थी, दिन के 11 बजे तक चारो ओर घने कोहरे का साम्राज्य कायम था फिर भी वह जयपुर से मुंह अन्धेरे ही निकल कर 11 वजे तक दिल्ली अनहिता के पास पहुच गया था।दोनो पूरे दिन साथ रहे ,और कितने बढ़िया से अनहिता का जन्मदिन मनाया था।अग्रिम ने जाते जाते वादा भी किया कि बाकी दिनो का पता नही लेकिन अब अनहिता के हर आने वाले जन्मदिन पर दोनो साथ होगा , और फिर एक बार तो अग्रिम के घर विदेश से उसके कुछ रिश्तेदार मिलने आये थे अनहिता ने कहा भी कि वो जन्मदिन मेहमानो के जाने के बाद मना लेगें,लेकिन अग्रिम नही माना था।अनहिता को कुछ समझ नही आ रहा था कि उससे वाकई मे कोई गलती हुयी है, या अग्रिम को मिन्नते कराने की लत पड़ चुकी है या फिर अग्रिम का अनहिता से मन भर चुका है| अतीत की यादो और वर्तमान मे उलझी रोते  हुये अनहिता की आखे कब लग गयी पता भी नही चला | जब उसकी ऑखे खुली तो सूरज सर पर चढ़ चुका था।अनहिता को ऑफिस के लिये भी देर हो चुकी थी | रात मे अग्रिम से हुयी उसकी लडाई के कारण सर भी भारी सा महसूस हो रहा था | भारी मन से ही वो किचन मे गयी और चाय बनाते हुये उसने ऑफिस के मेल पर आकस्मिक अवकाश के लिये आवेदन कर दिया| चाय पीते हुये अनहिता सोच रही थी  कि 1 महीने बाद अग्रिम का जन्मदिन आने वाला है तब तक शायद सब कुछ पहले सा सामान्य हो जाये और अनहिता ने मौन की राह पकड़ ली थी। ऊपर दिन ब दिन अग्रिम की बेरुखी बढ़ती ही जा रही थी।अग्रिम की ये खामोशी, पिछले कुछ दिनों मे उन देने के बीच हुयी लड़ाईया अनहिता के आत्मविश्वास को तोड़ रही थी। उपर से तो वह बराबर से अग्रिम से बोलती बात करती रहती लेकिन अन्दर ही अन्दर वह उसके ऐसे व्यवहार से टूट कर बिखरती जा रही थी । आखिर वक्त के साथ अग्रिम के जन्मदिन वाला दिन भी आ गया और इस एक महिने में दोनो के बीच कोई बात नही हुयी।अनन्त: अनहिता ने 27 जनवरी की शाम स्वयं को तोड़ देने वाला निर्णय लेते हुये एक सुन्दर सा जन्मदिन का केक और कार्ड खरीद कर अपने ऑसू भरे आँखो और कापते हाथो से  अग्रिम को जन्मदिन के बधाई संदेश के साथ ही एक संदेश और लिखा  "'मैं आपसे बहुत प्यार करती हूँ ,बहुत मुश्किल है आपके बिना रहना लेकिन...अब आपकी बेरुखी ने ये कदम उठाने के लिए मजबूर कर दिया बस अब और नही अब मैं आपको इस बंधन से आजाद कर रही हु मुझे पता है मैं आपकी पहली पसंद नही हूँ लेकिन इसमें मेरी कोई गलती नही है। मैं आपसे बेइंतिहा प्यार करती हूं और करती रहूंगी। आप कभी नही समझेगे कितना मुश्किल है मेरे लिये आपके बिना जीना........ लेकिन आपकी खुशी के लिये आपको मुक्त करती हूँ हमेशा के लिये खुद से और इस अनचाहे रिश्ते से ।।"